मृत्युभोज नहीं करने का निर्णय: छात्रावास के लिए दी राशि
राजगढ़ (अलवर,राजस्थान/ महेंद्र अवस्थी) मृत्युभोज एक सामाजिक बुराई है इस सच को अंगीकार करने के लिए दिल को मजबूत, लोक लाज को दरकिनार की पहल जरूरी है। किसी भी कुरीति एवं बुराई को छोडऩे की शुरुआत खुद से करनी पड़ती हैं। किसी अपने की मौत होने पर समाज में मृत्यु भोज कार्यक्रम आयोजित कराने की परंपरा लंबे समय से चली आ रही है। मृत्यु भोज पर खूब पैसा खर्च भी होता है। लेकिन क्षेत्र के टहला से एक ऐसी खबर सामने आई है। जिसे सुनकर हर कोई बेटों की तारीफ कर रहा हैं। क्योंकि इन बेटों ने अपने पिता की मौत पर मृत्यु भोज की जगह ऐसा काम किया जिसकी हर कोई तारीफ़ कर रहा है। आदिवासी सेवा संस्थान के कोषाध्यक्ष लल्लूराम खुर्द ने बताया कि टहला क्षेत्र के आंधा का गुवाड़ा निवासी लटूरमीना का
हाल ही निधन हो गया। मृतक के पुत्र कन्हैयालाल, पूरणचंद, रामगोपाल व रामप्रसाद मीणा ने समाज में मृत्यु भोज रूपी कुरुति को तोड़कर उन पैसों का समाज के विकास में खर्च करने का फैसला लिया साथ ही यह भी तय किया कि मृत्यु भोज करने के लिए जो भी दबाव आएगा वह सहन करेंगे व फैसले पर कायम रहेंगे। काफी दबाव के बाद भी चारो भाई अपने इस निर्णय पर अडिग रहे। चारो ने अपने पिता की पगड़ी रस्म पर थानागाजी विधायक कांतिप्रसाद मीणा,रैंणी प्रधान प्रतिनिधि मांगीलाल मीण, पूर्व प्रधान जयराम दास स्वामी, टहला सरपँच व समाज के अन्य लोगो की मौजूदगी में बालिका छात्रावास के लिए एक लाख रुपये का चैक सौंपा। इस मौके पर बेटों ने कहा कि उनके पिता की इच्छा भी थी कि उनकी मृत्यु भोज की राशि को समाज के कल्याण में दी जाये। उनके इस पहल की लोगो ने मुक्तकंठ से प्रशंसा करते कहा कि इस पहल का समाज में अच्छा संदेश जाएगा व अन्य लोग भी समाज सेवा को आगे आयेंगे।