जुरहरा के बसने के पीछे कहानी मीठा पानी:आज बदला पानी तो खरीद कर या खारा पी रहे पानी लोगो को इन्तजार चंबल के पानी का

Apr 20, 2023 - 16:01
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जुरहरा के बसने के पीछे कहानी मीठा पानी:आज बदला पानी तो खरीद कर या खारा पी रहे पानी लोगो को इन्तजार चंबल के पानी का
जुरहरा, बंजारो द्वारा निर्मित कस्बे का पहला कुआ

जुरहरा,भरतपुर(रतन वशिष्ठ)

जुरहरा कस्बे को बसे करीब 400 वर्ष हुए है, पूर्व में यहां चारो ओर बीडल जंगल था, जिससे होकर बंजारे आस पास के गांवो में आते जाते थे, पूरा जंगल होने के कारण यहां पीने के पानी का कोई स्त्रोत कुआ आदि कोई नही था, बताया जाता है कि उस वक्त बंजारो ने यहां एक कुऐ का निर्माण कराया, पानी मीठा निकला, जिसका उपयोग अपनी यात्रा के दौरान बंजारे करते थे। आज वह कुआ जुरहरा के मेंव मौहल्ला मे मौजूद है जिसे बोडा वाले कुऐ के नाम से जाना जाता है, लेकिन आज उसका पानी पीने योग्य नही है।
जुरहरा कस्बे के चारो ओर बसे गांव सहसन, बमनवाडी, घौसिगा, थलचाना, भण्डारा, पाई, नौनेरा,बामनी, नौगांवा, सहेडा, के अलावा कस्बे से मात्र 2-3 किलोमीटर की दूरी पर बसे हरियाणा सीमान्तर्गत गांव जखोखर, हतनगांव, जैमत,इनका अस्तित्व पहले से था जुरहरा बाद में बसा, इन गांवो से आकर यहां बसे वैश्य परिवार आज भी उन गांवो की पहचान से जाने जाते है, सहसनिया,बमनवाडिया,  जखोखरिया, थलचानिया आदि।
 नौनेरा का राजपूत परिवार सबसे पहले आकर यहां बसा, रहने योग्य आवास बनाया, राजपूत ठाकर जोरावर सिंह के नाम पर जुरहरा नाम पड़ा, इसके पीछे की कहानी एक मान्य किंवदन्ती के अनुसार जोरावर सिंह नौनेरा से अपने भैंसे का पीछा करते इस बीडल जंगल में पंहुचे, उन्हे  प्यास लगी, तो उन्होने बंजारों द्वारा निर्मित कुऐ का पानी पिया, मीठा पानी होने पर जोरावर सिंह ने यहां बसने का मन बनाया और सबसे पहले अपना आवास बनाया,  उनके वंशज आज भी यहां रहते है जिन्हे आज भी महलों वाले के नाम से जाना जाता है, वर्तमान में महल तो नही रहे, नव निर्माण हो गए है, कही बचे अवशेष को उनके परिवार के लोग संजोए हुए है। उसके बाद धीरे- धीरे आस-पास के गांवो के लोग रहने के लिए यहां आते गए, ठाकर परिवार के लोगों ने भी एक कुऐ का निर्माण कराया जिसे आज भी सभी ठाकर वाले कुऐ के नाम से लोग
 जानते है,करीब 20-25 वर्ष पूर्व तक लगभग पूरे कस्बे की महिलाऐ इसी कुऐ का पानी भर कर ले जाती देखी गई है, इसके अलावा कस्बे में अन्य कुऐ अस्तित्व में आऐ लेकिन आज किसी का उपयोग नही रहा सभी उपेक्षित है, दूसरे पीने योग्य मीठा पानी नही रहा।
कस्बा निवासी 76वर्षीय पूर्व उप सरपंच बुजुर्ग दीनू ने बताया कि कस्बे के बसने के पीछे की कहानी यहां मीठा पानी ही था, लेकिन अब वो बात नही है, बोडा,गंगल, ठाकर नाम से तीन कुऐ पूरे कस्बे के लिए पेयजल के स्त्रोत थे, और अब हालात यह है कि मीठे पेयजल समस्या से पूरा कस्बा जूझ रहा है, कोई पानी खरीदकर तो कोई खारे से ही काम चला रहा है।
जलदाय विभाग के बोरो का पानी खराब हो चुका है, कस्बे में निजी लगे आरो प्लांट का पानी बिक रहा है, कुछ लोग अभी भी हैण्डपम्प, समरसिबल के खारे पानी को भी उपयोग में लेने को मजबूर है।
लोगो को इन्तजार है चंबल के पानी का

 इस सम्बन्ध में चम्बल जल परियोजना के अधिकारी सुपरवाइजर   विमल तिवारी ने बताया कि कांमा व पहाड़ी तक चम्बल का पानी पंहुच चुका है तथा कांमा से जुरहरा तक लाईन पंहुच गई है कलावटा से जुरहरा के बीच कुछ जगह जहां पाईप लाईन जोड़नी है वह काम पूरा किया जाकर उम्मीद है शीघ्र जुरहरा को भी चम्बल का पानी मिलने लगेगा । सरकार की योजना जल जीवन  2024 तक घर-घर पानी पहुचाने की है।
फिलहाल तो मीठे पानी को लेकर बसा जुरहरा कस्बा आज मीठे पानी को तरस रहा है। लोग खरीद कर पानी पी रहे है।

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