मंजूर अहमद ने किया समूह के पैसो का गमन फिर आँफिस बंद कर हों गया फरार
उमरियापान (कटनी/ मध्यप्रदेश)तहसील क्षेत्र ढीमरखेड़ा के अंतर्गत आने वाली ग्राम पचपेढी में जीवन ज्योति में मंजूर अहमद ने समूह के लोगों से किश्त लेकर किश्त की कर रहा था हेराफेरी। मंजूर अहमद जीवन ज्योति एनजीओ में मैनेजर एवं किरण यादव को सचिव का पद मिला। उसी एनजीओ के अंतर्गत किरण यादव एस. एच. जी. का कार्य करती एवं मंजूर अहमद के साथ फील्ड का कार्य भी देखती थी। उसके साथ-साथ महिलाओ को लोन की भी सुविधा थी। मंजूर अहमद एवं महिमा के माध्यम से आई. सी. आई. बैंक सिहोरा से लोन मिलता था। ग्रामीण क्षेत्रों में आवागमन बनाकर मंजूर अहमद समूह का निर्माण किया। लोगों में अपनी लोकप्रियता बनाई। आठ वर्षों तक किश्त लेकर के बैंक में समय से जमा किया जाता था। इसी प्रकार ग्राम हल्दी में समूह का निर्माण किया गया जिसमें मां विरासन स्वसहायता समूह और नर्मदा समूह का पैसा समूह के माध्यम से निकाला गया और उन पैसों में मंजूर अहमद को मोह हो गया तो समूह के लोगों से जनपद में पदस्थ ब्लॉक समन्वयक अधिकारी एकलव्य मरावी के नाम से बारह हजार रूपये मंजूर अहमद ने गमन कर लिए। मंजूर अहमद ने जब- जब समूह के अध्यक्ष एवं सचिव से पैसो की मांग की हैं तब- तब उनकी मांग के अनुसार उनको पैसे दिए गए हैं।मंजूर अहमद ने बचे हुए पैसे हल्दी गांव में बने समूह को दे दिए और महीने की किश्त बना दिया। हर माह की एक तारीक को किश्त देनी होतीं थी जो कि समूह की हर सदस्य किश्त देती थी। सचिव किरण यादव को किश्त दी जाती थी तो वो आफिस जाकर मैनेजर मंजूर अहमद को दे देती थी और किश्त को मंजूर अहमद बैंक में जमा कराते थे दस माह तक यही क्रम चला पर ग्यारहवें माह किरण यादव का न ही फोन उठाते हैं न ही किश्त लेने आये और तो और आफिस वाली सिम किरण यादव की बंद करवा दिया बाद में किरण यादव मंजूर अहमद के बारे में समझ पाई तब तक मंजूर अहमद दो माह से आफिस बंद कर माल काटकर दूसरा रास्ता अपना लिया और क्षेत्र से लापता हों गया। अब प्रश्न ये उठता हैं कि समूह की किश्त ग्यारह माह की कौन भरेगा,हल्दी समूह की महिलाओ का कहना हैं, कि- मंजूर अहमद आकर हमारा सारा पैसा भरे जो हमने दिया हैं या फिर जिस बैक में जमा किया हैं उसका प्रमाण दे वरना! आगे की कार्यवाही बहुत बड़ीं की जायेगी जिसकी जवाबदेही मंजूर अहमद की होगी। अभी तो इनके कारनामें की चंदलाइन हैं आगे खुलेगा इनके कारनामे का काला चिट्ठा।
- रिपोर्टर सत्येंद्र बर्मन