खैरथल में स्थित दुनिया के इकलौते परी माता का मंदिर में दो साल के बाद बुधवार को भरेगा मेला
खैरथल में एक ऐसा मंदिर जहां होती है परियों की पूजा, मांगी जाती है मन्नत
खैरथल (अलवर, राजस्थान/ हीरा लाल भूरानी) आपको पता है परियों का एक भी इस दुनिया में हैं। जहां आज भी परियां आती है। इस लोक में वरदान देने के लिए। खूबसूरत परियों की दुनिया और उनके चमत्कारों की कहानियां बचपन में आप सभी ने सुनी व पढ़ी होंगी। कहा जाता है कि परियों के वरदान से लोगों की पीड़ाएं दूर हो जाती है और बच्चों के रोग ठीक हो जाते हैं
कोरोना महामारी की वजह से पिछले दो सालों से मेले का आयोजन नहीं हो पाया था। फिर भी आस्था व विश्वास के चलते चोरी छिपे कई श्रद्धालु बंद मंदिर के बाहर से ही धोक लगाकर मन्नत मांग कर गए। इस बार मंदिर में जबरदस्त भीड़ आने के आसार हैं।जिसकी तैयारियों के लिए स्वयंसेवी संगठन व्यवस्था करने में जुट गए हैं
खैरथल कस्बे की पुरानी आबादी खैरथल गांव में स्थित मंदिर को परी वाली हवेली और परी माता का मंदिर के नाम से जाना जाता है।इसे मानने वाले सिर्फ हिन्दू ही नहीं मुस्लिम समुदाय के लोग भी शामिल हैं।वे इसे परी बीबी की हवेली के नाम से जानते हैं और सिर झुकाने आते हैं।मत्स्यांचल के अलावा दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता जैसे दूर दराज के लोग हर साल लगभग 50 हजार तक श्रद्धालु यहां दर्शन व जात देने आते हैं। लोगों की मान्यता है कि छोटे बच्चों को उल्टी- दस्त सहित कई रोग माता मंदिर में जात लगाने पर ठीक हो जाते हैं। शादी से ठीक पहले रिश्ते होते ही माताएं अपने लड़के लड़कियों को जात देने यहां आती है। स्थानीय वाशिंदे नारायण छंगाणी ने बताया कि सैकड़ों वर्ष पूर्व इस हवेली में परियां आती थी। उनके दिए गए पानी से एक कोढ़ी की बीमारी ठीक हो गई व अन्य कई बीमार लोग ठीक हो गए। लोगों को चमत्कार लगा और मान्यता दूर- दूर तक फैल गई।
बैसाख माह में ही लगता है मेला : बैसाख माह में शुक्ल पक्ष में बुधवार को परी माता के मंदिर पर मेला भरता है। जिसमें प्रत्येक बुधवार को करीब 25 हजार लोग आते हैं।
चढ़ावे से होता है संचालन : परी माता मंदिर में वर्ष भर में आने चढ़ावे से मंदिर का संचालन होता है। मंदिर की पुजारिन मधु वासु ने बताया कि वे ही मंदिर की देखरेख करती है। चढ़ावे में अनाज व नकदी आती है। इससे व्यवस्थाओं का संचालन किया जाता है।
मंदिर का हुआ जीर्णोद्धार : हवेली काफी पुरानी होने से जर्जर हो गई थी,जिसे तीन वर्ष पूर्व जीर्णोद्धार कराया गया है। मंदिर परिसर में पक्की फर्श बना दी गई है।
स्थानीय लोग स्वयं ही आते हैं सेवा करने : इस मेले में बाहर से आए श्रद्धालुओं को कोई तकलीफ़ ना हो इसे लेकर ही स्थानीय लोग सेवादार के रूप में तैनात हो जाते हैं।कई लोग छोटे बच्चों को पानी,दूध की व्यवस्था करते हैं। इसके अलावा किसी महिला के साथ कोई वारदात या चेन तोड़ने आदि की घटना ना हो पर विशेष निगरानी रखी जाती है।