मीठे पानी के लिए जोहड़ संरक्षण आवश्यक - मीणा

Apr 7, 2022 - 23:22
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मीठे पानी के लिए जोहड़ संरक्षण आवश्यक - मीणा

मानवीय सभ्यता , संस्कृति के उद्गम के साथ पानी संग्रह करने के लिए जोहड़ बनाना प्रारंभ हुआ। जोहड़ भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के हर देश में बनाए जाते रहे,  लेकिन भारतीय संस्कृति में इनका महत्व अन्य देशों की तुलना में अधिक रहा । "जोहड़" अर्थात वर्षा जल संग्रह करने के लिए धरातल पर बनाया गया एक अर्द चंद्राकार स्ट्रक्चर"। यह वर्षा जल संग्रह के साथ पीने के पानी की पूर्ति करता, भूगर्भ जल स्तर बढ़ाता, वनस्पति को जीवित रखता, वन्य जीव, जंतु के लिए जल पूर्ति करता। भारत के प्रत्येक गांव में इनका निर्माण हजारों वर्षों से चला आ रहा।  समाज विज्ञान के उत्पन्न होने के साथ जोहडं संस्कृति के विकास व जल पूर्ति को लेकर समाज कार्यों में योगदान दे रहे सामाजिक संगठन, संस्थाएं, व्यक्ति अपने अनुभव के साथ आवश्यकता व पूर्ति को मध्य नजर रखते निर्माण किया करते।  निर्माण में 100 प्रतिशत जन सहयोग, भामाशाह का योगदान, सेठ साहूकार के साथ आमजन की धार्मिक भावनाओं से श्रमदान के रूप में काम किया करते,  जिसके चलते भारत में  10 लाख से अधिक छोटे बड़े जोहड़ बने , जो पूर्ण रूप से खरे उतरे ।
राजस्थान में आवश्यकता व आस्था के हिसाब से 2 लाख से अधिक जोहड़ 1990 से पहले बने जिनमें से 80 प्रतिशत खरे उतरे। 1990 के दशक के बाद सामाजिक व्यवस्थाओं में एकाएक आए बदलाव, सरकारी विभागों के बढ़ते हस्तक्षेप, ग्राम पंचायतों के द्वारा निर्माण किए जाने से ये लाभ के सौदा के लिए बनाए गए।  समाज के अनुभवों को नकारा गया, आवश्यकता आपूर्ति के साथ भगोलीक
 स्थिति  को मध्य नजर नहीं रख कर मनचाहे स्थिति में निर्माण किया ।  पुराने जल पात्र उपेक्षा के शिकार रहे, परिणाम स्वरूप इनकी संख्या एकाएक दोगुनी हुई,  लेकिन गुणवत्ता नष्ट हुई साथ ही पुराने जोहड़ भी अनुपयोगी बने ।  महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी ( नरेगा ) कार्यक्रम के आने के बाद जो  समाज की आवश्यकता के लिए, समाज द्वारा, समाज के लोगों ने निर्माण किए, वो 80% नष्ट हो चुके। अतिक्रमण की चपेट में आ गए। उनकी जगह नए जोहड़ का निर्माण किया गया जो मानव, जानवरों, पशु पक्षियों , वनस्पति में से किसी के काम के नहीं रहे। परिणाम स्वरूप आज 70 प्रतिशत लोगों को शुद्ध मीठे पानी  से वंचित रहना पड़ रहा साथ ही पीने योग्य मीठे पानी की समस्या दिनों दिन बढ़ती जा रही जो जोहड़ संस्कृति के लुप्त होने के बदोलत उत्पन्न समस्या है। 
   जोहड़ को बचाने के लिए हमें समाज के अनुभव को काम लेना अति आवश्यक है। आज समाज को जोहड़  की आवश्यकता है। मीठे पानी के स्रोत खत्म होते जा रहे, वर्षा जल का संग्रहण सही नहीं हो पा रहा, भूगर्भिक जल स्तर गिर रहा,  वनस्पतियां नष्ट हो रही, वन्य जीव, पशु पक्षी पानी के लिए हर मौसम में परेशान दिखाई देने लगे, ऐसी स्थिति में समाज विज्ञान के माध्यम से तैयार जोहडो  को अतिक्रमण मुक्त कर पुनः  निर्माण करने की आवश्यकता है, जो हमेशा हमेशा गांव- ढाणी, कस्बा- शहर, को मीठे पिने योग्य जल की पूर्ति करते रहे।  अकाल, द्बकाल,  त्रिकाल में ये हमेशा भरे रहे , इनका जिणणोदार किया जाए, समाज के लिए उपयोगी बनाया जाए, जिससे जल संग्रहण हो, पीपल बरगद जैसे पौधों का विकास हो, समाज व पालतू तथा वन्य जीवो को मीठे पानी की जल पूर्ति हो सकें अन्यथा देश की 75 से 80 प्रतिशत आबादी को 2030 तक  शुद्ध मीठा पानी नसीब होना मुश्किल होगा।

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