हरी शेवा उदासीन आश्रम सनातन मंदिर में मनाई गई आचार्य भगवान श्री श्रीचंद्र महाराज की 527 वीं जयंती

Sep 16, 2021 - 03:15
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हरी शेवा उदासीन आश्रम सनातन मंदिर में मनाई गई आचार्य भगवान श्री श्रीचंद्र महाराज की 527 वीं जयंती

भीलवाड़ा (राजस्थान/ बृजेश शर्मा) हरी शेवा उदासीन आश्रम सनातन मंदिर भीलवाड़ा में उदासीन आचार्य श्री श्रीचंद्र महाराज की 527वीं जयंती हर्षोल्लास, उमंग एवं उत्साह के साथ मनाई गई। सर्वप्रथम आश्रम में विराजित श्री गणेश का पूजन हुआ। उदासीन पंथ के प्रणेता उदासीनाचार्य श्री श्रीचंद्र महाराज की मूर्ति का महामंडलेश्वर स्वामी हंसराम उदासीन के सान्निध्य में वैदिक मंत्रोंच्चार से दुग्धाभिषेक किया गया। जिसमें संत मयाराम, संत राजाराम,  संत गोविंदराम, संत जगतराम ने भाग लिया। पंडित सत्यनारायण शर्मा एवं ब्राह्मण मंडली द्वारा वैदिक मंत्रोच्चारण किया गया। उदासीन आचार्य श्री श्रीचंद्र महाराज की स्तुति, श्री मात्रा साहेब वाणी पाठ एवं सत्संग कीर्तन किया गया। तत्पश्चात संतों व ब्राह्मणों द्वारा 51 दीपक प्रज्वलित कर पूजन अर्चन एवं महाआरती की गई। ब्राह्मण विद्वानों का सम्मान किया गया। श्री श्रीचंद्र सिद्धांत सागर ग्रंथ पर सभी ने शीश नवाया। प्रार्थना पश्चात रोट प्रसाद का भोग लगा प्रसाद वितरण हुआ। इस अवसर पर भोपाल से श्री चंद्र लालचंदानी, अहमदाबाद से जयराम व वर्षा अभिचन्दानी, मुम्बई से राहुल बालानी संगीत बालानी, कोटा से राजू चावरानी, सचिव हेमंत वच्छानी, कन्हैयालाल मोरियानी, देवीदास गेहानी, गोपाल नानकानी सहित बाहर एवं स्थानीय अनुयायियों ने सत्संग एवं दर्शन लाभ प्राप्त किया।
सायॅकाल में बाल ब्रह्मचारी त्र्यंबकेश्वर चैतन्य महाराज ने स्वरचित दोहो से श्री श्री चंद्र जी एवं उदासीन संप्रदाय की सुसंगत व्याख्या प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि भारत वर्ष के संस्कारों- संस्कृति में उपासना, पद्धति, नाम, भेष, तिलक, मालाएं, इत्यादि भिन्न होकर भी महापुरुषों का संकल्प एवं करुणा की धारा एक ही है। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म का उदासीन संप्रदाय एक गुलदस्ता है। पंचदेव उपासना एवं सनातन धर्म की परंपराओं के दर्शन में आचार्य श्री श्रीचंद्र के महत्वपूर्ण योगदान होने की भी बात बताई। इस अवसर पर उन्होंने हरी शेवा उदासीन आश्रम एवं महामंडलेश्वर स्वामी हंसराम उदासीन के सनातन धर्म के सिद्धांतों से परिपूर्ण  होने की मुक्त कंठ से  प्रशंसा की। उन्होंने उदासीन आचार्य श्रीचंद्र जी के चंद्र कांति की सकल भवन मंडल पर सदैव सुशोभित होने की मंगल कामना की। इस अवसर पर दंडी स्वामी प्रबोधाश्रम महाराज, नृसिंह भारती महाराज, आचार्य हरि ओम महाराज, स्वामी नारायण महाराज, ब्रह्मचारी देवेश महाराज ने भी अपने विचार व्यक्त किये। महामंडलेश्वर स्वामी हंसराम उदासीन ने अपने आशीर्वचनों में कहा कि वर्तमान परिपेक्ष्य में उदासीन आचार्य श्री श्रीचंद्र के कार्यों एवं प्रसंगों की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है। उदासीनाचार्य श्रीचंद्र जी महाराज को गुरु अविनाशी मुनि ने उदासीन संप्रदाय की दीक्षा देते हुए धर्म संस्कृति और राष्ट्र के उद्धार की प्रेरणा दी। उन्होंने श्री श्रीचंद्र महाराज की जीवनी पर प्रकाश डालकर उनके चमत्कार एवं  देश, धरा, धर्म के प्रति किए गए उनके त्याग को याद किया।
उदासीनाचार्य श्रीचंद्र महाराज ने धर्म की रक्षा एवं धर्मांतरण को रोकने हेतु अनेक कार्य किए। उनके जन्म से जटाए एवं दाहिने कान में मांस कुंडल होने से शिव स्वरूप थे। वे कई रिद्धि सिद्धियों के अवतार थे‌। देश-विदेश में अनेक उदासीन आश्रम अखाड़े एवं सिंधी साधु समाज के आश्रम है जो अनवरत समाज की सेवा में लगे हुए हैं। ज्ञातव्य हैं कि उदासीनाचार्य श्रीचंद्र महाराज का प्राकट्य दिवस प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ला नवमी को श्रीचंद्र नवमी के रूप में संपूर्ण विश्व में संतों महापुरुषों एवं अनुयायियों द्वारा मनाया जाता है।

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