आसमान के नीचे जीवन गुजारने को मजबूर गाडिया लुहार
रैणी, माचाड़ी, पिनान, गढ़ीसवाईराम सहित अनेक जगह पर देख सकते है ऐसा दृश्य
रैणी (अलवर/ महेश चन्द मीणा) अलवर के रैणी उपखंड क्षेत्र में अनेकों जगह ग्राम पंचायत मुख्यालय पर सड़क किनारे खुले आसमान के नीचे जीवनयापन करते हुए देख सकते है गाडिया लुहार परिवार को।उच्च अधिकारियों की प्रभावी मोनिटरिंग के अभाव में विमुक्त घुमंन्तु अर्धघुमंतु समुदाय के लोगों को आज भी बिना मकान के आसमान के नीचे जीवन यापन करने को मजबूर होना पड़ता है देश की स्वतंत्रता के अनेक दशक बीत जाने के बाद भी तपती दोपहर हो या बरसाती मौसम हो या कड़ाके की ठंड फटे कपड़ों से ही अपना समय निकाल रहे हैं टुटी झोपड़िया में आसमान व पेड़ ही इनका लिए आसरा है।
आप रैणी उपखण्ड क्षेत्र मे अलवर- करोली एन एच -921 की पटरियों पर अपना जीवन यापन करने वाले गाड़ी लुहारो से इस बारे मे जानकारी ले सकते है ऐसा ही मिडिया ने उनसे पूछा तो उन्होंने बताया कि हमे जनप्रतिनिधि व प्रशासन की तरफ से कोई सुविधा उपलब्ध नहीं कराई गई है इधर रैणी पंचायत समिति क्षेत्र में गाड़ियां लोहार , नट, कंजर, बंजारा,बावरीय आदि घुमंतु अर्धघुमंतू जाति निवास कर रही है आजादी के बाद आने वाली सरकारों ने इनके उत्थान के लिए अनेक योजनाएं बनाई लेकिन विभागीय अधिकारियों के द्वारा कार्य में उदासीनता के चलते इन समुदायों के परिवारों को अभी तक योजनाओ का पूरा लाभ नही मिल पाया है।
इसलिए ही अभी गाड़ी लुहार समुदाय के लोग सड़क किनारे अपनी कच्ची झुग्गिया बना कर जीवन यापन को मजबूर है सरकार के द्वारा इन समुदायों के विकास के लिए डीनोटिफाइड पोलिसी को लाने की घोषणा की गई लेकिन उसका भी कोई असर नही महसूस।
वही इन लोगों को महाराणा प्रताप आवास योजना का फायदा नहीं मिल पा रहा है रैणी उपखंड के माचाड़ी मार्ग पर गाड़ी लुहारो का कहना है कि हमारे कई पीढ़ियां गुजर जाने के बाद भी हमें किसी भी योजना का फायदा नहीं मिला पा रही सरकार हमें सर्दी व गर्मी बारिश के दिनों में हमारे बच्चे चयन से नहीं रह सकते हैं आंधी तूफान आने पर हमारी झुग्गी झोपड़ी उड़ जाती है और खुले आसमान के नीचे रहना पड़ रहा है ना ही हमारे बच्चों को कोई विद्यालय में पढ़ने के लिए प्रेरित करता है हम हमारी रोटी रोजी के लिए निकल जाते हैं और बच्चे अकेले झूग्गी व पेड़ों के नीचे अपना समय निकालते है।