जैन धर्म के भगवान पार्श्वनाथ सामाजिक क्रांति के प्रणेता' की जयंती आज
लक्ष्मणगढ़ (अलवर) कमलेश जैन
आज भगवान पार्श्वनाथ की जयंती है। पार्श्वनाथ ने अहिंसा का दर्शन दिया तथा उसे समाजिक जीवन में प्रवेश दिलाया,
भगवान पार्श्वनाथ जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर माने जाते हैं, जिन्होंने अज्ञान-अंधकार-आडम्बर एवं क्रियाकाण्ड के मध्य में क्रांति का बीज बन कर पृथ्वी पर जन्म लिया था।भगवान पार्श्वनाथ की जयंती 6 जनवरी को मनाई जा रही है। इनका जन्म अरिष्टनेमि के एक हज़ार वर्ष बाद इक्ष्वाकु वंश में पौष माह के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को विशाखा नक्षत्र में वाराणसी नगर में हुआ था। इनके शरीर का रंग नीला और चिन्ह सर्प माना जाता है।
पार्श्वनाथ का प्रारम्भिक जीवन
भगवान पार्श्वनाथ बचपन से ही चिंतनशील और दयालु स्वभाव के थे। वे सभी विद्याओं में प्रवीण थे। भगवान पार्श्वनाथ ने अपने समय की हिंसक स्थितियों को नियंत्रित कर समाज में अहिंसा का प्रकाश फैलाया। मानो भगवान पार्श्वनाथ जीवन दर्शन के पुरोधा बनकर ही इस धरा पर जन्म लिया था। भगवान पार्श्वनाथ की पूरी जीवन यात्रा पुरुषार्थ एवं धर्म की प्रेरणा से भरी थी। राजा के पुत्र थे वे सम्राट से संन्यासी बने, वर्षों तक दीर्घ तप तपा, कर्म निर्जरा की और तीर्थंकर बने। भगवान पार्श्वनाथ ने जैन दर्शन के रूप में शाश्वत सत्यों का उद्घाटन किया।
भगवान पार्श्वनाथ का जन्म बनारस के राजा अश्वसेन और रानी वामादेवी के यहां पौष कृष्ण एकादशी के दिन हुआ था। तीस वर्ष की अवस्था में एक दिन राजसभा में ‘ऋषभदेव चरित’ सुनकर उन्हें वैराग्य हो गया। भगवान पार्श्वनाथ क्षमा के प्रतीक और सामाजिक क्रांति के प्रणेता हैं। उन्होंने अहिंसा की व्याप्ति को व्यक्ति तक विस्तृत कर सामाजिक जीवन में प्रवेश दिया, जो अभूतपूर्व क्रांति थी। उनका कहना था कि हर व्यक्ति के प्रति सहज करुणा और कल्याण की भावना रखें।
जैन धर्म पुराणों के अनुसार भगवान पार्श्वनाथ को तीर्थंकर बनने के लिए पूरे नौ जन्म लेने पड़े थे। पूर्व जन्म के संचित पुण्यों और दसवें जन्म के तप के फलतः ही वे 23वें तीर्थंकर बने।
भगवान पार्श्वनाथ ने दिया था शांति का संदेश
भगवान पार्श्वनाथ की जीवन-घटनाओं में हमें राज्य और व्यक्ति, समाज और व्यक्ति तथा व्यक्ति और व्यक्ति के बीच के संबंधों के निर्धारण के रचनात्मक सूत्र भी मिलते है। देखने पर भगवान पार्श्वनाथ तथा भगवान महावीर का समवेत रूप एक सार्वभौम धर्म के प्रवर्तन का सुदृढ़ परिचायक है।
भगवान पार्श्वनाथ ने पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को वाराणसी नगरी में दीक्षा की प्राप्ति की थी। भगवान पार्श्वनाथ ने केवल 30 साल की उम्र में ही सांसारिक सभी तरह की मोहमाया और गृह का त्याग कर संन्यास धारण कर लिया था। भगवान पार्श्वनाथ का निर्वाण पारसनाथ पहाड़ पर हुआ था। पार्श्वनाथ ने अहिंसा का दर्शन दिया। अहिंसा सबके जीने का अधिकार है।