जैन मंदिरों में चल रहे हैं धार्मिक आयोजन: श्वेतांबर और दिगंबर समाज के लोग भाद्रपद मास में मनाते पर्युषण पर्व
लक्ष्मणगढ़ (अलवर, राजस्थान/ कमलेश जैन) उपखंड क्षेत्र के कस्बे सहित क्षेत्र के मौजपुर हरसाना बिचगावा आदि जैन मंदिरों में पर्युषण पर्व की शुरुआत श्वेतांबर पंथ की सितंबर 12 मंगलवार से हो गई है। जैन धर्म के दोनों पंथ्यों में सभी त्योहारों में पर्युषण पर्व को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसमें 10 दिन तक जैन धर्म के लोग व्रत, उपवास, तप, करते हैं। इसके साथ ही अपने आराध्य महावीर स्वामी की पूजा करते हैं।
श्वेतांबर जैन का पर्युषण पर्व -जैन धर्म में दो पंथ है श्वेतांबर और दिगंबर जैनश्वेतांबर पंथ के लोग 12 सितंबर से पर्यूषण पर्व मना रहे हैं । जिसका समापन 19 सितंबर को होगा। श्वेतांबर जैन धर्म के लोग 8 दिन पर्युषण पर्व मनाते हैं।
दिगंबर जैन पर्व - दिगंबर जैन का पर्युषण पर्व 10 दिन चलता है। इसकी शुरुआत 19 सितंबर से होगी और 29 सितंबर को इसका समापन होगा।
पर्युषण पर्व का महत्व -जैन धर्म के पर्युषण पर्व मनुष्य को उत्तम गुण अपनाने की प्रेरणा हैं। इन दस दिनों में लोग व्रत, तप, साधना कर आत्मा की शुद्धि का प्रयास करते हैं और स्वंय के पापों की आलोचन करते हुए भविष्य में उनसे बचने की प्रतिज्ञा करते हैं।इस पर्व का मुख्य उद्देश्य आत्मा को शुद्ध बनाने के लिए आवश्यक उपक्रमों पर ध्यान केंद्रित करना होता है। भगवान महावीर के जीवन काल से प्रभावित होकर पर्युषण पर्व को मनाया जाने लगा। माना जाता है जिस दौरान भगवान महावीर ने शिक्षा दी थी उस समय को ही पर्युषण पर्व कहा गया था। यह सत्य के मार्ग पर चलना सिखाता है.
पर्युषण पर्व कैसे मनाया जाता है
पर्युषण पर्व के समय 5 कर्तव्य का विशेषकर ध्यान रखा जाता है।
पर्युषण पर्व पर पहला तीर्थंकरों की पूजा करना और उन्हें स्मरण करना
दूसरा इस व्रत को शारीरिक और मानसिक रूप से अपने आप को समर्पित करना।
इसका व्रत करने से बुरे कर्मों का नाश होता है। मोक्ष की राह आसान होती है।
पर्युषण पर्व के आखिरी दिन को महापर्व के रूप में मनाते हैं।
पर्युषण के पांच कर्तव्य
संवत्सरी
केशलोचन
प्रतिक्रमण
तपश्चर्या
आलोचना और क्षमा याचना के साथ मनाया जाता है।