किसान बाजार से महँगे दामो पर खाद बीज खरीदने को मजबूर:राजस्थान में किसानों को समय पर न सरकारी बीज मिला और न खाद
कैप्टन रामनिवास ताखर ( दलेलपुरा ) / सुमेर सिंह राव
राजस्थान सरकार में एक कृषि विभाग है जिसको चलाने की जिम्मेदारी एक केबिनेट मंत्री की होती है । उनके नीचे कृषि राज्य मंत्री, कृषि सचिव, अतिरिक्त सचिव, उपसचिव सहित कई भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी, राजस्थान प्रशासनिक सेवा के अधिकारी व राजधानी से लेकर जोन, जिला, उपजिला और तहसील स्तर पर बड़े बड़े कृषि अधिकारियों की लंबी चौड़ी फौज होती है। इनके वेतन, भत्ते , गाड़ी, आफिस व अन्य सुविधाओं पर हर साल अरबों रुपये खर्च होते हैं, जो राजस्थान की जनता की गाढ़ी कमाई (टेक्स) से राज्य सरकार इनके वेतन भत्ते व सुख सुविधाओं पर खर्च करती है । ये अधिकारी बड़े बड़े एसी आफिस में बैठ कर अन्नदाता का भाग्य लिखते(योजनाएं बनाते) हैं। इनकी जिम्मेदारी है कि राजस्थान के अन्नदाता को कैसे सम्पन्न किया जाए, कैसे किसानों की आय बढाई जाए, कैसे किसानों की उपज बढ़े, कैसे किसानों की समस्याओं का निराकरण हो, कैसे किसानों को समय पर उन्नत बीज, खाद व कीटनाशक उपलब्ध हों लेकिन दुर्भाग्य से कुछ लापरवाह व निकम्मे अधिकारियों की वजह से किसानों की परेशानी कम होने की बजाय बढ़ जाती है ।
देश की जीडीपी में 18-20 प्रतिशत योगदान कृषि का होता है । जब कोरोना काल मे सब कुछ बंद हो गया था तब भी किसानों ने अपनी जान की परवाह किये बगैर दिन रात मेहनत कर के देश को विकट परिस्थितियों में भी बदतर स्थिति में जाने से बचा लिया था । जो देश पूर्ण रूप से उद्योग धंधों पर आश्रित थे वे कोरोना काल में बर्बाद हो गये ।
राजस्थान की जीडीपी में कृषि का 30 प्रतिशत योगदान होता है । राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने तीसरे कार्यकाल का आखिरी बजट 10 फरवरी 2023 को पेश किया । इस दौरान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने खेती-किसानी से जुड़ी कई बड़ी घोषणाएं की । बजट में कृषि से संबंधित 1,84,311.57 करोड़ रुपये की घोषणाएं की गईं। इस राशि को मुख्य 11 क्षेत्रों में उपयोग लिया जाएगा । इसमें कृषि विभाग के लिए 3306.87 करोड़, उद्यानिकी विभाग के लिए 1211.12 करोड़, पांच कृषि विश्वविद्यालयों के लिए 469.47 करोड़, कृषि विपणन के लिए 461.72 करोड़, पशुपालन विभाग केलिए 707.30 करोड़ रुपये, गोपालन विभाग के लिए 1787.42 करोड़ रुपये और सहकारिता के लिए 1483.75 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है ।
इस वर्ष के बजट में कृषि विभाग को हजारो करोड़ रुपये का आवंटन हुआ जो कुल बजट में करीब 12-13 प्रतिशत है । इसमें वेतन (राजस्व प्राप्तियों का करीब 33-35 प्रतिशत), पेंशन (राजस्व प्राप्तियों का करीब14-15 प्रतिशत) तथा व्याज भुगतान (राजस्व प्राप्तियों का करीब 15 प्रतिशत) पर व्यय शामिल है । अब बचा करीब 35 प्रतिशत उसमें भी इनके अलावा कृषि विभाग के अधिकारियों के आफिस का खर्चा , गाड़ियों का खर्चा, सेमीनार का खर्चा , कृषि अधिकारियों के विदेशी टूर का खर्चा , नए बीज के लिए शोध का खर्चा , कृषि फार्म हाउस जहाँ बीज तैयार किया जाता है उसका खर्चा, बीज का भंडारण तथा बीज को किसानों तक पहुंचाने में जो ट्रांसपोर्ट का खर्चा ये सब होने के बाद किसानों के लिए बजट में मुश्किल से 10-15 प्रतिशत की राशि ही बचती है । किसान को यदि ये 10-15 प्रतिशत हिस्सा भी मिल जाये तो किसान खुश है लेकिन इन लापरवाह व निक्कमे भ्रष्ट अधिकारियों के कारण किसानों तक बजट का 2-3 प्रतिशत ही उन्नत बीज के रूप में पहुँच पाता है लेकिन वो भी समय पर नही जो बड़े ही सोचने, ध्यान देने वाला विषय है क्योंकि यदि किसान बचेगा तो ही देश बचेगा, यदि किसान नही बचा तो देश व प्रदेश बर्बाद हो जाएंगे।
वैसे तो ये हर साल की समस्या है । किसान सिर्फ किसी एक पार्टी की सरकार को ही इस के लिए दोषी नहीं ठहराता । सरकार चाहे बीजेपी की हो या कांग्रेस की इन लापरवाह व निकम्मे अधिकारियों का रवैया हमेशा एक जैसा ही रहता है और इनका खामियाजा भुगतते हैं बेबस, लाचार गरीब किसान। आज तक किसी भी सरकार ने इनके रवैए को बदलने और इन निकम्मे अधिकारियों पर लगाम कसने की कोशिश नहीं की। यही वजह है कि आज किसानों की हालत बद से बदतर हो गई है और किसान आये दिन आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो रहे हैं। कभी कोई छोटी मोटी शिकायत होती है तो जाँच के नाम पर लटका दी जाती है और कुछ दिन बाद उनके बड़े अधिकारी अधीनस्थ कर्मचारियों को एक नोटिस देकर मामला रफा दफा कर देते हैं, क्योंकि उन पर कार्यवाही इसलिए नहीं हो सकती कि उसमें इन छोटे कर्मचारियों का कोई खास दोष नहीं होता और इनकी आड़ में बड़े बड़े अधिकारी बच जाते हैं जो असली गुनहगार होते हैं। यही इन कमेटियों का और लोगों की शिकायत का हश्र होता है । ये कमेटियां इसलिए बनाई जाती हैं कि लोगों के उस समय के गुस्से के उबाल को ठंडा किया जा सके।
मैं यहाँ जिक्र करना चाहूँगा इस साल की किसानों की सबसे बड़ी त्रासदी जिससे किसानों की कमर टूट गई और उस कोढ़ में खाज का काम किया इन लापरवाह व निकम्मे अधिकारियों ने। इस साल मार्च के आखिर व अप्रैल के सुरु में सरसो, चने व गेहू की फसल जैसे ही पक कर तैयार हुई बेमौसमी बारिश ने पूरी पकी पकाई फसल को बर्बाद कर दिया । किसान का कोई नहीं ना राज और ना राम। किसानों ने अपने चेहरे की मायूसी को इस लिए छुपा लिया कि अपने भाग्य में ये ही लिखा है। जितना भाग्य में लिखा है उतना ही मिलेगा समझकर सन्तोष कर लिया ।
जिन अधिकारियों पर किसानों को समय पर खाद व उन्नत बीज उपलब्ध करवाने की जिम्मेदारी है उन्होंने किसानों को समय पर बाजरा, गुवार, मूंग, मोठ आदि फसलो का बीज ही उपलब्ध नही करवाया । किसान इन अधिकारियों से गुहार लगाता रहा कि हमे उन्नत किस्म का बीज उपलब्ध करवाओ, लेकिन ये निकम्मे अधिकारी किसानों को झूठे आश्वासन देते रहे कि बीज आज आएगा - बीज कल आएगा । लेकिन बीज नहीं आया और किसान या तो बाजार से ऊंचे दामों पर बीज खरीदने के लिए मजबूर हुए और जो किसान बाजार से बीज नहीं खरीद सकता था उसने अपने या अपने पड़ोसी के घर में जो बीज उपलब्ध था उसी को बो दिया। मजबूरी में बोए गए इस घर के बीज का पैदावार पर सीधा असर पड़ेगा। इसकी पैदावार उन्नत बीज के बजाय आधी या उससे भी कम होगी। हमारे वैज्ञानिक बड़े परिश्रम व कई साल की मेहनत से उन्नत बीज तैयार करते हैैं जिसकी सामान्य बीज से दुगनी तिगुनी पैदावार होती है। इसका किसानों को फायदा तभी मिलता है जब ये समय पर किसानों को मिले और समय पर खेत मे बुवाई हो । इन लापरवाह व निकम्मे अधिकारियों की वजह से राजस्थान में खरीफ की फसल में हजारों टन बाजरा, दलहन व तिलहन की पैदावार में कमी होगी और इसका खामियाजा भुगतेंगे लाचार व बेबस किसान । किसानों के इस नुकसान के लिए सीधे तौर पर ये निकम्मे अधिकारी गुनाहगार हैं ।
इस साल भी मार्च/अप्रेल में बेमोसमी बारिश से किसानों को जो नुकसान हुआ था उसकी थोड़ी बहुत भरपाई हो सकती थी क्योकि किशानो ने अपनी जमीन बुवाई व जुताई कर के खरीफ की फसलों के लिए जमीन तैयार कर ली ताकि मई के आखिर या जून के सुरु में जैसे ही बारिश हो तो बुवाई की जा सके लेकिन इन अधिकारियों ने किसानों के साथ ये घोर पाप व अन्याय किया है । इतना अन्याय तो किसान सहन कर लेते क्योंकि इतना तो वो हर साल सहन करते हैं। इतना अन्याय सहन करने की तो मजबूरी में किसानों की आदत हो गई है लेकिन इन लापरवाह व निक्कमे अधिकारियों का असली खेल अब शुरु होता है । जब पूरे राजस्थान में मई/जून में खरीफ की बुवाई पूरी हो गई तब ये भ्रष्ट निक्कमे अधिकारी अपना असली खेल शुरु करते हैं । खरीफ की बुवाई के बाद जुलाई में बीज वितरण का ढोंग करते हैं । हर पंचायत में कर्षि पर्यवेक्षको के माध्यम से थोड़ा- थोड़ा बीज भेजते हैं और अपने कर्मचारियों पर दबाव बनाते हैं कि ये बीज आपने किसानों को हर हालत में वितरित करना है । इसके साथ कुछ किसानों को सब्जियों के बीज मुफ्त देने की योजना भी बनाते हैं और किसानो को बीज लेने के लिए मजबूर करते हैं । ये अधिकारी अपने कर्मचारियों पर ये भी दबाव बनाते हैं कि आप अपने व्यक्तिगत सम्बन्धों का हवाला देकर या किसी भी तरीके से इस बीज को वितरित करना है नहीं तो पूरे कृषि विभाग की पोल खुल जाएगी और फजीहत होगी सो अलग। यही हालात चने की फसल बुवाई के समय भी थे चने व सरसों की पूरी बुवाई हो गई उसके बाद कर्षि विभाग चने व सरसो का बीज वितरित कर रहा था।
हर वर्ष इस तरकीब से जो बीज विभाग के बड़े बड़े गोदामों में किसानों के लिए रहता है उसको आराम से बाजार में बीज विक्रेताओं को दिया जाता है और ये विक्रेता किसानों से मन माफिक रकम वसूलते हैं। किसान का बाजरा 18 - 20 रुपये प्रति किलो बिकता है और बाजार में बाजरे के डेढ़ किलो (1.5 किलो बाजरे की थैली) बीज की कीमत 600 से 700 रुपये है। कई बार तो किसान खुद के पास नगदी रुपये नहीं होने के कारण मजबूरी में अपने घर का बीज ही डाल देता है जिसकी पैदावर बहुत कम होती है।
इन दिखावटी योजना (घोटालों) के पीछे इन बड़े अधिकारियों का कहीं नाम नहीं होता और कहीं कोई शिकायत भी नहीं होती है क्योंकि कोई शिकायत होगी तो इन कर्मचारियों पर डाल दी जाती है और फिर ये अधिकारी खुद इन कर्मचारियों को भी बचा लेते हैं । इस तरह बड़े अधिकारी आराम से अपना काम करते रहते हैं।
सरकार को इस मसले की गहन जांच कर दोसी अधिकारियों की खिलाफ सख्त से सख्त कार्यवाही करने चाहिए ताकि आगे से किसानों को समय पर उन्नत बीज व खाद मिल सके। केंद्र सरकार की तर्ज पर राजस्थान सरकार की और से भी सरकारी बीज की जगह किसानों को उनके खाते में नगद रुपया मिलना चाहिए ताकि किसान समय पर बीज खरीद सके और इन बेईमान अधिकारियों की मनमानी खत्म हो सके।