बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए (शिक्षक दिवस पर विशेष)
उदयपुरवाटी (सुमेर सिंह राव)
सब धरती कागज करूं लेखनी सब बनराय सात समुद्र की मसि करूं गुरु गुण लिखा न जाए
अर्थात पूरी धरती को कागज बनाकर पूरे जंगल के पेड़ों की कलम बनाकर व सातों समुद्रों की स्याही बना कर भी लिखना चाहूं तो गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते। गुरु को गोविंद से भी ऊंचा स्थान दिया गया है, गुरु के प्रति कृतज्ञता सम्मान व सराहना प्रकट करने के उद्देश्य से भारत में प्रति वर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है. दरअसल भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति(1952से 1962तक )व द्वितीय राष्ट्रपति (1962से 1967तक )भारत रत्न डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन को वर्ष 1962 से ही शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है. वे महान दार्शनिक व भारत की शैक्षणिक प्रणाली को आकार देने वाले भारत के सबसे सम्मानित शिक्षाविद थे. इस दिन संपूर्ण भारत की सभी स्कूलों कॉलेजों विश्वविद्यालयों व शैक्षणिक संस्थाओं में सांस्कृतिक गतिविधियां व अपने गुरुओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं व उनका विभिन्न तरीकों से सम्मान किया जाता है. इसी दिन उत्कृष्ट कार्य करने वाले शिक्षकों को जिला प्रदेश व देश स्तर पर शिक्षक पुरस्कार प्रदान कर उनके प्रति हार्दिक श्रद्धांजलि प्रस्तुत की जाती है.
इस अवसर पर प्राचीन काल के प्रसिद्ध गुरुओं को याद करना भी उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी.
1.महर्षि वेदव्यास-वेदों 18 पुराणों व महाभारत के रचयिता थे.
2.महर्षि वाल्मीकि-प्राचीन काव्य रामायण की रचना की पूर्व में खूंखार रत्नाकर डाकू थे इनके शिष्यों में राम लव कुश मुख्य थे विभिन्न अस्त्र शस्त्रों के आविष्कारक थे.
3.परशुराम-विष्णु के अवतार थे. भीष्म द्रोणाचार्य कर्ण जैसे शिष्य थे.
4.गुरु द्रोणाचार्य-इनके शिष्य दुर्योधन दुशासन अर्जुन भीम युधिष्ठिर आदि थे.
5.ब्रह्मर्षि विश्वामित्र-रामायण कालीन थे इनके शिष्य श्री राम लक्ष्मण थे जिनको अस्त्र शस्त्रों का ज्ञान दिया.
6.गुरु सांदीपनि-श्री कृष्ण के गुरु थे जिन्हें 64 कलाओं की शिक्षा दी थी.
7.देव गुरु बृहस्पति-देवताओं के गुरु थे दैत्यों से देवताओं की रक्षा करते थे.
8.दैत्य गुरु शुक्राचार्य-इनके पास संजीवनी विद्या थी जिसके बल पर मृत दैत्यों को पुनः जीवित कर सकते थे।
9.गुरु वशिष्ठ-रामायण कालीन थे इनके शिष्य राम लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न थे. सप्त ऋषियों में गणना होती है।
10.आदि गुरु शंकराचार्य-इन्होंने भारत के चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की थी।
अंत में, गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वरा गुरु साक्षात परम ब्रम्ह तस्मै श्री गुरुवे नमः।
( लेखक मंगल चंद सैनी पूर्व तहसीलदार)
(लेखक के यह निजी विचार हैं)