हरीकृपा आश्रम में कोरोना के कारण में नहीं हुए कार्यक्रम, गुरू पूजन के लिए उमड़े लोग
कामां (भरतपुर,राजस्थान/ हरिओम मीणा) तीर्थराज विमल कुंड स्थित हरिकृपा आश्रम पीठाधीश्वर स्वामी श्रीहरि चैतन्य पुरी जी महाराज किसान सानिध्य में गुरु पूर्णिमा महोत्सव का आयोजन किया गया कोरोना गाईड गाइडलाइन की पालना के चलते इस बार हरिकृपा आश्रम में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित नहीं हुए लोगों ने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए गुरू पूजा की| भक्तों, शिष्यों के साथ साथ पूर्व मंत्री जवाहर सिंह बेढम, कर्नल हरि सिंह, भगवत कटारा,डा० महेश उपाध्याय, मुम्बई के प्रसिद्ध सर्जन डा० संजय हेलाले,एडीएम भवानी सिंह पालावत , एडीएम वर्मा व अन्य अनेक गणमान्य लोग भी महाराज जी से आशीर्वाद लेने के लिए आश्रम पहुंचे।
वहीं गुरु पूजन के उपरांत हरि कृपा आश्रम में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए स्वामी हरी चैतन्य पुरी महाराज ने कहा कि हम सभी अपने महापुरुषों, तीर्थों, शास्त्रों व परमात्मा के विभिन्न अवतारों से प्राप्त होने वाले शिक्षाओं, प्रेरणाओं उपदेशों को मात्र अपनी कमियों को छुपाने के लिए ढाल ही न बनाये बल्कि अपने जीवन में उतारकर कल्याणमय मार्ग पर आगे बढ़ें। और मानव जीवन की सार्थकता मात्र पशु तुल्य अपने तक ही सीमित रहने में नहीं अपितु किसी के काम आने में है। ईश्वर कृपा से प्राप्त धन, बल, पद, सामर्थ्य प्राप्त आदि का भोग या उपयोग ही नहीं बल्कि सदुपयोग करना चाहिए। पाँच कर्म इन्द्रियां व पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ इन दसों इंद्रियों को चाहे सांसारिक कर्तव्यों के पालन में लगाएं लेकिन एक मन को जो कि परमात्मा की ही अमानत है उसे उसके सिमरन भजन में लगाना चाहिए। संग का भी जीवन में सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। संग अच्छा करना चाहिए, भोजन भी सात्विक, संयमित, संतुलित ही ग्रहण करना चाहिए।थोड़ी सी विषमता होने पर घर परिवार व समाज में अशांति पैदा हो जाती है, लेकिन भगवान शंकर तो इतनी विविधताओं, विषमताओं यहाँ तक कि एक दूसरे के स्वभाविक शत्रुओं को समेट कर बैठे हैं। इन विविधताओं व विषमताओं के बावजूद उनके परिवार में आपसी प्रेम और सदभाव बरक़रार रहता हैउन्होंने कहा कि राम का भक्त यदि माँ बाप का निरादर करें, उनकी आज्ञापालन न करें, संत, गुरु व ब्राह्मण का निरादर करे। भाई भाई से लड़े, कर्तव्य व मर्यादा का पालन न करें मात्र अधिकार के लिए ही लड़ता रहे, अधर्म का साथ दे, लोगों से घृणा करें, अभिमान में ही अकड़ा फिरे तो कैसा राम भक्त है? विचार करें।
उन्होंने कहा कि संत रूपी बादलों द्वारा जो सत्संग रुपी वर्षा होती है उसमें अपने मन की कलुषता व विकारों को धोकर मन को पावन बनाना है। जैसे बादलों को देखकर मोर व पपीहा मगन हो नृत्य करने लगते हैं, तथा पीहू पीहू की धुनि लगाने लगते हैं। ऐसे ही संत व भक्तों को देखकर हमारा मन मयूर भी यदि नाचने न लग जाए, सत्संग की वर्षा में हम मन को पावन न करें तथा अपने परमात्मा को याद न करने लगे तो इसे दुर्भाग्य ही समझना चाहिए। जगत की यथासंभव व यथासामरथ्य सेवा एवं परमात्मा से प्रेम करना चाहिए।