वर्तमान के आधुनिक युग में नदियों के बिगड़ते स्वरूप को बचाना जरूरी
प्रकृति द्वारा उपहार स्वरूप प्राप्त वे सभी प्राकृतिक संसाधन जो प्रकृति के अनुरूप आनंदमय जीवन जीने के लिए प्रकृति के द्वारा हमें प्राप्त कराऐ गये, उन्हें बनाए रखना मानव का पहला धर्म बनने के साथ उनका संरक्षण बहुत जरूरी है । प्राकृतिक संसाधनों (नदी, नाले, पहाड़, वनस्पतियों ) के संरक्षित नहीं रहने पर प्राकृतिक संतुलन बिगड़ने से प्राकृतिक आपदाओं को बढ़ावा मिलता है, वर्तमान में बढ़ते तापमान, खत्म होती वनस्पति, वन्य जीव, पशु- पक्षीयों के साथ घटते ऑक्सीजन की मात्रा यह सभी मानवीय निर्दयता के साथ निजी स्वार्थ से प्रकृति के साथ किए छेड़छाड़ के संकेत हैं ।
नदी - नालों पर भू एवं जल संरक्षण के नाम पर हुए कार्यों के साथ साथ बहाव क्षेत्रों पर बड़ रहें अतिक्रमणों के परिणाम वर्तमान में देखने को मिल रहे हैं, इनका स्वरूप, प्रकृति, प्रवृत्ति, प्रवाह क्षेत्र के साथ ही नेचर भी बदल गया। बदलते स्वरूप के चलते नदिया नालो में और नाले नालियों में तब्दील हो चुके हैं। परिणाम स्वरूप बाढ़, अतिवृष्टि, अनावृष्टि को बढ़ावा मिला । पर्वत, पहाड़,पठार, मैदान चाहें जाहां से स्वच्छंद विचरण करने वाली नदी गंगा, यमुना, चम्बल अथवा स्थानीय मौस्मी नदीयां ही क्यों ना हों। इनके साथ छेड़छाड़ से मानव-निर्मित आपदाओं को बढ़ावा मिला।
नदियों के खत्म होते प्रवाह के कारण नदियों में मोजूद वनस्पतियों नष्ट होने के कगार पर पहुंचने के साथ ही इनमें निवास करने वाले जलीय जीव, वन्य जीव, जंतु, पक्षियों को भी ग्रह लग गया वही ये गंदे नाले में तब्दील हो गई । नदियों में निवास करने वाले सैकड़ों प्रजातियों के जीव अपने आवास को ढूंढते ढूंढते नष्ट होने के कगार पर पहुंच गए। मछली , मगर ,सरीसृप, कछुआ, लोमड़ी, चीते ,आईना, शे, गीदड़ , हरियल , उल्लू , शिकरा , कोयल , तोते, मोर, कठफोड़वा, किंगफिशर, नीलकंठ, काले तीतर, सोनचिरैया, नवला, कोए, चील, जैसे सैकड़ों पक्षी, जानवर नदी नालो में जो स्वच्छंद विचरण करते रहे हैं वो अपने आवास ढुंढते ढुंढते काल के मुंह लग गये अथवा मानव के हाथों शिकार हो गए, यही नहीं इनकी संख्या भी नगण्य हो चुकी ।
वन्यजीवों के आवास खत्म होने के साथ इसका इसका प्रभाव मानव व प्रकृति दोनों पर दिखाई देने लगा है। प्राकृतिक वनस्पति नष्ट हुई, वन्यजीवों, जलीय जीव, आकाश में स्वच्छंद विचरण करने वाले पक्षियों की आवाज खत्म होने से प्राकृतिक आपदाओं को बढ़ावा मिलने की आशंका बनी, वही भूगर्भीय जल प्रवाह विपरीत होने से नदियों के बहाव क्षेत्र में पानी की किल्लत बढ़ने के साथ ही वन्यजीवों के आवास, वनस्पति खत्म होने पर नदियों का पारिस्थितिकी तंत्र बदल रहा है।
नदियों नालों के बदलते स्वरूप, खत्म होती प्राकृतिक संपदा को यदि नहीं बचाया गया तो आने वाले एक दसक बाद स्वच्छंद विचरण करने वाले वन्य जीव, जलीय जीव, पक्षियों की मीठी वाणी के साथ नदीयों के कल कल की आवाज सुनने के मोहताज होने के साथ ही अपने नदियों की संस्कृति को भुल जाएंगे,वही प्राकृतिक आपदाओं, महामारीयों को बढ़ावा मिलेगा। अतः हमें वन, वनस्पतियों के साथ नदीयों को बचाना बहुत जरूरी है जिससे आगे आने वाली पीढ़ी सुरक्षित रह सकें।
- लेखक:- रामभरोस मीना