राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर विशेष: विचारों पर आधारित समाचारों की बढने लगी संख्या
आज पत्रकारिता का क्षेत्र काफी बढ़ चुका है। पत्रकारिता जन-जन तक सूचना शिक्षाप्रद एवं मनोरंजन संदेश पहुँचाने की कला एंव विधा है। तथ्य यथार्थ संतुलन एंव वस्तुनिष्ठता इसके आधारभूत बिंदु है। परंतु इनकी कमियाँ आज पत्रकारिता के क्षेत्र में बहुत बड़ी त्रासदी साबित होने लगी है। पत्रकार चाहे प्रशिक्षित हो या गैर प्रशिक्षित यह सबको पता है कि पत्रकारिता में तथ्य होने चाहिए। परंतु तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर, बढ़ा-चढ़ा कर या घटाकर सनसनी बनाने की प्रवृति आज पत्रकारिता में बढ़ने लगी है।
खबरों में पक्षधरता एवं अंसतुलन भी प्रायः देखने को मिलता है। इस प्रकार खबरों में निहित स्वार्थ साफ झलकने लग जाता है। विचारों पर आधारित समाचारों की संख्या बढऩे लगी है। समाचार विचारों का जन्मदाता होता है। इसलिए समाचारों पर आधारित विचार तो स्वागत योग्य हो सकते हैं। परंतु विचारों पर आधारित समाचार अभिशाप की तरह है।
मीडिया को समाज का देश का चौथा स्तंभ माना जाता है। इनमें समाचार मीडिया है चाहे वे समाचारपत्र हो या समाचार चैनल उन्हें मूलतः समाज का दर्पण माना जाता है। दर्पण का काम है । दर्पण की तरह काम करना ताकि वह समाज की सही रूपेण तस्वीर समाज के सामने पेश कर सकें। परंतु कभी-कभी निहित स्वार्थों के कारण समाज की उल्टी, अवास्तविक, काल्पनिक एवं विकृत तस्वीर भी सामने आ जाती है। खोजी पत्रकारिता के नाम पर आज हमारे कुछ पत्रकारों के जीवन का अभिन्न अंग बनती जा रही है।
मेरी सोच के अनुसार इन तमाम सामाजिक बुराइयों के लिए सिर्फ मीडिया को दोषी ठहराना उचित नहीं है। समाज में कुछ ऐसी ही स्थिति लागू हो रही है। समाज में हमेशा बदलाव आता रहता है। विकल्प उत्पन्न होते रहते हैं। ऐसी दशा में समाज असमंजस की स्थिति में आ जाता है। ऐसी स्थिति में मीडिया समाज को नई दिशा देता है। मीडिया समाज को प्रभावित करता है लेकिन कभी-कभी येन-केन प्रकरेण मीडिया समाज से प्रभावित होने लगता है। प्रेस दिवस केअवसर पर देश की बदलती पत्रकारिता का स्वागत है। बशर्ते पत्रकार अपने मूल्यों और आदर्शों की सीमा रेखा पर कायम रहे।
- रिपोर्ट- कमलेश जैन लक्ष्मणगढ़ (अलवर)