धार्मिक व सांस्कृतिक परंपराओ को जीवंत करती करवर की रामलीला: गुरुवार को हुआ रामलीला मंचन का समापन
करवर (बूंदी, राजस्थान/ राकेश नामा) कस्बे में श्री केशव रामलीला मंडल द्वारा केशव रंगमंच पर पिछले 13 दिनों से चल रही रामलीला का गुरुवार रात को समापन समारोह आयोजित किया गया। इस दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम व कच्ची घोड़ी नृत्य आदि की प्रस्तुतियां दी गई तथा कलाकारों को पुरस्कृत किया गया।
समापन समारोह के मुख्य अतिथि नैनवां प्रधान पदम नागर थे। अध्यक्षता जिला परिषद सदस्य कन्हैया लाल मीणा ने की। अति विशिष्ट सरपंच दीपकला जी नागर , विशिष्ट अतिथि पंचायत समिति सदस्य मिथलेश नागर, उपसरपंच पंकज दाधीच, सरपंच प्रतिनिधि नीरज नागर, देई मंडल महामंत्री विष्णु दाधीच रहें। स्थानीय बच्चों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम की एक से बढकऱ एक प्रस्तुतियां दी वही लोक नृत्य, तेजाजी गायन आदि कार्यक्रम आयोजित किए। रामलीला मंडल के कार्यकर्ताओं नरेंद्र शर्मा,कमलेश जेन,गोपाल चतुर्वेदी,कन्हैया लाल नागर, कजोडी लाल प्रजापति, विष्णु नामा,पवन शर्मा,रामप्रसाद सैनी,मुकेश जेन आदि ने अतिथियों का माल्यार्पण व साफा बंधवाकर स्वागत किया। अतिथियों ने रामलीला में अभिनय करने वाले सभी कलाकारों को ग्राम पंचायत की ओर से पुरस्कृत किया, और ग्राम पंचायत करवर द्वारा 42 हजार रुपए की सहयोग राशि रामलीला मंडल को देने की घोषणा की गयी। रामलीला मंडल अध्यक्ष सेवानिवृत्त शिक्षक नरेंद्र शर्मा ने सभी मेहमानों व मंडल के कलाकारों व कार्यकर्ताओं का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन
अध्यात्म एवं परंपरा को संजोती करवर की रामलीला
कस्बे में केशवराय मंदिर के सामने केशव रंगमंच पर 13 दिनों तक ग्राम वासी राम की भक्ति के रंग में डूबे रहे। कस्बे मे 1968 से रामलीला का शुभारंभ हुआ था,1973 मे श्री केशव रामलीला मंडल बनाया गया,तब से स्थानीय कलाकार व युवा 54 वर्षों से इस पुरानी परंपरा को आगे बढ़ाकर धार्मिक परंपरा से ग्रामीणों को जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं हर साल रामलीला का मंचन करके बुजुर्गों की इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं श्री केशव रामलीला मंडल में अलग- अलग तबके के लोग शामिल है रामलीला में कोई पेशेवर कलाकार नहीं है,स्थानीय पुराने कलाकार युवाओं को आगे बढ़ाने हेतु प्रोत्साहित कर रहे हैं। इस क्षेत्र में भव्य और प्रसिद्ध रामलीला की चर्चा करे तो करवर की रामलीला का मंचन का नाम सबसे पहले आता है पांच दशक से भी अधिक वर्षों से चली आ रही है परंपरा अपने मूल स्वरूप में दर्शकों का मनोरंजन कर क्षेत्र में ख्याति अर्जित कर चुकी हैं रामलीला में परंपराओं का ही निर्वाह करते हुए अपने जीवंत अभिनय के बलबूते वर्षों से कस्बे सहित आस-पास के गांवों से ग्रामीण यहां रामलीला देखने आते हैं और सारा कार्यक्रम शांतिपूर्वक वातावरण में हर्षोल्लास के साथ संपन्न होता है। दर्शक पूरी तरह अनुशासित होते हैं। रामलीला के आरंभ से लेकर अंत में रावण आदि के पुतलों के दहन तक दर्शक डटे रहते है।
इस दौरान लोगो मे शांति, सद्भाव और श्रद्घा का बनी रहती है । अंतिम दिन श्रीराम लंकापति रावण का वध कर अयोध्या वापस लौटते हैं और इस रामलीला को भी विराम मिलता है। कस्बे मे रामलीला की सादगी और पारंपरिक रूप से प्रस्तुति ही इसे भव्य और यादगार बनाती है। आधुनिकता के इस दौर में भी यह अपने मूल स्वरूप में लोगों का दिल जीत लेती हैं नई पीढ़ी के अंदर भी अपनी संस्कृति, परंपरा व धर्म के प्रति जिज्ञासा और श्रद्घा जगाने में करवर की रामलीला अपनी सार्थक भूमिका निभा रही है।