भारत को बचाने के लिए निकले लौह पुरुष की कहानी - Sardar Patel: Telling the Untold

देश के स्वाधीनता संग्रमा से लेकर आजाद भारत के निर्माण तक इसे बनाने और संजाने में कई महापुरुषों ने अपना अहम योगदान दिया। जिन्होंने अपने जीवन का पल-पल और सर्वस्व इस देश के लिए न्यौछावर कर दिया। उन्हीं में से एक देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री और पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल थे।

Dec 23, 2023 - 19:39
Dec 23, 2023 - 23:09
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भारत को बचाने के लिए निकले लौह पुरुष की कहानी - Sardar Patel: Telling the Untold
देश के स्वाधीनता संग्रमा से लेकर आजाद भारत के निर्माण तक इसे बनाने और संजाने में कई महापुरुषों ने अपना अहम योगदान दिया। जिन्होंने अपने जीवन का पल-पल और सर्वस्व इस देश के लिए न्यौछावर कर दिया। उन्हीं में से एक देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री और पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल थे। मातृभूमि में आज हम आपको बताएंगे उस महापुरुष की कहानी की कैसे वो वल्लभ भाई से सरदार पटेल बने और उनके जीवन के कुछ अनछुप पहलू और रोचक दास्तां। 
पटेल के जन्म की तारीख क्या है? 
ये बात बहुत कम लोगों को पता है कि सरदार पटेल को ही नहीं पता था कि उनके जन्म की तारीख क्या है? जब 1897 में मैट्रिक के परीक्षा का फॉर्म भरने की बारी आई तो सरदार ने 1875 31 अक्टूबर की तारीख दर्ज कर दिया। फिर हमेशा से ही उनके जन्मदिन की तारीख इसी साल को माना जाता रहा। इस बात को खुद सरदार पटेल ने कई बार स्वीकार किया है। सरदार पटेल के बेहद करीबी नरहरि पारेख ने अपनी किताब में इस बात का जिक्र किया है।
अपने माता पिता की चौथी संतान थे 
साल 1875 में गुलाम भारत के पश्चिमी तट पर स्थित गुजरात के बेहद प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर से करीब 400 किलोमीटर दूर नाडियाड गांव में एक खुशी का मौका आ पहुंचा। मेहनती किसान झावेर भाई पटेल के घर एक बच्चे का जन्म हुआ, जिसका नाम वल्लभ रखा गया। वल्लभ बचपन से ही पढ़ाई में तेज थे। लेकिन शिक्षा के दौरान अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। प्राथमिक शिक्षा अपने गांव कर्मसद से पूरी करने के बाद वे आगे की पढ़ाई के लिए पेटलाद के स्कूल में भर्ती हो गए। 1893 में 18 साल की उम्र में वल्लभ भाई का विवाह झावेर बा से हुआ। 1897 में 22 साल की उम्र में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा माध्यमिक स्कूल से पास की। इसके बाद वकालत की पढ़ाई की और गोधरा में वकालत शुरू कर दी। 
चार साल तक बतौर बैरिस्टर की प्रैक्टिस 
1902 में वो बोरसद में वकालत करने लगे, जहां वो फौजदारी मुकदमे में काफी कामयाब हुए। जिसके कारण वल्लभ भाई की अच्छी खासी शोहरत हो गई। उनका रुतबा लगातार बढ़ता जा रहा था। वो शहर के सबसे महंगे वकील बन चुके थे। एक वक्त ऐसा आया कि उनका रुतबा उनकी शोहरत इस कदर बढ़ चुकी थी कि वो कोई भी केस अपने हाथ में लेते थे तो ज्यादातर में वो जीतते थे। बैरिस्टरी की पढ़ाई के लिए वल्लभ भाई पटेल जुलाई 1910 में लंदन चले गए और मीडिय टेम्पेल से कानून की पढ़ाई की। 1913 में पटेल भारत वापस लौट आए। 
कैसे मिली सरदार की उपाधि 
आजादी के आंदोलन में वल्लभ भाई पटेल का सबसे पहला और बड़ा योगदान खेड़ा आंदोलन में हुआ। ये सरदार पटेल की पहली बड़ी सफलता थी। उसके बाद सरदार एक के बाद एक आंदोलन और सत्याग्रह करते गए। 1922 में बोरसद में सत्याग्रह में उन्होंने हदिया कर को खत्म कराया। 1928 बारडोली सत्याग्रह हुआ। उसके बाद पटेल का नाम देश में फैल गया। यही वो आंदोलन था जिसके बाद वल्लभ भाई सदा के लिए सरदार हो गए। वल्लभ भाई को वारडोली के लोगों ने सरदार की उपाधि से नवाजा। जो आगे चलकर इनकी पहचान बन गई। 
म्युनिसिपैलिटी चुनाव में जीत 
अपने दोस्तों के कहने पर सरदार पटेल म्युनिसिपैलिटी का चुनाव लड़ बैठे और जीत भी दर्ज कर ली। यही से सरदार पटेल के सार्वजनिक जीवन की शुरुआत हुई। 1917 में ही एक बार फिर से गांधी से उनकी मुलाकात हुई। सरदार पटेल ने सबसे पहले वेठ प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई। वेठ प्रथा के तहत अंग्रेजी शासनकाल के तहत सरकारी अधिकारियों के दौरे के दौरान गांव के मजदूरों से बेगारी कराई जाती थी। सरकार ने जब सरदार की नहीं सुनी तो सरदार लोगों के बीच गए और उन्हें समझाया कि ये गैरकानूनी है और इसका विरोध करे। जिसके बाद लोगों ने सरदार की बात मानी। 1918 में खेरा में किसानों की फसल खराब हो गई और नियम के मुताबिक तय मानक से 25 फीसदी कम फसल होने पर सरकार उनसे लगान नहीं वसूलती थी। लेकिन सरकार ने मनमाने तरीके से लगान वसूलना शुरू कर दिया। सरदार ने खुद हालात का जायजा लिया और गांधी से इस आंदोलन को लीड करने को कहा। इस आंदोलन के दौरान ही सरदार पटेल की वेशभूषा में बड़ा बदलाव आया और वो गांधी की तरह ही ठेठ ग्रामीण परिधान पहनने लगे। 
अंग्रेज और जिन्ना की साजिश की नाकाम 
अंग्रेजों ने भारत के दो नहीं बल्कि 565 टुकड़े करने की साजिश रची थी। उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए जो अधिनियम बनाए थे उसकी एक शर्त ये भी थी कि देश में जितनी भी रियासतें हैं वो चाहे तो भारत या पाकिस्तान के साथ रहे या फिर स्वतंत्र देश बन जाए। आजादी के वक्त देश में 565 रियासतें थी। अंग्रेज उन सब को उकसा रहे थे और जिन्ना उन्हें पाकिस्तान से मिलाने का लालच दे रहे थे। नाजुक मोड़ पर हिंदुस्तान खड़ा था और गांधी जी के सामने इम्तिहान बहुत कड़ा था। तभी एक पर्दा गिरता है और दूसरा उठता है और भारत को बचाने के लिए लौह पुरुष निकलता है। सरदार पटेल ने अकेले दम पर अंग्रेजों की नकेल कस दी। उन्होंने 565 रियासतों में 562 को बंटवारे से से पहले ही भारत में मिला लिया। जूनागढ़. हैदराबाद और जम्मू कश्मीर केवल 3 रियासतें रह गई। आजादी के बाद भी मनाने का दौर चला। सरदार पटेल ने जूनागढ़ और हैदराबाद का विलय करा दिया। वहीं 1947 में ही जम्मू कश्मीर का विलय हो गया था। 

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