वृक्ष लगाओ पर्यावरण बचाओ
उदयपुरवाटी(सुमेर सिंह राव)
बिना अनुमति के हरे वृक्ष काटने के कारण किसानों को अनावश्यक रूप से न्यायालयों के चक्कर काटने पड़ जाते हैं आइये हरे वृक्षों संबंधी खास खास प्रावधानों पर चर्चा करें- वृक्ष उस जमीन का अभिन्न हिस्सा हैं जिस पर वह स्थित है ।
यदि किसी किसान की भूमि के सटते हुए राजकीय भूमि है और वह भूमि राजकीय सड़क के किनारे है तो कोई भी व्यक्ति उस भूमि पर पेड़ लगा सकता है पेड़ उसकी संपत्ति रहेगा। कोई व्यक्ति अपनी कृषि भूमि पर उगे हरे वृक्षों को अपनी वास्तविक घरेलू या कृषि उपयोग हेतु हटाना चाहता है तो तहसीलदार को आवेदन देना होगा. तहसीलदार हल्का पटवारी से आवेदन पत्र की जांच कराएगा जांच से संतुष्ट होने पर इच्छित पेड़ काटने की स्वीकृति इस शर्त के साथ देगा कि एक के स्थान पर दो पेड़ लगाएगा। तहसीलदार अधिकतम 15 पेड़ों की अनुमति देगा। वृक्ष काटने की अनुमति निम्न कारण पाए जाने पर देगा-
1.कृषि कार्यों के लिए 2.पेड़ काश्त या रास्ते आदि में अड़चन पैदा कर रहे हैं 3.सूख गये हों 4.फलदार पेड़ परिपक्व हो गए हों या सड़ने लगे हों 5.पेड़ इतने घने हैं कि मिट्टी का उपजाऊपन नष्ट हो रहा हो.
यदि नियमों के विपरीत कोई व्यक्ति हरे पेड़ काट लेता है तो तहसीलदार द्वारा उपखंड अधिकारी के यहां राजस्थान काश्तकारी अधिनियम 1955 की धारा 86 के अंतर्गत इस्तगासा पेश करना होगा जिसमें पेड़ को जप्त कर कब्जे राज लेकर फर्द पेश करनी होगी और हरे वृक्ष उसी व्यक्ति ने काटे हैं यह सिद्ध करना पड़ेगा, पेड़ काटने वाले को भी अपना कथन साबित करने का पूरा अवसर देना होगा।
दोष सिद्ध पाए जाने पर प्रति पेड़ ₹100 जुर्माना व पेड़ सरकारी संपत्ति हो जाएगा।यदि पश्चातवर्ती अपराध पाया जाए तो जुर्माना दुगुना लगाया जाएगा।
मालूम हो यह नियम पेड़ों की अवैध कटाई व शुद्ध पर्यावरण बनाए रखने के उद्देश्य से बनाए गए हैं, अतः जब अत्यावश्यक हो तब ही कोई पेड़ काटा जावे। गत कोरोना काल में पेड़ों की कीमत के बारे में दुनिया जान चुकी है किस प्रकार ऑक्सीजन की किल्लत के चलते लाखों लोग मृत्यु को प्राप्त हो गए थे।
(मंगल चंद सैनी पूर्व तहसीलदार , लेखक के ये विचार व्यक्तिगत हैं )