भूतहा किले के नाम से मशहूर भानगढ़ का किला : पर्यटकों में भानगढ़ के भग्नावशेषो के प्रति बढ़ रहा क्रेज

Jan 2, 2024 - 19:20
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भूतहा किले के नाम से मशहूर भानगढ़ का किला : पर्यटकों में भानगढ़ के भग्नावशेषो के  प्रति  बढ़ रहा क्रेज


गोलाकाबास ( भारत कुमार शर्मा ) :-  प्राचीन एवं ऐतिहासिक खंडहर भानगढ़ का किला पुराने समय मे अपनी बेजोड़ स्थापत्य कला एवं बसावट को लेकर मशहूर रहा है जो वर्तमान में एशिया की टॉप टेन हॉन्टेड जगहों में शामिल है तथा देश-विदेश के सैलानियों की जुबां पर भूतहा किले के नाम से विख्यात है।
किले की सार संभाल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग जयपुर मंडल के अधीन है किले में सूर्योदय से पहले व सूर्यास्त के बाद प्रवेश निषेध है दिन रात पुरात्तव विभाग के कर्मचारी व निजी कंपनी के सिक्योरिटी गॉर्डस सुरक्षा संभाले रहते है।
किले के प्रवेश द्वार हनुमान गेट पर स्थित हनुमान मंदिर तक आम लोगों का प्रवेश निशुल्क है आगे जाने पर हनुमान मंदिर परिसर में पिछले 2 वर्षों से पुरात्तव विभाग ने देशी विदेशी पर्यटकों के लिए पुराने कमरों में टिकिट विंडो का निर्माण किया है जंहा से निर्धारित शुल्क देकर टिकिट प्राप्त करके भानगढ़ के भग्नावेशों व शाही महल, प्राकृतिक जलाशय आदि स्थानों का अवलोकन किया जा सकता है अवयस्क का प्रवेश निःशुल्क है।

स्थापना - अलवर जिले के राजगढ़ उपखण्ड के टहला तहसील के ग्राम पंचायत मुख्यालय गोलाकाबास के पश्चिम दिशा में तीन ओर से अरावली पर्वत माला घाटी की तलहटी में बसा हुआ है जो अलवर जिले मुख्यालय से 100 किलोमीटर व दौसा से 31 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।आमेर के राजा भगवंत दास ने भानगढ़ कस्बे की नींव रखी तथा 1599 ईस्वी में उनके द्धितीय पुत्र माधोसिंह ने भानगढ़ को अपनी रियासत की राजधानी बनाया ओर 1720 ईस्वी में भानगढ़ को आमेर साम्राज्य में शामिल कर लिया गया माधोसिंह मुगल सम्राट अकबर का मनसबदार तथा आमेर के शासक राजा मानसिंह के छोटे भाई थे, माधोसिंह के 3 पुत्र क्रमशः सूजन सिंह,छत्र सिंह व अजब सिंह थे जो कि शाही मनसबदार थे उन्होंने ने अपने नाम से अजबगढ़ बसाया तथा इनके बेटे काबिल सिंह,जसवंत सिंह अजबगढ़ में रहे व हरिसिंह वि. सं. 1722 में भानगढ़ गद्दी पर आसीन हुए  उस काल मे यह किला खंडहर हो गया और यंहा वीरानी छा गई।

स्थापत्य कला व बसावट - पूर्व में किये गए पुरातात्विक अन्वेषण में भानगढ़ से प्रागएतिहासिक काल से मध्यकाल तक के अवशेष मिले हैं प्राचीन अवशेष अंग्रेजी के 'यू' आकर की पर्वतीय घाटी में लगभग दो किलोमीटर के क्षेत्र में फैले हुए हैं तथा किले को तीन प्राचीरों से सुरक्षा प्रदान की गई है,किले की प्रथम एवं बाहरी प्राचीर(पत्थरों से निर्मित चौड़ा ऊंचा मजबूत परकोटा) में नगर में प्रवेश हेतु पांच प्रवेश द्वार है जिन्हें फूल बारी गेट,हनुमान गेट,अजमेरी गेट,दिल्ली गेट व लाहोरी गेट के नाम से जाना जाता है,हनुमान गेट किले का मुख्य प्रवेश द्वार था जंहा से मुख्य बाजार के बीच से होकर शाही महल तक जाने का मार्ग है,किले की बसावट बड़े ही योजनाबद्ध तरीके से की गई थी जिसमे शाही महल व मध्य क्षेत्र को दो आंतरिक प्राचीरों से अलग किया गया था,शाही महल अंत मे पहाड़ी की ढलान पर ऊंचाई पर स्थित है अवलोकन से यह पंचमंजिला प्रतीत होती है जिसके मध्य भाग स्थित सीढ़ियों से दो भागों में विभाजित है आन्तरिक भाग में एक दूसरे से जुड़े अनेक कक्ष है जिनकी छत पर की गई चित्रकारी आज भी दर्शनीय है तथा चौड़े चौड़े  रास्तों के एक ही शैली की तीन पार्टीशन की समान दुकानों के अवशेष व रिहायशी क्षेत्र ओर बाजार अलग अलग बसे हुए है लेकिन यंहा के मंदिर,शाही महल के अलावा किसी के ऊपर भी छत नही बची है।

प्रमुख मन्दिर व जन आस्था के केंद्र - यंहा पर स्थित प्रमुख मंदिरों में गोपीनाथ, केशवराय,मंगल देवी व सोमेश्वर महादेव मंदिर है जिनमे स्थापत्य कला की द्रष्टि से गोपीनाथ मंदिर उत्कृष्ट है सभी मंदिर नागर शैली में बने हुए है जो 16 वीं-17 वीं शदी की वास्तुशिल्प कला को प्रतिबिंबित करते हैं।
इनके अतिरिक्त जन आस्था के प्रमुख मंदिरों में आसन वाले गणेश,शंकर,बालूनाथ,केवड़ा वाले भोमिया बाबा,हनुमान,कोट वाले भैरू बाबा,भरिया कुंड व बेरी के खोले वाले संत की गुफा,चांवड देवी,शैयद तथा शाही महल में जिन्न बाबा का स्थान आदि केंद्रों पर हर दिन स्थानीय व आस पास के श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है जो अपने इष्ट के अनुसार इन स्थानों पर आकर जात जड़ूला,मुंडन संस्कार,रामायण पाठ,नवरात्रि स्तुति, रात्रि जागरण,सवामणी,पैदल यात्रा,कनक दंडवत आदि करके अपनी मनोकामना पूर्ण हेतु धार्मिक कार्यक्रम करते रहते है,शादी विवाह सवामणी,ग्रह प्रवेश आदि मंगल कार्यों में क्षेत्रवासी रानी रत्नावती,भोमिया जी,भैरू बाबा,बालूनाथ जी आदि के गणेश वंदना के बाद घरों में आज भी महिलाएं गीत गाती है
भानगढ़ में कई वर्ष पूर्व में कनाडा के डिस्कवरी चैनल की टीम ने भी यंहा की कहानी व दृश्य शूट करके टीवी पर दिखाए थे,टीवी पर आने वाली फेयर फाइल्स सहित अनेक चैनलो ने यंहा शूट करके कार्यक्रम बनाये है।
वहीं फिल्मी दुनिया वाले पीछे क्यो रहते सावन री तीज,कर्ण अर्जुन व डेरा सचा सौदा के राम रहीम ने एमएसजी 2 नामक अपनी फिल्म की शूटिंग करीब 10 दिनों तक की थी,पर्यटकों में खंडहर भानगढ़ को देखने व भूतहा कहानी जानने का काफी क्रेज है यंहा राजस्थान ही नही अपितु दिल्ली,हरियाणा,पंजाब,मध्यप्रदेश,महाराष्ट्र,बिहार आदि राज्यो के अलावा अन्य राज्य व विदेशों से भी पर्यटक आते हैं जिसमे शनिवार व रविवार को हजारों पर्यटक आते हैं स्थानीय ग्रामीण व आस पास के श्रद्धालु जो कि आसन,भोमिया,बालूनाथ,भरिया कुंड,बेरी का खोले आदि आस्था केंद्रों पर वार व तिथि विशेष ओर होली,दीपावली, दशहरा,नव रात्रि को पूजा पाठ,सवामणी, प्रसाद आदि चढ़ाने आते है उनके प्रवेश पर किसी प्रकार का कोई शुल्क नही लिया जाता है।

भानगढ़ नगर के एक ही रात में उजड़ कर खंडहर होना - किदवंती
भानगढ़ के खंडहर होने के कोई पुख्ता व प्रामाणिक इतिहास तो किसी भी इतिहासकार ने नहीं लिखा ना जाने पुराने इतिहासकारों की नजरों से क्यों वंचित रह गया परन्तु स्थानीय बड़े बुजुर्गों के किस्से कहानियों को समेटे भानगढ़ दुनियाभर में मशहूर जरूर है किदवंतियों में इंटरनेट के युग मे कई ब्लॉगर किस्से कहानियां सुनकर अपने अनुसार लिख देते है लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि भानगढ़ से पूर्व दिशा में करीब 10 किलोमीटर दूरी पर अरावली पर्वत माला की तलहटी में बसे दौसा जिले के तीतरवाड़ा गांव के जागीरदार की पुत्री रत्नावती बड़ी ही योग्य,सुंदर,सुशील व शिव भक्त थी उनके पिता ने उनकी कि ससुराल से रात्रि को पीहर के भवन का प्रकाश देख सकूं के इच्छानुसार भानगढ़ विवाह कर दिया एक दिन राजा व रानी रत्नावती महल में चौपड़ पासे खेल रहे थे अचानक रानी के हाथ से पानी निकलने पर कुछ देर तो राजा घबरा गए फिर रानी से इसके बारे में जानकारी चाहने पर रानी ने प्रतियुतर में कहा कि महाराज समुद्र में एक नोका दुब रही थी जिसमे एक व्यापारी भक्त ने मुझे पुकारा है बस नोका को किनारे पर पंहुचाया है उसका थोड़ा जल हाथ मे आ गया यह सब भगवान शिव की कृपा व आपके आशीर्वाद का प्रताप है,कुछ वर्ष व्यतीत होने के बाद अजबगढ़ गांव में अपने शिष्यों से मिलने गौड़ बंगला का एक तांत्रिक जो कि काले जादू का जानकार आया उसने मार्ग में कई स्थानों पर सुना कि भानगढ़ की महारानी रानी रत्नावती अपनी सुंदरता में अलग ही पहचान रखती है तब उस तांत्रिक ने गलत नियत रखते हुए भानगढ़ में साधु का वेश बनाकर प्रवेश किया ओर पहाड़ी को टॉप पर बने वाच टॉवर पर रहने लगा   एक दिन रानी के केश में लगाने के लिए दासी तेल लेजा रही थी उसी दौरान शिंदा सेवड़ा नामक तांत्रिक दासी को रोककर जानकारी मांगी और उसी दौरान काले जादू से तेल को अभिमंत्रित कर दिया दासी ने रानी के सामने ज्योंहि तेल का पात्र रखा तो उसे आशंका हुई ओर एक पत्थर की शिला पर अपने पतिव्रत व शिव भक्ति का स्मरण कर डाल दिया ओर गुस्से में होकर गलत आचरण करने वाले व्यक्ति को मरने का श्राप दे दिया कुछ देर बाद पत्थर की शिला तांत्रिक के शिर पर जा गिरी तब तांत्रिक समझ गया कि उसकी मौत निश्चित है तब उसने भी अपनी समग्र जादू की शक्ति एकत्रित करके घोषणा करदी कि जिसे अपनी जान प्यारी है वे व्यक्ति तुरंत नगर के मुख्य प्राचीर से निकल जावे नही तो सुबह तक कोई नही बचेगा ऒर फिर ऐसा ही हुआ।

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