5000 वर्ष पुराने कामेश्वर महादेव मंदिर पर जमकर गूँजे बम बम भोले के जयकारे, भक्तो का लगा रहा तांता
कामाँ (भरतपुर,राजस्थान/ हरिओम मीना) ब्रज के चार महादेवो में से एक प्रमुख महादेव है कामेश्वर महादेव। वृंदावन में गोपेश्वर मथुरा में भूतेश्वर गोवर्धन में चकलेश्वर और कामबन (कामां) में कामेश्वर महादेव की स्थापना हुई । कानवन मे ये जो कामेश्वर महादेव है। करीब 5000 वर्ष पहले इनकी स्थापना भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र ब्रजनाव के द्वारा की गई है द्वापर युग का यह बहुत ही सुंदर और अलौकिक और भव्य शिवालय है।
जिसके दर्शन के लिए देश विदेश से भक्त आते है। ओर जिस पर कावड़ चढ़ाने के लिए शिव भक्त गंगा नदी से गंगाजल लेकर आते है और कोई यमुना नदी से यमुना जल लेकर आता है और पैदल यात्रा करते हुए यहां महाशिवरात्रि के दिन कामेश्वर महादेव मंदिर पर पहुंचते और शिवलिंग पर गंगाजल की और यमुना जल की धारा चढ़ाकर शिवजी के प्रति अपनी आस्था व्यक्त करते हैं।
कामेश्वर महादेव मंदिर पर अभिषेक करने से होती हैं शिव भक्तों की मनोकामना पूर्ण।। साथ ही सैकड़ों की संख्या में कावड़िया पहुंच रहे हैं कामेश्वर महादेव , शिव भक्त की कावड़ से अभिषेक करने के लिए लगी हुई है कतारे । कावड़ियों व शिव भक्तो के लिए मंदिर परिसर की तरफ से किया जा रहा है प्रसादी का वितरण। कामा कस्बे में स्थित प्राचीन कामेश्वर मंदिर पर महाशिवरात्रि के पर्व पर लगी हुई है शिव भक्तों की भीड़। शिवभक्त कर रहे हैं पंचामृत व गंगाजल से भगवान शिव का अभिषेक। कामेश्वर महादेव पर नवविवाहित जोड़े आ रहे हैं बैंड बाजे व डीजे की धुन पर भगवान शिव का अभिषेक करने के लिए ।
महाशिवरात्रि पर कामेश्वर महादेव के बारे में मान्यता है कि यह एक अति प्राचीन मंदिर है। शिव पुराण में इस मंदिर का जो वर्णन मिलता है उसके अनुसार कामदेव ने समाधि मे लीन भोलेनाथ को जगाने के लिए पुष्प बाण चलाया था। शिव पुराण के अनुसार जब भगवान शिव की पत्नी सती अपने पिता द्वारा आयोजित यज्ञ मे अपने भोलेनाथ का अपमान सहन नही कर पाती है और यज्ञ वेदी मे कूदकर आत्मदाह कर लेती है, तब शिवजी अपने तांडव से पूरी सृष्टि मे हाहाकार मचा देते है। इससे व्याकुल सारे देवता उनको समझाने पहुंचते है।
महादेव शान्त होकर, इसी स्थान पर परम शान्ति के लिये आकर समाधि मे लीन हो जाते है। इसी बीच राक्षस तारकासुर अपने तप से ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके वरदान प्राप्त कर लेता है कि उसकी मृत्यु केवल शिव पुत्र द्वारा ही हो सकती थी। यह एक तरह से अमरता का वरदान था क्योकि शिव तो समाधि मे लीन हो चुके थे। तारकासुर का उत्पात दिनो दिन बढ़ता जाता है और वो स्वर्ग पर अधिकार करने कि चेष्टा करने लगता है। इससे देवता चिंतित हो जाते हैं। वे कामदेव को शिव की समाधि भंग करने के लिए नियुक्त करते हैं। सारे प्रयास विफल होने पर अंत में कामदेव स्वयं भोले नाथ को जगाने लिए आम के पेड़ के पत्तो के पीछे छुप कर पुष्प बाण चलाते है। पुष्प बाण सीधे भगवान शिव के हृदय मे लगता है, और उनकी समाधि टूट जाती है। क्रोधित शिव कामदेव को अपने त्रिनेत्र से जला कर भस्म कर देते हैं । कामेश्वर महादेव प्राचीन शिवलिंग व शिवालय है। इस शिवालय की पुनः स्थापना श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने की थी ।किवदंती है कि बाबा नन्द व यशोदा के श्रीकृष्ण का जन्म इन्हीं की मान्यता से हुआ । मान्यता है कि आज के ही दिन भोलेनाथ ने विषपान किया था उस विष के प्रभाव को कम करने के लिए गंगाजल पिलाया था देवताओं ने ।