ग्वाला बनकर कर रहे परिवार का लालन-पालन:पश्चिमी राजस्थान से मवेशियों का आना शुरू-पापी पेट का सवाल
वैर ,भरतपुर(कौशलेंद्र दत्तात्रेय)
जयपुर नेशनल हाईवे सहित अन्य मार्गों पर इधर से उधर दुधारु व पालतू मवेशियों के झुंड नजर आने लगे हैं। जिन्हे पशुपालक , ग्वाला परिवार सहित पश्चिमी राजस्थान से उत्तरप्रदेश व पूर्वी राजस्थान की ओर आने लगे हैं।बाड़मेर,जैसलमेर, नागौर आदि जिला से ये आ रहे हैं।नागौर जिला निवासी ग्वाला परिवार के मुखिया चंपालाल एव उनकी पत्नी लाडो बाई ने बताया कि पापी पेट का सवाल है, मेहनत व मजदूरी कर परिवार का लालन पालन करते हैं। हर वर्ष 8 सौ से14सौ किलोमीटर का सफर कर दुधारू और पालतू मवेशियों को इधर लाते हैं। उन्होंने बताया कि चारा -पानी का अभाव होने के कारण दुधारु और पालतू मवेशियों को इधर लाते हैं। सड़क मार्ग पर चलने से रास्ता में किसी भी प्रकार का डर- भय नहीं होता है और ना ही किसी भी किसान व अन्य की फसल को नुकसान नही होता है। उन्होंने बताया कि रास्ते में लोगों से मुलाकात और पहचान बनी हुई है। क्योंकि साल 1990 से प्रति साल आ रहे हैं । जिससे रास्ते के गांव के लोगों से हमारी जान पहचान हो गई, जो हर प्रकार की मदद करते है। बाड़मेर जिले के शेरू लाल ने बताया कि हम ग्वाला हैं हमारे इन पशुओं का मालिक कभी कगार हमसे मिलने एव पशुओं को देखने के लिए आते हैं। उनको 12 से 15 हजार रुपए मासिक वेतन और राशन पानी व कपड़ा आदि मिलता है।
- ये आती है मवेशिया
पश्चिमी राजस्थान से आने वाले दुधारू एवं पालतू पशुओं में भेड़ बकरी,गाय,ऊंट,गधा आदि प्रमुख हैं। इनके अलावा मुर्गा- मुर्गी,कुत्ता आदि भी शामिल है।
- घी- दूध बेच खरीदते राशन
जैसलमेर जिला निवासी राधा और रतनीबाई ने मालिक हमें एडवांस में 4 महीने का वेतन पहले ही दे देता है और रास्ते के खर्चे बाबत कुछ नगदी भी पृथक से देता है।रास्ते में गाय,भेड़,बकरी और ऊंटनी का दूध बेचकर हम व हमारे परिवार का लालन व पालन करते हैं जिस दूध- घी को बेचते हैं उसका पैसा मालिक नहीं लेता। ये हमारी मेहनत की मजदूरी है। हम जहा भी रात्रि को विश्राम करते हैं उस खेत में मवेशियों का डेरा डालते हैं, उस खेत का मालिक हमें कभी-कभी पैसा भी दे देते हैं, जो पैसा हमारा होता है।