जल जंगल जमीन और मानवता की रक्षा के लिए कुर्बान हो गये मानगढ़ में शहीद हो गए हजारों आदिवासी:-मीणा -
जलियांवाला बाग से भी बड़ा नरंसहार मानगढ़ में 1500 आदिवासियों की शहादत
मानगढ़ को राष्ट्रीय स्मार्क में डवलपमेंट और देश के पाठ्यपुस्तको में शामिल करने की उठाई मांग
विराटनगर (कोटपुतली/बहरोड़) मीणा समाज के बाहुल्य गांव बागावास चौरासी में शुक्रवार को मानगढ़ शहादत दिवस मनाया गया। आदिवासी श्री मीन सेना के प्रदेश अध्यक्ष सुरेश मीणा किशोरपुरा के आतिथ्य में मनाए गए इस बलिदान दिवस पर एससी एसटी और ओबीसी के नौजवानों ने क्रांति कारी स्वतंत्रता सेनानीयो को पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रदांजलि अर्पित की। इस अवसर पर प्रदेश के आदिवासी नेता किशोरपुरा ने कहा कि 17 नवंबर 1913 को आज ही के दिन बांसवाड़ा जिले की मानगढ़ की पहाड़ी पर ब्रिटिश सेना ने आदिवासियों के देवता गोविंद गुरु के साथ 1500 आदिवासियों को मौत घाट उतार दिया था । यह नृसंहार जलियांवाला बाग से भी बहुत बड़ा था । अंग्रेज दहशत फैलाने के लिए उस समय आदिवासियों के नरमुंड लेकर गांव-गांव घूमे थे। किशोरपुरा ने कहा की जल जंगल जमीन और आदिवासियों के अधिकार के लिए संघर्ष करके अपने प्राणों की आहूति देने वाले इन महान स्वतंत्रता सेनानियों को इतिहास के पन्नो से भुला दिया गया। मीणा ने बताया कि गुजरात मध्यप्रदेश की सीमा पर पहाड़ियों में अवस्थित यह मानगढ़ धाम आदिवासियों का प्रमुख तीर्थ स्थल है।गुजरात के सीएम बनने के बाद से लगातार पीएम नरेंद्र मोदी मानगढ़ धाम आते रहे हैं।प्रदेश के मुखिया सीएम अशोक गहलोत और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया भी कई बार यहां आ चुके हैं। मीणा ने कहा की इस धाम को अब जल्द राष्ट्रीय स्मारक के रूप में डवलप किया जाए इसी के साथ मानगढ़ का इतिहास देश के हर राज्य के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए। इस अवसर पर डॉ धीरज मीणा एसएमएस,मीन सेना तहसील अध्यक्ष अमित मीणा,मनोज मीणा, भिवाराम मीणा, समाजसेवी किशन कुमावत, दानवीर वर्मा,सुनील मीणा कागोत मोडियाखेरा, अमर सिंह मीणा, अजय मीणा सहित कई लोग उपस्थित थे।