भूमि को अपने नाम कराने हेतु नहीं काटने होंगे पटवारी के चक्कर - सैनी
नामांतरकरण संबंधी काम से प्रायः सभी किसानों को दो-चार होना पड़ता है।आजकल नामांतरकरण प्रक्रिया ऑनलाइन हो चुकी है जिसके कारण पटवारी के पास बार-बार जाना नहीं पड़ेगा।
नामांतरकरण निम्न कारणों से करना होता है-
1.विरासत-
- एक खातेदार की मृत्यु हो जाने पर मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाना होता है, एक स्टांप पर सभी वारिसों की सूची, मृत्यु प्रमाण पत्र व जमाबंदी की प्रति लेकर किसी भी ईमित्र के यहां से ऑनलाइन कराया जाए, ओटीपी प्राप्त होने पर उसके नंबर बताएं जाकर ई मित्र से उसकी रसीद प्राप्त की जावे। सभी पत्र आदि सही पाए जाने पर 7 दिन के अंदर पटवारी नामांतरकरण की प्रक्रिया पूर्ण करेगा उसके बाद स्वतः ही उक्त प्रक्रिया भू अभिलेख निरीक्षक के पास चली जाएगी 7 दिन के अंदर भू अभिलेख निरीक्षक उस प्रक्रिया को पूर्ण करेगा तत्पश्चात वह इंतकाल ग्राम पंचायत के खाते में चला जाएगा, ग्राम पंचायत द्वारा आगामी पंचायत की बैठक में उसे पास किया जाएगा, यदि किन्हीं कारण से ग्राम पंचायत उसे स्वीकृत नहीं करती है तो वह इंतकाल तहसीलदार के खाते में चला जाएगा।
-2.गोदनामा-
- मृतक खातेदार का मृत्यु प्रमाण पत्र गोदनामा व जमाबंदी की नकल के साथ किसी भी ईमित्र के यहां जाकर ऑनलाइन कराया जा सकता है।
- 3.वसीयतनामा-
- वसीयतनामा पंजीकृत व अपंजीकृत दोनों प्रकार का हो सकता है।वसीयतनामा खातेदार की मृत्यु होने पर प्रभावी होता है।स्वअर्जित भूमि/संपत्ति की ही वसीयत की जा सकती है।
-4. हक परित्याग-
- यदि सहखातेदार जो रक्त संबंधी है तो अपने हित का परित्याग एक दूसरे को कर सकते हैं, हक परित्याग पैतृक संपत्ति का ही किया जा सकता है, हक परित्याग उप पंजीयक के यहां पंजीकृत होता है। हक त्याग करने वाले, हक प्राप्त करने वाले, व दो गवाहों के साथ उनके पहचान पत्र, जमाबंदी की नकल एवं फोटो लगानी होती है।
- 5.विक्रय पत्र-
- रजिस्ट्री के द्वारा खरीदी गई भूमि का नामांतरकरण की व्यवस्था पंजीयन कार्यालय के द्वारा ही संपन्न की जाती है। दस्तावेज पंजीबद्ध होते ही बेचने वाले के खाते से वह भूमि खरीदने वाले के खाते में स्वतः दर्ज हो जाएगी। 1992 से पूर्व छोटे टुकड़ों की रजिस्ट्री नहीं होती थी, यदि रजिस्ट्री हो भी गई तो उसका इंतकाल खरीदने वाले के पक्ष में नहीं हो पाता था, उक्त रजिस्ट्री को विधि मान्य घोषित करने के लिए राजस्थान टेनेंसी नियम 1955 में व्यवस्था की गई है जिसके अनुसार उपखंड अधिकारी के यहां नियत प्रपत्र में आवेदन करना होता है रजिस्ट्री के समय की जमाबंदी व वर्तमान की जमाबंदी साथ लगानी होती है, उपखंड अधिकारी द्वारा तहसीलदार से मौका की जांच कराने के बाद लगान का 10 गुना शुल्क जमा लेकर रजिस्ट्री के आधार पर इंतकाल के आदेश दिए जाते हैं।
-6.दान पत्र या उपहार पत्र-
- दान पत्र या उपहार पत्र रजिस्टर्ड होता है, जिसका रिकॉर्ड में अंकन तत्काल कराया जा सकता है।
-7.रहन-
- वित्तीय संस्थानों से ऋण लेकर भूमि को रहना रखा हो तो इंतकाल के द्वारा इसका अमल किया जाएगा। ऋण चुकता होने के बाद अबकाया प्रमाण पत्र के आधार पर भूमि को रहन से मुक्त कराया जा सकता है।
-8.खाता विभाजन-
- खाता विभाजन चाहे आपसी सहमति से हो या न्यायालय की डिक्री के आधार पर इंतकाल की व्यवस्था ऑनलाइन की हुई है।
-9. न्यायालय की डिक्री-
- किसी राजस्व न्यायालय द्वारा खाता विभाजन, घोषणात्मक दावा, रिकॉर्ड दुरुस्ती या अन्य प्रकार की डिक्री पारित की जाती है तो उसका अंकन ऑनलाइन कराना होता है।
- 10.विनिमय/एकीकरण
- दो किसान सुविधा की दृष्टि से अपनी भूमि की आपस में अदला-बदली करते हैं तो डीड के आधार पर नामांतरकरण होगा।
- 11.समर्पण-
- कोई खातेदार अपनी खातेदारी भूमि का समर्पण राज्य हित में यथा स्कूल, अस्पताल, पानी की टंकी, रास्ते, पंचायत भवन या अन्य सार्वजनिक हित के लिए करता है तो उसका अंकन भी ऑनलाइन होगा, समर्पण का दस्तावेज बनाने हेतु तहसीलदार सक्षम है। किसी कारणवश नामांतर करण ग्राम पंचायत द्वारा खारिज किया जाता है तो उपखंड अधिकारी के व तहसीलदार द्वारा खारिज किया जाता है तो जिला कलेक्टर के न्यायालय में उसकी अपील की जा सकती है। नामांतरकरण की प्रक्रिया न्यायिक प्रकृति की श्रेणी में आती है। नामांतर करण के निर्णय की अपील ही की जा सकती है। तस्दीक करने वाले अधिकारी को न्यायिक सुरक्षा प्राप्त है।
- (लेखक मंगल चंद सैनी पूर्व तहसीलदार)