घरेलू गैस के बढ़े दाम पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा

Mar 3, 2021 - 18:39
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घरेलू गैस के बढ़े दाम पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा

घरेलू गैस से  बंद  आम आदमी की सब - सीढ़ियां पर्यावरण के लिए बहुत बड़ा खतरा पैदा कर सक्ति है, बढ़ते ग्लोबल वार्मिंग को लेकर एक तरफ पूरा विश्व पर्यावरण प्रदूषण से तंग आ चुका , वहीं भारत में घरेलू गैस के मूल्य में हुआ इजाफा पर्यावरणीय प्रदूषण को बढ़ावा देने का न्योता दे रहा, पिछले एक दशक में घरेलू गैस के बड़े उपभोग  से वन व वन्य क्षेत्रों के साथ निजी क्षेत्र में पौधों की रक्षा में  काफी इजाफा हुआ जो बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण को रोकने में भी सहायक रहा, लेकिन पिछले दो महीनों में गैस के बढ़ते दामों ने सिलेंडर भराने की जगह आम आदमी को सिलेंडर खाली रखने के लिए बाध्य कर दिया । बढ़ते दामों से सिलेंडर रसोई से बाहर होने लगा, वहीं रसोई में जलाऊ लकड़ी वापस आना प्रारंभ हो गई , जो कार्बनिक पदार्थों को बढ़ावा देने के साथ-साथ ग्रामीण विकास शहरी क्षेत्र के वातावरण को दूषित करने में काफी सहयोग करेगी, वहीं स्वच्छ भारत मिशन अभियान असफलता के कगार पर पहुंचने में अधिक समय नहीं लगेगा।
पिछले 24 दिनों में 150 रूपये बढ़े दामों से रसोई से सिलेंडर गायब होने के साथ विवाह , शादी समारोह सहित विभिन्न सामाजिक कार्य कर्मों में गैस के स्थान पर लकड़ी का उपयोग बढ़ने से पौधों पर आरी चलना तेज हो गया ।  घरेलू 823 तथा कांमर्शियल 1625 रू प्रति सिलेंडर आम आदमी की पहुंच से दूर है, पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार की गाइडलाइन के तहत किसान अपने खेत में उपजी पनरी, घास फूस को भी नहीं जला सकता । विभाग की गाइड लाइन में कहा गया है कि पनरी जलाने  से पर्यावरण दूषित होता है । अब सवाल यह उठता है कि क्या किसान, मजदुर अपने दो समय की रोटी तैयार करने के लिए लकड़ी जला पाएगा या नहीं ? लकड़ी जलाने के लिए आएगी कहां से ? क्या जंगल में लकड़ी लाने के लिए उसे परमिशन दी जाएगी अथवा जंगल बचाने के लिए लकड़ी रोकी जाएगी ? वन विभाग के सामने भी यह एक बड़ा संकट खड़ा हो गया है कि आखिर वह जंगल को बचाएं कैसे ? जंगल बचाने के लिए जब तक आम आदमी सहयोग नहीं करता , उसे बचाना बड़ा मुश्किल  है , जलाऊ लकड़ी की आवश्यकता हर एक व्यक्ति को होगी , उसी की पूर्ति करने के लिए वह जंगल की ओर जरूर दौड़ेगा जिसमें वन विभाग  और आम आदमी के बीच जिस प्रकार से वर्तमान में वन्य जीव व मानव के बीच संघर्ष चल रहा है उसी प्रकार से वन विभाग व आम आदमी के बीच में टकराव पैदा होगा, उसके बावजूद भी वनों को बचाना मुश्किल है। 

वनों को बचाया कैसे जाए ? 

प्रत्येक दिन एक परिवार पन्द्रह से बीस किलो जलाऊ लकड़ी उपयोग करने से पुरे देश में ओस्त 22.50 करोड किलो जलाऊ लकड़ी गैस के साथ साथ काम में लेगा, जिससे लगभग चार लाख पौधे प्रति दिन जलाने के काम आयेंगे। वन , बिहड़, चरागाह क्षैत्र, सार्वजनिक जगहों से पौधे , बचाना मुमकिन नहीं, लकड़ी का उपयोग जो बढ़ेगा  वह पर्यावरण के लिए बहुत बड़ा खतरा है, शहरी क्षेत्रों में श्वास लेना मुश्किल हो रहा वही ग्रामीण क्षेत्रों में भी हालात बिगड़ते नजर आ रहे ।
जलाऊ लकड़ी के बढ़ते उपयोग से वनों पर प्रभाव पड़ता है, जिससे वन व वन्य  जीवों का जीवन कष्टमय होने के साथ ही धरा से सुंदरता खत्म हो जाएगी और वातावरण में बढ़ते कार्बनिक पदार्थों से प्राकृतिक संतुलन बिगड़ने से पर्यावरणीय स्वचछता , सुंदरता खत्म होने के साथ तापमान का बढ़ना, मौसम चक्र का बिगड़ने , धरती से जल का गायब होना ग्लेशियरो  का पिघलना आदि के साथ प्राकृतिक आपदाओं में इजाफा होगा जो सम्पूर्ण संजीव जगत के लिए बढ़ा खतरा होगा ।
देश में वन क्षेत्रो पर बढ़ते मानव के दखलन से वन दिनों दिन घट रहें हैं, वन्य जीवों सुरक्षित रहने के लिए उन्हें पहले से ही पर्याप्त जंगल  नही मिल रहें हैं तस्करों द्वारा बेस किमती पौधों को रोज काटा जा रहा जों  रुकने का नामोनिशान नहीं, साथ गैस के बढ़ते दामों से पुनह पौधों पर आरी चलने से नहीं रोका जा सकता, जो बड़ी चिंता का विषय है इसलिए गैस पर बढ़ते दामों पर रोक लगाई जाए,  आम जन को पुनः सब्सिडी दी जाए जिससे पौधों पर चली आरी को रोका जाए तथा स्वच्छ भारत मिशन अभियान को जीवित रखा जा सके अन्यथा सम्पूर्ण भारत प्रदुषित भारत बन कर रह जाएगा।

लेखक:- राम भरोस मीणा

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