सामाजिक समरसता को बनाए रखने के लिए नदियों को बचाना जरूरी - प्रकृति प्रेमी

Feb 13, 2021 - 16:53
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सामाजिक समरसता को बनाए रखने के लिए नदियों को बचाना जरूरी - प्रकृति प्रेमी
सामाजिक समरसता को बनाए रखने के लिए नदियों को बचाना जरूरी - प्रकृति प्रेमी

अलवर ::- दियां हमारी सदैव मित्र रही हैं, सदैव ही जीवनदायिनी , नदियों प्रकृति का एक अभिन्न अंग है, मानव जीवन में नदियों का बहुत बड़ा महत्व रहा, प्राचीन सभ्यता चाहे सिंधु घाटी सभ्यता, हड़प्पा नदी किनारे विकसित हुई, हस्तिनापुर, प्रयाग ,पाटलिपुत्र भी नदियों के किनारे फले - फूले। मानव के सामाजिक आर्थिक औद्योगिक विकास में नदियां अपना विशेष योगदान देती, विश्व  की प्रमुख नदियां गंगा, सिंधु , अमेज़न, नील, थेम्स,  यांग्त्सीग्यांग का अपना महत्व है।
 छोटी-छोटी नालियां मिलकर नालु का निर्माण करती, अनेक नाले मिलकर छोटी नदी  वह बहुत सारी छोटी नदियां मिलकर एक महानदी का निर्माण करने में सहायक होती है, जिनका प्रवाह हजारों किलोमीटर तक होता है, नदियां प्राकृतिक वातावरण को संवारने का काम भी करती, इनके किनारे के चारों ओर प्राकृतिक संपदा वन, वन्य जीव, वनस्पति बहुतायत में पाई जाती, जो वातावरण के संतुलन को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती, प्राकृतिक संसाधनों में नदियों का अपना स्थान रहा, जंगलों की बहुतायत, शुद्ध प्राकृतिक वातावरण, निश्चित समय बदलता मौसम चक्र, सामाजिक जल प्रबंधन की व्यवस्था जल स्रोतों को जीवंत बनाए रखने में अपनी अहम भूमिका निभाते, विपरीत इसके नष्ट होते जंगल, बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण, बदलते मौसम चक्र, सामाजिक जल प्रबंधन की व्यवस्था के खत्म होने के साथ ही पानी की किल्लते बढ़ती गई,  प्राकृतिक जल संसाधनों पर स्वामित्व की भावना से छेड़ - छाड़ प्रारंभ के साथ पिछले तीन दशक से पानी को लेकर लोगों के सोच बदल गई और "हमारा पानी हमारा अधिकार" की नीति ने सभी छोटे छोटे जल स्रोतों को कु-  प्रबंधन  के तहत मिटा दिया। जिससे छोटे नाले मिट गए, नदियां सिमट गई, सदा नीर बहाने वाली नदियां कूड़ा पात्र बन कर रह गई, भराव क्षमता वाले क्षेत्रों व पर पानी की किल्लत बनी, कृषि योग्य क्षेत्र  "डार्क जोन"  बन गये, पानी पर मालिकाना हक होना दिनों दिन आपसी तनाव पैदा करने वाला बनता जा रहा है। आपसी भाईचारा खत्म हो रहा है पानी के स्रोत ढूंढने के लिए एक दूसरे की खिंचाई में लगे, जिससे आगे जाकर एक बहुत बड़ी सामाजिक वैमनस्यता की भावना प्रत्येक व्यक्ति में पैदा होने की संभावना बनी है।
प्रकृति ने सभी संसाधन हर एक प्राणी के उपयोग के लिए बनाया, "जल ही जीवन है " जल पर बढ़ता एकाधिकार विनाश का संकेत, पानी के ऊपर सभी प्राणियों का समान अधिकार, पानी सभी स्थानों तक सामान पहुंचाने में नदियों का अपना महत्व, नदियों पर बढ़ते अतिक्रमण प्रदूषण अनावश्यक अवरोध से नदियों का स्वच्छंद बहना बंद हो गया है जो आपसी समरसता को खत्म कर रहा है अतः सामाजिक समरसता को बनाए रखने के लिए नदियों के उद्गम से समापन तक मानव द्वारा निर्मित अवरोध हटाए जाने चाहिए, जिससे प्रत्येक प्राणी अपने हिस्से का पानी ले सके व सामाजिक भाईचारा बना रह सके।

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