केंद्र की मोदी सरकार ने 2017 में इलेक्टोरल बॉन्ड की घोषणा की थी। इसके बाद 29 जनवरी 2018 को इसे लागू कर दिया गया था। तब इस स्कीम को लेकर तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि इसे लागू करने का मुख्य मकसद चुनावी चंदे में पारदर्शिता लाना है। हालांकि, हाल में ही सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को पूरी तरीके से असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में लगातार सुनवाई जारी है। सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया को फटकार भी लगाया था। इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर चर्चा उस समय तेज है जब देश आम चुनाव की दहलीज पर खड़ा है। इसको लेकर जबरदस्त तरीके से राजनीति हो रही है।
किसकी कितनी कमाई
भाजपा को 2018 में चुनावी बॉण्ड योजना के लागू होने के बाद से इनके माध्यम से सबसे अधिक 6,986.5 करोड़ रुपये की धनराशि प्राप्त हुई, इसके बाद पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस (1,397 करोड़ रुपये), कांग्रेस (1,334 करोड़ रुपये) और बीआरएस (1,322 करोड़ रुपये) का स्थान रहा। आंकड़ों के मुताबिक, ओडिशा की सत्तारूढ़ पार्टी बीजद को 944.5 करोड़ रुपये मिले। इसके बाद द्रमुक ने 656.5 करोड़ रुपये और आंध्र प्रदेश की सत्तारूढ़ पार्टी वाईएसआर कांग्रेस ने लगभग 442.8 करोड़ रुपये के बॉण्ड भुनाए। जद (एस) को 89.75 करोड़ रुपये के बॉण्ड मिले। तेदेपा ने 181.35 करोड़ रुपये, शिवसेना ने 60.4 करोड़ रुपये, राजद ने 56 करोड़ रुपये, समाजवादी पार्टी ने चुनावी बॉण्ड के जरिए 14.05 करोड़ रुपये प्राप्त किए। आंकड़ों में कहा गया कि अकाली दल ने 7.26 करोड़ रुपये, अन्नाद्रमुक ने 6.05 करोड़ रुपये, नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 50 लाख रुपये के बॉण्ड भुनाए।
विपक्ष कर रहा मुद्दे को भुनाने की कोशिश
विपक्षी दल इलेक्टोरल बॉन्ड के बहाने केंद्र की भाजपा सरकार पर जबरदस्त तरीके से हमलावर है। इसे भ्रष्टाचार बताया जा रहा है। काला धन बताया जा रहा है। साफ तौर पर कहा जा रहा है कि इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए भाजपा वसूली कर रही है। कांग्रेस ने सरकार पर चुनावी बॉण्ड योजना के माध्यम से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खातों में काला धन भेजने की ‘‘साजिश’’ रचने और ‘‘लाभ लेकर फायदा पहुंचाने’’ का रविवार को आरोप लगाया। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि चुनावी बॉण्ड ‘‘घोटाले’’ को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह जवाबदेह हैं। राहुल गांधी ने शुक्रवार को भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की ओर से लायी गयी गई चुनावी बॉण्ड योजना को “दुनिया का सबसे बड़ा ‘एक्सटॉर्शन रैकेट’ (जबरन वसूली गिरोह)” और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के “दिमाग की उपज” करार दिया। इस योजना को अब रद्द कर दिया गया है। कुल मिलाकर देखें तो विपक्षी दल इलेक्टोरल बॉन्ड के बहाने मोदी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रही है। विपक्ष इलेक्टोरल बॉन्ड को इस तरीके से पेश कर रहा है जैसे यह पूरी तरीके से भ्रष्टाचार के लिए किया गया है। जाहिर सी बात है चुनावी मौसम में मोदी सरकार को घेरने का विपक्ष को बड़ा हथियार मिल गया है। हालांकि देखना होगा की जनता विपक्ष की बातों को कितना ध्यान से सुन पाती है।
भाजपा का दावा
दूसरी और भाजपा भी अपने तरीके से इलेक्टोरल बॉन्ड को समझने की कोशिश कर रही है। अमित शाह ने तो साफ शब्दों में कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड का पैसा काला धन नहीं है। उन्होंने कहा कि गोपनीय तो तब होगा ना जब कैश से चंदा लिया जाएगा। कांग्रेस पार्टी को गोपनीयता से कुछ लेना-देना नहीं है। क्या पहले चुनावी चंदा नहीं आता था, पारदर्शिता के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड लेकर आए थे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने करोड़ों में चुनावी चंदा लिया था। इसी चक्कर में उसके कई नेता जेल भी गए थे। महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने राहुल गांधी पर पलटवार किया। उन्होंने सवाल किया कि क्या राहुल उनकी पार्टी को बॉण्ड के जरिये मिली राशि लौटाएंगे। फडणवीस ने कहा कि गांधी चुनावी बॉण्ड के आलोचक हैं क्योंकि इस योजना ने चुनावों के वित्तपोषण के लिए उनकी पार्टी के काले धन के स्रोत को बंद कर दिया है। रविशंकर प्रसाद ने कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना एक बहुत ही प्रशंसनीय उद्देश्य के लिए लाई गई थी- चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता लाना और चुनावों के दौरान नकदी के प्रवाह को कम करना। यहां तक कि दानकर्ता भी गोपनीयता चाहते थे... यह एकमात्र प्रयास नहीं है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता लाने के लिए किया था।