प्रकृति है मूल शक्ति जिसने अनेक रूपात्मक जगत का किया है विकास :- डॉ. मनीषा शर्मा
आइये लौटें प्रकृति की ओर
विभिन्न ठोस और गैसीय पदार्थ हर दिन हवा में प्रवेश करते हैं। हम कार्बन ऑक्साइड, सल्फर, नाइट्रोजन, हाइड्रोकार्बन, सीसा यौगिकों, धूल, क्रोमियम, एस्बेस्टोस और ना जाने कितने ही विषधारियो से घिरें हुए हैं,जो शरीर पर निरंतर रूप से जहरीले प्रभाव (श्वसन अंगों, श्लेष्म झिल्ली, आंखों की रोशनी और गंध) डाल रहे हैं।
मानव स्वास्थ्य पर पर्यावरण प्रदूषण का प्रभाव सामान्य स्थिति के बिगड़ने में योगदान देता है। जिसके कारण ब्रोंकाइटिस, अस्थमा, मतली, सिरदर्द और कमजोरी जैसी बीमारियाँ शारीरिक तंत्र को कमजोर बनाती है, जिससे शरीर की कार्य क्षमता घट जाती है और आज की वर्तमानस्थिति में कोरोना महामारी ने तो सम्पूर्ण संसार में तहलका मचाया हुआ है।जो मानव जगत के लिये बहुत बड़ा सबक है की जैसे जैसे हम अपने वातावरण के साथ छेड़छाड़ करेँगे नतीजतन मनुष्य को ही उसका भुगतान करना पड़ेगा। प्रकृति की चमत्कारी शक्ति का दुरुपयोग करने पर अनेक बार संकट आए है ।
किन्तु एक कहावत है की सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो भूला नही कहते।जीवन की समस्याओं का हल प्रकृति के असीमित संसाधनों में खोजा जा सकता है। हम क्यूँ भूल जाते है की सूर्य, चंद्र, पृथ्वी, जल,अग्नि, वायु और आकाश में उपस्थित असंख्य पदार्थ प्राकृतिक संसाधनों को समृद्धिशाली बना रहे हैं इनमें कभी कोई कमी नहीं आने वाली, यदि हम इनका उपयोग सहज एवं सात्विक तरीके से करे।
इसी भूलोक में अमृत और विष, दोनों विद्यमान हैं। यहीं सब दुखों का समाधान उपस्थित है। प्रकृति के वरदानों से मानवता को धन्य किया जा सकता है, इसके लिए उत्कृष्ट इच्छाशक्ति अनिवार्य है। अज्ञानतावश लोग प्रकृति के सानिध्य से हट रहे हैं और इसका परिणाम हमसब महामारी के भयंकर प्रकोप के रूप में भुगत रहे हैं।प्रकृति के महाभंडार में अनेक औषधीय शक्तियां हैं जो रोगों को शांत करने में सक्षम हैं। महामारी से लड़ने में अनेक प्राकृतिक सहायकों जैसें लौंग, काली मिर्च, मुलैठी, हल्दी, दालचीनी अदरक, काली मिर्च, मिश्री , गिलोय, तुलसी, शतावर, आंवला, बादाम, अखरोट, मुन्नक्का, अंजीर आदि की सहायता ली जा सकती है।
समय आ गया है की हम प्रकृति में विद्यमान यौगिक पदार्थो की खोज,शोधन या समझदारी से उपभोग की बात को मनन करने के साथ साथ उसे आत्मसात भी करे और याद रखे की
तुम बचाते हो दो पेड़ों को तो अपना भविष्य बचाओग
वहम छोड़ झूठे जीवन का सच में कुछ कर जाओगे…
नहीं कैद रहना है हमें इन चार दिवारों में…
हमे तो जीना है इन प्रकृति की हवाओं में…
इसलिए प्रकृति की महान कृति मानव को उसके प्रति समर्पित होना पड़ेगा, तभी समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है। प्रकृति को जननी मानकर सभी धारणाओं में परिमार्जन हो और हम ऐसी अवधारणाओं को त्यागे जो प्रकृति के सिद्धांतों के विपरीत हो। हम सभी को ये नही भूलना चाहिये की प्रकृति की गोद हमारी माता की गोद की तरह सुरक्षित तथा आनंददायक है, हमें इसके ममत्व का सुख लेना चाहिये। इसका मौन प्रेम संसार की शांति का उद्गम है। प्रकृति के वात्सल्य को हम अनुभव नहीं कर पाते। पहाड़ों और समुद्रों में बहुतेरे यौगिक पदार्थ भरे पड़े हैं, जिनसे जीवन के संतापों को दूर किया जा सकता है।फ़िर क्यूँ मनुष्य प्रकृति से दूर असहाय जीवों के भक्षण में लगा है।
प्रकृति का स्वरूप परमेश्वर की परमशक्ति का भौतिक आचरण है। इस भौतिक रूप के पीछे एक रहस्य छिपा है अधिभौतिक बीज का रहस्य। याद रहे साल में सिर्फ एक बार पर्यावरण दिवस मना लेना प्रकृति से प्रेम की भरपाई नही है वरन समय पर सबक लेकर प्रकृति रुपी माँ को सवारने की जरुरत है जिससे मानव समुदाय को माँरुपी आँचल सदैव मिलता रहे।
प्रकृति से सीखे
अपने हौसलों को बुलंद रखना…!
धरती से सीखें
उजड़े हुए जीवन में हरियाली लाना…!
आकाश से लें शिक्षा
कोई कैसा भी बर्ताव करे…
उसे आश्रय देकर करना उसकी रक्षा…!
पानी से बड़ा शिक्षक कोई नहीं…
हमेशा चलना सीखो चाहे जहाँ हो मंजिल
वायु से सीख लो…
शत्रु कितना भी ताकतवर क्यों न हो…
हमेशा निडर रहकर काम करना…
पेड़-पौधों से भी सीखो…
सब पर खुशियों कि बरसात करना…
और अपनी छाँव से आधार देना…!
फूलों से भी सीखें…
जिन्दगी कितनी भी छोटी हो…
उसे हमेशा रंगो से नया रूप देना सीखो…!
प्रकृति से यह शिक्षा लेकर…
अब उठो और अपने जीवन को बढाकर आगे बढ़ो…!लेखन -:- डॉ मनीषा शर्मा (राजस्थान शिक्षक प्रशिक्षक विद्यापीठ शाहपुरा बाग आमेर रोड़ ,जयपुर)