92 साल की उम्र मे स्वर कोकिला लता मंगेशकर ने दुनिया को किया अलविदा
मुंबई ( भारत) ‘स्वर कोकिला’ लता मंगेशकर जी के निधन से भारत की आवाज़ खो गई है। लताजी ने आजीवन स्वर और सुर की साधना की। उनके गाये हुए गीतों को भारत की कई पीढ़ियों को सुना और गुनगुनाया है। उनका निधन देश की कला और संस्कृति जगत की बहुत बड़ी क्षति है।उनके परिवार और प्रशंसकों के प्रति मेरी संवेदनाएँ।
-आखिर जिसका डर था वो ही हुआ। भारत ने अपना सबसे अमूल्य रत्न खो दिया। कोरोना की कर्कश आवाज भारत की स्वर कोकिला को लील गई। आज सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर कोरोना से जंग हार कर दुनिया को विदा कह गईं। आज उन्होंने मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में आखिरी सांस ली। 92 साल की लता जी की 8 जनवरी को कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी, जिसके बाद उन्हें तुरंत अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनके भर्ती होने की खबर भी 2 दिन बाद 10 जनवरी को सामने आई थी।उन्होंने कोरोना और निमोनिया दोनों से 29 दिन तक एक साथ जंग लड़ी। उन्हें ब्रीच कैंडी अस्पताल के ICU रखा गया था। लंबे समय से लता ताई का इलाज कर रहे डॉ. प्रतीत समधानी की देखरेख में ही डॉक्टर्स की टीम उनका इलाज कर रही थी। इलाज के दौरान उनकी हेल्थ में सुधार भी देखा जा रहा था। उन्हें लगातार ऑब्जर्वेशन में रखा गया। करीब 5 दिन पहले उनकी सेहत में सुधार होना भी शुरू हो गया था। ऑक्सीजन निकाल दी गई थी लेकिन ICU में ही रखा गया। स्वर कोकिला, दीदी और ताई जैसे नामों से लोकप्रिय लता जी के निधन से पूरे देश में शोक की लहर है। फैंस उनके ठीक होने की दुआएं कर रहे थे, लेकिन आज इस बुरी खबर से करोड़ों संगीत प्रेमियों का दिल टूट गया। सैंकड़ों कालजयी गानों को अपनी आवाज देने वाली लता जी आज अनंत यात्रा पर चली गईं।खराब स्वास्थ्य की समस्या से जूझ रहीं महान गायिका लता मंगेशकर का रविवार की सुबह 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनकी बहन उषा मंगेशकर ने यह जानकारी दी। वह पिछले करीब एक महीने से मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती थीं। जानकारी के अनुसार सुबह 8.12 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। आठ जनवरी को वह कोरोना संक्रमित हुई थीं। करीब 4 साल से उनका रियाज खराब सेहत के कारण लगभग बंद सा ही था। नवंबर 2019 में भी लता जी को निमोनिया और सांस की तकलीफ के कारण ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती कराया जा चुका था। जहां वे 28 दिन भर्ती रही थीं। नवंबर 2019 के बाद से उनका घर से निकलना भी लगभग बंद हो चुका था। कुछ लोगों ने तस्वीर से यहां भी जा रही कर दिया था कि अब दुनिया में नही रही है । ऐसी अपवाह भी बहूत बार आये थी परंतु इस बार दुनिया छोड कर चली गई
संगीत की दुनिया के 8 सुरमयी दशक::::::
92 साल की लता जी ने 36 भाषाओं में 50 हजार गाने गाए, जो किसी भी गायक के लिए एक रिकॉर्ड है। करीब 1000 से ज्यादा फिल्मों में उन्होंने अपनी आवाज दी। 1960 से 2000 तक एक दौर था, जब लता मंगेशकर की आवाज के बिना फिल्में अधूरी मानी जाती थीं। उनकी आवाज गानों के हिट होने की गारंटी हुआ करती थी। सन 2000 के बाद से उन्होंने फिल्मों में गाना कम कर दिया और कुछ चुनिंदा फिल्मों में ही गाने गाए। उनका आखिरी गाना 2015 में आई फिल्म डुन्नो वाय में था। करीब 80 साल से संगीत की दुनिया में सक्रिय लता मंगेशकर का जन्म 28 सितंबर 1929 को मध्य प्रदेश के ही इंदौर में हुआ था। 13 साल की छोटी उम्र में 1942 से उन्होंने गाना शुरू कर दिया था। लता जी के पिता पं. दीनानाथ मंगेशकर संगीत की दुनिया और मराठी रंगमंच के जाने पहचाने नाम थे। उन्होंने ही लता जी जो संगीत की शिक्षा दी थी। 5 भाई-बहनों में सबसे बड़ी लता जी की तीन बहनें आशा भोंसले, उषा मंगेशकर, मीना मंगेशकर और भाई हृदयनाथ मंगेशकर हैं।
20सितंबर. को लता मंगेशकर का जन्मदिन (90 वर्ष )उम्र की हो गई थी। भारत की सबसे लोकप्रिय और आदरणीय गायिका हैं जिनका छः दशकों का कार्यकाल उपलब्धियों से भरा पडा हैं ।हालांकि लता जी ने लगभग तीस से ज्यादा भाषाओं में फिल्मी और गैर - फिल्मी गाने गाये हैं लेकिन उनकी पहचान भारतीय सिनेमा में एक पार्श्वगायक का रुप में रही हैं। अपनी बहन आशा भोंसले के साथ लता जी फिल्मी गायन मैं सबसे योगदान रहा है!
लता मंगेशकर पिता का नाम दीनानाथ मंगेशकर (गायक) और माता का नाम शेवन्ती मंगेशकर तथा पांच भाई और बहिन हैं (1) मीना (गायक) बहिन (2 ) ऊषा मंगेशकर (गायक ) बहिन ( 3 ) आशा भोसले (गायक) बहिन (4 ) हदयनाथ मंगेशकर ( भाई ) पुरस्कार (5) लता मंगेशकर,
लता मंगेशकर का जन्म 28 सितंबर 1929 को मध्यप्रदेश के इंदौर , इन्दौर राज्य ,सेन्ट्रल इंडिया एजेंसी, ब्रितानी भारत ( वर्तमान मध्यप्रदेश, भारत ) में हुआ। उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर एक कुशल रंगमंचीय गायक थे। दीनानाथ जी ने लता को तब से संगीत सिखाना शुरू किया, जब वे पांच साल की थी। उनके साथ उनकी बहनें आशा, ऊषा और मीना भी सीखा करतीं थीं। शुरुआती पढ़ाई लता 'अमान अली ख़ान साहिब' और बाद में 'अमानत ख़ान' के साथ भी पढ़ीं लता मंगेशकर हमेशा से ही ईश्वर के द्वारा दी गई सुरीली आवाज़, जानदार अभिव्यक्ति और बात को बहुत जल्द समझ लेने वाली अविश्वसनीय क्षमता का उदाहरण रहीं हैं। इन्हीं विशेषताओं के कारण उनकी इस प्रतिभा को बहुत जल्द ही पहचान मिल गई थी। लेकिन पाँच वर्ष की छोटी आयु में ही आपको पहली बार एक नाटक में अभिनय करने का अवसर मिला।
शुरुआत अवश्य अभिनय से हुई किंतु आपकी दिलचस्पी तो संगीत में ही थी। वर्ष 1942 में उनके पिता की मौत हो गई। तब लता केवल 13 वर्ष की थीं। नवयुग चित्रपट फिल्मच कंपनी के मालिक और इनके पिता के दोस्त4 मास्ट र विनायक (विनायक दामोदर कर्नाटकी) ने इनके परिवार को संभाला और लता मंगेशकर को एक सिंगर और अभिनेत्री बनाने में मदद की। गायकी में करियर सफलता की राह कभी भी आसान नहीं होती है। लता जी को भी अपना स्थान बनाने में बहुत कठिनाइयों का सामना करना पडा़। कई संगीतकारों ने तो आपको शुरू-शुरू में पतली आवाज़ के कारण काम देने से साफ़ मना कर दिया था। उस समय की प्रसिद्ध पार्श्व गायिका नूरजहाँ के साथ लता जी की तुलना की जाती थी। लेकिन धीरे-धीरे अपनी लगन और प्रतिभा के बल पर आपको काम मिलने लगा। लता जी की अद्भुत कामयाबी ने लता जी को फ़िल्मी जगत की सबसे मज़बूत महिला बना दिया था। लता जी को सर्वाधिक गीत रिकार्ड करने का भी गौरव प्राप्त है। फ़िल्मी गीतों के अतिरिक्त आपने ग़ैरफ़िल्मी गीत भी बहुत खूबी के साथ गाए हैं। लता जी की प्रतिभा को पहचान मिली सन् 1947 में, जब फ़िल्म “आपकी सेवा में” उन्हें एक गीत गाने का मौक़ा मिला। इस गीत के बाद तो आपको फ़िल्म जगत में एक पहचान मिल गयी और एक के बाद एक कई गीत गाने का मौक़ा मिला। लता जी ने दो आंखें बारह हाथ, दो बीघा ज़मीन, मदर इंडिया, मुग़ल ए आज़म, आदि महान फ़िल्मों में गाने गाये हैं। “महल”, “बरसात”, “एक थी लड़की”, “बडी़ बहन” आदि फ़िल्मों में अपनी आवाज़ के जादू से इन फ़िल्मों की लोकप्रियता में चार चांद लगाए। इस दौरान आपके कुछ प्रसिद्ध गीत थे: “ओ सजना बरखा बहार आई” (परख-1960), “आजा रे परदेसी” (मधुमती-1958), “इतना ना मुझसे तू प्यार बढा़” (छाया- 1961), “अल्ला तेरो नाम”, (हम दोनो-1961), “एहसान तेरा होगा मुझ पर”, (जंगली-1961), “ये समां” (जब जब फूल खिले-1965) इत्यादि।
पद्म भूषण पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं की सूची: - पद्म भूषण भारतीय गणराज्य का तीसरा सबसे बड़ा नागरिक पुरस्कार है। [1] प्रथम बार 2 जनवरी 1954 को आयोजित, यह पुरस्कार "उच्च क्रम की विशिष्ट सेवा" के लिए दिया जाता है, जो लिंग, जाती, व्यवसाय या स्थिति के भेद के बिना होता है। [2]प्राप्तकर्ताओं को एक सनद, भारत के राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित एक प्रमाण पत्र और बिना किसी मौद्रिक संघ के एक परिपत्र के आकार का पदक प्राप्त होता है। प्राप्तकर्ताओं के नाम हर साल गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) को घोषित किया जाता है और "द गजट ऑफ इंडिया" में पंजीकृत किया जाता है। एक प्रकाशन जो सरकारी नोटिस के लिए उपयोग किया जाता है और इसे शहरी विकास मंत्रालय के तहत प्रकाशन विभाग द्वारा साप्ताहिक जारी किया जाता है। [3] जब 1954 में स्थापित किया गया था, तो पद्म भूषण को तीन स्तरीय पद्म विभूषण पुरस्कारों के तहत
"दुसरा वर्ग" (द्वितीय श्रेणी) के रूप में वर्गीकृत किया गया था। इस पदानुक्रम में भारत रत्न का प्रथम स्थान था। पुरस्कार का मूल विनिर्देश मानक चांदी से बना एक चक्र था जिसका व्यास 1 3⁄8 इंच (35 मि मी) जिसके दोनों तरफ रिम्स थे पदक के अग्र भाग के केन्द्र में एक कमल का फूल उभरा हुआ था और उसके उपर देवनागरी लिपि में "पद्म विभूषण" लिखे गए था। नीचे के किनारे के साथ एक पुष्पांजलि उकेरी गई थी और ऊपरी किनारे पर कमल की माला थी। भारत के राज्य प्रतीक को पिछले तरफ़ के केंद्र में और निचले किनारे पर देवनागरी लिपि में "देश सेवा" लिखा गया था। पदक को एक गुलाबी रिवन द्वारा लटकाया गया जो 1 1/4 इंच (32 मिमी) की चौड़ाई में तीन समान खंडों में विभाजित किया गया था जिनमे दो सफेद खंडों है।[2] 15 जनवरी 1955 को, पद्म विभूषण को तीन अलग-अलग पुरस्कारों में पुनर्वर्गीकृत किया गया; पद्म विभूषण, तीनों में से सबसे उपर उसके बाद पद्म भूषण और अंत में पद्म श्री।
इसके लिए मानदंड किसी भी क्षेत्र में एक उच्च क्रम की प्रतिष्ठित सेवा जो कि सरकारी सेवक भी हो सकतें हैं लेकिन सार्वजनिक क्षेत्र में नहीं सार्वजनिक क्षेत्र में इसका अपवाद सिर्फ डॉक्टरों और वैज्ञानिकों के लिए रखा गया है। 1954 के क़ानून ने मरणोपरांत पुरस्कारों की अनुमति नहीं दी लेकिन बाद में इसे जनवरी 1955 के क़ानून में संशोधित कर दिया गया। इसके डिज़ाइन को उस रूप में भी थोडा संशोधित किया गया था जो वर्तमान में उपयोग में है। वर्तमान डिजाइन एक गोलाकार आकार का कांस्य पदक है जिसका व्यास 1 3⁄4 इंच (44 मिमी) और 1/8 इंच (3.2 मिमी) मोटा है। 1 3/16 इंच (30 मिमी) के किनारे के वर्ग की बाहरी रेखाओं से बना केंद्र के पैटर्न को बाहरी पैटर्न के प्रत्येक कोण के भीतर एक घुंडी के साथ उभरा होता है। व्यास 1 1⁄16 इंच (27 मिमी) का एक गोलाकार स्थान सजावट के केंद्र में रखा गया है।
पदक के अग्र भाग के केन्द्र में एक कमल का फूल उभरा हुआ है और उसके उपर देवनागरी लिपि मे "पद्म और नीचे "भूषण" लिखा जाता है। भारत के प्रतीक को पिछली तरफ के केंद्र में तथा भारत के राष्ट्रीय आदर्श वाक्य "सत्यमेव जयते" (सत्य की सदा जीत) को देवनागरी लिपि में नीचे लिखी गई है। इसके रिम, किनारों और दोनों तरफ सभी उभरे हुए वस्तु शुद्ध सोने की है तथा "पद्म भूषण" सोना से लिखा है।
पदक को एक गुलाबी रिवन 1 1/4 इंच (32 मिमी) चौड़ाई में एक व्यापक सफेद पट्टी के साथ लटका दिया जाता है। [3][4] भारतीय नागरिक और सैन्य पुरस्कारों के पदक और सजावट की के क्रम में यह पांचवें स्थान पर है 1954 में कुल तेईस पुरस्कार दिए गए, इसके बाद 1955 में बारह; 1956 में तेरह; 1957 में सोलह; 1958 में फिर से सोलह, और 1959 में चौदह, पहले छह वर्षों में कुल 94 जनों को प्रदान किया गया जिनमें 1955 में एक विदेशी सम्मानित किये गए। 1959 तक, नौ अलग-अलग क्षेत्रों के व्यक्तियों को सम्मानित किया गया, जिसमें साहित्य और शिक्षा से छब्बीस शामिल हैं, सिविल सेवा से सत्रह, बारह कलाकार, विज्ञान और इंजीनियरिंग से दस, सामाजिक कार्य से दस, सार्वजनिक मामलों से आठ, छह चिकित्सा से, चार खिलाड़ी और एक व्यापार और उद्योग से। इसके अलावा भी कुछ पुरस्कार 1963 ,1966, 1969 , 1970 , 1973 , 1994 , 1975 , 1998 , 1999 , 2000 ,2001 , इसके अलावा भी अनेक रत्न पुरस्कार प्राप्त है।
पीएम ने दी श्रद्धांजलि::::::::::::
पीएम नरेंद्र मोदी ने लता मंगेशकर के निधन पर शोक जताया है। उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा, "लता दीदी के गानों ने कई तरह के इमोशन्स को उभारा। उन्होंने दशकों तक भारतीय फिल्म जगत के बदलावों को करीब से देखा। फिल्मों से परे, वह हमेशा भारत के विकास के बारे में भावुक थीं। वह हमेशा एक मजबूत और विकसित भारत देखना चाहती थी।"रविवार को शिवसेना सांसद संजय राउत ने ट्वीट करते हुए जानकारी दी कि महान गायिका लता मंगेशकर का निधन हो गया है। डॉक्टरों ने इससे पहले शनिवार को जानकारी दी थी कि लता मंगेशकर को स्वास्थ्य स्थिर होने के बाद वेंटिलेटर से आईसीयू शिफ्ट किया गया था लेकिन अचानक बीते रोज उनकी सेहत बिगड़ने लगी, जिसके बाद उन्हें फिर वेंटिलेटर पर रखा गया था। रविवार सुबह उन्होंने अस्पताल में ही आखिरी सांस ली।
योगी आदित्यानाथ ने ट्वीट किया - स्वर कोकिला,'भारत रत्न' आदरणीया लता मंगेशकर जी का निधन अत्यंत दुःखद और कला जगत की अपूरणीय क्षति है। प्रभु श्री राम से प्रार्थना है कि दिवंगत पुण्यात्मा को अपने श्री चरणों में स्थान तथा शोकाकुल परिजनों व उनके असंख्य प्रशंसकों को यह दु:ख सहने की शक्ति प्रदान करें।
ॐ शांति!
बॉलीवुड इंडस्ट्री ने जताया दुख:::::
लता मंगेशकर के निधन के समाचार से बॉलीवुड इंडस्ट्री में शोक की लहर है। तमाम संगीतकारों ने उनके निधन को बड़ी क्षति बताया है। इससे पहले शनिवार की रोज लता की बहन आशा भोंसले ने अस्पताल पहुंचकर हाल जाना था। जब आशा अस्पताल से बाहर निकलीं थी तो उनके चेहरे पर मायूसी से अंदाजा लग गया था कि लता मंगेशकर की हालत ठीक नहीं है। उसके बाद रविवार यानि आज लता मंगेशकर के निधन की पुष्टि हुई। 'ऐ मेरे वतन के लोगो...' गाने से लता ने कर दिया था इनकार लता मंगेशकर के गाए सबसे लोकप्रिय गीतों में से एक है 'ऐ मेरे वतन के लोगो...'। पहले लता ने कवि प्रदीप के लिखे इस गीत को गाने से इनकार कर दिया था, क्योंकि वह रिहर्सल के लिए वक्त नहीं निकाल पा रही थीं। कवि प्रदीप ने किसी तरह उन्हें इसे गाने के लिए मना लिया। इस गीत की पहली प्रस्तुति दिल्ली में 1963 में गणतंत्र दिवस समारोह पर हुई। लता इसे अपनी बहन आशा भोसले के साथ गाना चाहती थीं। दोनों साथ में इसकी रिहर्सल कर भी चुकी थीं। मगर इसे गाने के लिए दिल्ली जाने से एक दिन पहले आशा ने जाने से इनकार कर दिया। तब लता मंगेशकर ने अकेले ही इस गीत को आवाज दी और यह अमर हो गया।