वन सम्पदा के साथ छेड़छाड़ पर्यावरण के लिए घातक- मीणा
"प्रकृति हमेशा अपने मिजाज से चलती, मानव प्रकृति के विपरीत अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए उसके साथ छेड़छाड़ करता", परिणाम स्वरूप प्रकृति प्रदत वे सभी संसाधन जो मानव को एक उपहार के रूप में प्राप्त हुएं, विलुप्त होने के साथ मानव को विनाश की ओर लाकर खड़ा कर दिया। मानवीय आवश्यकता, फैलाव, अविष्कार, विकास के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों (पहाड़ों, पर्वतमालाओं, वनों, वनस्पतियों, नदियों, मीठे जल के भंडारों, कृषि जींसों) से विकास के नाम पर की गई यह छेड़छाड़ विनाश के रास्ते साफ करते हुए संकेत स्वरूप विभिन्न आपदाएं मानव को भुगतने को मजबूर की जैसे ग्लोबल वार्मिंग, बढ़ता प्रदूषण, उत्तराखंड की तबाही, दिल्ली जैसे शहर में कम होती (ऑक्सीजन) सांसे आदि आदि। प्रकृति व प्राकृतिक संसाधनों से छेड़छाड़ अनेक समस्याओं की जननी बन गई, नदियां लुप्त होने लगी, जंगल सिकुडने लगे, वनस्पतियों खत्म होने लगी, पीने योग्य पानी की कमी पैदा हुई, कृषि जींसों से पोषकता समाप्त होने के संकेत सामने आएं। वनस्पति - वन्य जीव के साथ बदलते प्रकृति के नेचर से आगामी पीढ़ियों के लिए घातक सिद्ध होने के सीधे संकेत हैं।
प्रकृति ने सभी जीवो को मध्य नजर रखते हुए प्राकृतिक वातावरण का निर्माण किया। जिसमे जल, थल , नभ के सभी जीव- जंतु, पशु -पक्षी, कीट -पतंगे हमेशा खुशमिजाज से अपना जीवन प्रकृति के साथ रहते हुए आनंदमई जी सकते, इन सबके भोजन आवास वास्ते वन संपदा, नदी नाले ऐसा माध्यम है जो आवश्यकता की पूर्ति करता, अनुकूल वातावरण बनाता।
परिस्थितियों को समझते हमें वन, वन क्षेत्र, वनस्पति, वन्य जीव- जंतु, पशु- पक्षियों से अच्छे संबंध बनाने चाहिए, इनकी सुरक्षा के लिए वन क्षेत्र में उपजे घांस, झाड़ियों, फल फूल, सूखी लकड़ियां सहित वे सभी उपजे जिन्हें वन्यजीव अपने भोजन में काम लेते हों, हमें त्यागना ज़रुरी। हमें अपने नेचर में बदलाव करना होगा। वनों से स्वच्छता, सुंदरता मीटी , वही वन्य जीव, कीट- पतंगों, पक्षियों की सैकड़ों प्रजातियां जो प्राकृतिक वातावरण को स्वच्छ बनाने का कार्य करती रही लुप्त होने की स्थिति में पहुंच गई। गिद्ध, चील, कोए, सियार प्रकृति की स्वच्छता को बनाने में मददगार होते हैं, लेकिन इनके अनुकूल वातावरण नहीं होने के कारण यह लुप्तप्राय हो चुके, परिणाम स्वरूप प्रकृति की स्वच्छता समाप्त होने लगी। बढ़ते प्रदूषण के कारण सोन चिरैया, बटेर, हरे कबूतर, काले तीतर जैसी विभिन्न प्रजातियों के पक्षी लुप्त होने लगें, सेंकड़ों प्रजातियों की वनस्पति अपना अस्तित्व खो चुकी।
प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण व पर्यावरण को लेकर काम कर रहें अलवर, राजस्थान के एल पी एस विकास संस्थान का मानना है कि वन, वनस्पति, वन्यजीव के संरक्षण, धरती की आर्द्रता बनाने, पर्यावरणीय संरक्षण के साथ ग्लोबल वार्मिंग को रोकने वास्ते हमें वन सम्पदा के संरक्षण में सहयोग के साथ वनोपज से कोई लाभ नहीं लेना होगा, जिससे नई वनस्पतियां जन्म ले सकें, वन्य-जीवों को संरक्षण प्राप्त हो व प्राकृतिक वातावरण स्वच्छ, सुंदर बन सकें। लेखक के अपने निजी विचार है।
- लेखन :- रामभरोस मीणा