क्या कानून से परे है बजरी लीज धारक: आखिर कार्रवाई करने से क्यों कतरा रहा प्रशासन
जहाजपुर (भीलवाडा, राजस्थान/ आज़ाद नेब) बजरी लीज धारक द्वारा कृषि भूमि का बिना रूपांतरण किए गैर कृषि/ व्यवसायिक कार्य में उपयोग लेने, धर्म कांटों का अवैध संचालन कर सरकार के राजस्व को नुकसान पहुंचा जा रहा है। बाहरी लोगों का पुलिस सत्यापन नहीं करवाने के बावजूद भी सरकारी अफसर लीज धारक के खिलाफ कार्रवाई करने से आखिर क्यों कतराते रहे है। यह समझ से परे है।
नेशनल हाईवे 148D पर की बिना एन एच की स्वीकृति के सड़क सीमा से तकरीबन तीस से चालीस फ़ीट की दूरी पर ही धर्म कांटे स्थापित कर अवैध रूप से काम का संचालन करने की कारगुज़ारी की जा रही है लेकिन ना तो नेशनल हाईवे अथॉरिटी ने रोकने व टोकने की जहमत उठाई है। जबकि नेशनल हाईवे की धारा 42 के तहत रोड के बीच से 30 मीटर जगह छोड़ कर निर्माण कार्य करने का प्रावधान है।
बजरी लीज धारक ने जहाजपुर क्षेत्र में कृषि भूमि का बिना रूपांतरण किए गैर कृषि/ व्यवसायिक कार्य में अवैध धर्म कांटे स्थापित कर उपयोग मे ले कर सरकार के राजस्व को नुकसान पहुंचा रहा है। कानून के मुताबिक रूपांतरण द्वारा आवासीय या औद्योगिक या वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिए एक इमारत बनाना चाहते हैं, तो यह संभव है। कानून कृषि भूमि पर किसी भी तरह के निर्माण की अनुमति नहीं देता है। या यूं कहें कानून में संपत्ति के मालिक की परवाह किए बिना कृषि भूमि पर मकान, कारखाने, उद्योग आदि बनाने की अनुमति नहीं है। कृषि भूमि को गैर-कृषि भूमि में परिवर्तित करने के बाद ही उस ज़मीन पर कोई निर्माण हो सकता है। लीज धारक सारे कानून को धता बताकर अपनी मनमानी कर रहा है।
लीज धारक के तकरीबन चालीस से पचास व्यक्ति कार्य कर रहे है जिसमें अधिकतर जिले के बाहर के हैं। किसी भी कर्मचारीयों के पास लीज संबंधित पहचान पत्र नहीं है। क्षेत्र के चारों थानों में इनकी पहचान के कोई दस्तावेज का पुलिस सत्यापन नहीं करवाया गया ओर ना किसी एजेंसी के मार्फ़त इनको लाया गया है। आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत आने वाली धारा 144 यूं तो शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए लगाई जाती है। लेकिन इसी धारा के तहत ही मकान मालिक व नौकरी दाता को आदेश रहता है, अपने घर में रहने वाले बाहरी लोगों और नौकर या कर्मचारियों का पुलिस सत्यापन करवाएं। आईपीसी धारा 188 के अनुसार अगर वेरिफिकेशन नहीं कराने पर किसी को परेशानी होती है या फिर चोट लगती है तो एक माह का कारावास या 200 रुपए का जुर्माना या फिर दोनों हो सकते हैं। इसके अलावा मानव जीवन, सुरक्षा व दंगे होते हैं तो छह माह का कारावास या एक हजार रुपए का जुर्माना या फिर दोनों हो सकते हैं।
लीज धारक के कार्मिकों द्वारा लोगों से मारपीट करने से कानून की सरेआम धज्जियां उड़ाई गई बावजूद इसके कानून के कारिंदे द्वारा कार्रवाई अमल में नहीं लाना पुलिस की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह तो अंकित करता ही है साथ ही पुलिस पर भी सवालिया निशान लगाता है। लगातार मीडिया में खबरें प्रकाशित होने के बावजूद स्थानीय प्रशासन द्वारा अभी तक कोई कार्यवाही अमल में नहीं लाई गई है आखिर अफसरों की ऐसी क्या मजबूरी है की जानकारी होने पर भी कार्रवाई नहीं कर सकते क्या बजरी लीज धारक कानून से भी ऊपर है।