शीतला (चावंड) माता का मेला भरा: जयकारों से गूंजा माता का मठ
बड़ौदामेव (अलवर, राजस्थान/ रामबाबू शर्मा) अलवर-भरतपुर रोड़ पर स्थित ग्राम जुगरावर में चावंड माता के मंदिर पर चावंड माता के लक्खी मेले का आयोजन हुआ। इस अवसर पर मंदिर में लगी प्रतिमाओं का आलौकिक श्रृंगार कर मन्दिर को आकर्षक लाइटों से सजाया गया। मंदिर के सेवक मनीष प्रजापति ने बताया कि बड़ौदा मेव कस्बे से 5 किलोमीटर दूर अलवर भरतपुर मार्ग पर स्थित जुगरावर की पहाड़ियों की तलहटी के नीचे स्थित प्राचीन चावंड माता (चामुंडा माता) का मंदिर वर्षों से श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है यहां आस पास सहित दूर-दराज से श्रद्धालु मनोती लेकर आते है ओर मनोकामना पूरी होने पर श्रद्धालु यहाँ आकर मन्दिर में विभिन्न प्रकार के अनुष्ठान करते हैं तथा सवामणी चढ़ाते हैं।यहां पर हर वर्ष की पीपल पूर्णिमा पर विशाल लकी मेले का आयोजन किया जाता है मेले में हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब, दिल्ली, राजस्थान, सहित अनेक जिलो के श्रद्धालु यहां पर पहुंचते हैं और मालपुआ की सवामणी चढ़ाते हैं। और भंडारा करते हैं नवरात्रो के दिन मंदिर में प्रतिदिन दुर्गाष्टमी पर विशेष पूजन कर नवरात्रों में कन्याओं को भोजन कराया जाता है। ग्रामीणों का कहना है कि ज्यादातर माता को मालपुआ का भोग बहुत पसंद है। इसलिए यहां पर श्रद्धालु मालपुआ की सवामणी व भंडारा करते हैं। इधर ग्राम वासियों द्वारा भी ठंडे मीठे पानी की प्याऊ का आयोजन किया जाता है।
लोगों की मान्यता है
मंदिर की प्राचीन मान्यता है कि माता के दरबार में जो भक्त डोरी बांधकर मन्नत माँगता है उनकी मनोकामना पूरी होती है यहां आने वाले श्रद्धालुओं व ग्रामीणों की मान्यता है कि चावंड माता के दर्शन करने से धन्य-धान्य वैभव में वृद्धि होती है प्रत्येक सोमवार को यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं तथा माता को भोग लगाकर दर्शन करते हैं मंदिर के सेवक मनीष प्रजापति ने बताया कि यहां माता के दर्शनों के लिए मुख्य राजस्थान,हरियाणा,दिल्ली पंजाब,उत्तरप्रदेश सहित दूर-दराज से श्रद्धालु माता की पदयात्रा लेकर आते हैं और माता की ध्वजा चढ़ाते हैं वही माता के मंदिर तक डंडोती लगाते हुए भी श्रद्धालु आते हैं। मालपुआ का लगता है भोगमाता के मंदिर में प्रतिदिन अखंड ज्योत प्रज्वलित रहती है यहां, के ग्रामीणों का कहना है कि ज्यादातर माता को मालपुआ का भोग बहुत पसंद है वही मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु माता को मदिरा का भोग भी लगाते हैं।
मंदिर का इतिहास
जुगरावर के चावंड माता (चामुंडा माता) मंदिर का इतिहास बहुत ही प्राचीन है यहा के बुजुर्ग बताते हैं कि करीब 200 सो वर्ष पूर्व गांव के लोगों को माता की आवाज सुनाई देती थी तथा उक्त स्थान पर मंदिर निर्माण के लिए उनके स्वपन में माता दिखाई देती थी।इस पर उस समय यहां के ग्राम वासियों के द्वारा एक चबूतरे का निर्माण कर चावंड माता के मंदिर की स्थापना की गई थी बाद में जैसे-जैसे लोग जुड़ते गए वैसे वैसे ही माता के मंदिर का निर्माण होता गया।। यह चमत्कारी मन्दिर है मन्दिर की प्रशंसा ज्यादातर राजस्थान,दिल्ली,हरियाणा,उत्तर प्रदेश व पंजाब तक पहली हुई।