कौमी एवं धार्मिक एकता की मिसाल है झुंझुनू जिले की नरहड़ दरगाह
जगजायर नारे हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई हम सब है भाई भाई, की झलक देखने को मिलती है नरहड़ सरकार के दरबार में
झुंझुनू (राजस्थान/ सुमेर सिंह राव) भारतवर्ष में लोगों को जाति और धर्म में बांट रखा है। लोगों को जाति और धर्म के नाम पर भड़काया और आपस में लड़ाया जाता है। लेकिन इन सबसे ऊपर उठकर कुछ ऐसे उदाहरण भी हमारे सामने आते हैं जो हमें इंसानियत का पाठ पढ़ाते हैं। ऐसा ही एक उदाहरण झुंझुनू जिले के चिड़ावा क्षेत्र के नरहड़ गांव का है जहां सदियों से शक्कर बार पीर बाबा की प्राचीन दरगाह कौमी एवं धार्मिक एकता की मिसाल पेश करती है। यह दरगाह वतन के जगजायर नारे हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई हम सब हैं भाई भाई की झलक को वास्तविकता में चरितार्थ करती है। इस दरगाह की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां सभी धर्मों के लोगों को अपनी अपनी धार्मिक पद्धति से पूजा अर्चना कर बाबा के दरबार में हाजरी लगाते है। दरगाह के खादिम हाजी अजीज खान एवं दरगाह मैनेजर सिराज अली ने बताया कि कौमी एकता के प्रतीक के रूप में यहां प्राचीन काल से ही बाबा के वार्षिक उर्स एवं श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर विशाल मेले लगते है। जिसमें देश के कोने कोने से हिंदुओं के साथ-साथ सिख, ईसाई एवं मुसलमान पूरी श्रद्धा से शामिल होते हैं। नरहड़ सरकार के दरबार में पूरे भारतवर्ष से हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी धर्मों के लोग अपनी आस्था रखते हैं। जन्माष्टमी के अवसर पर यहां 3 दिन का मेला लगता है जिसमें हिंदू भाइयों द्वारा रतजुगा किया जाता है जिसमें महिलाएं मंगल गीत गाती है। तीन दिवसीय धार्मिक आयोजन में दूरदराज से आने वाले हिंदू लोग दरगाह में नवविवाहित जोड़ों के गठजोड़े की जात एवं बच्चों के जड़ूले उतारते हैं। बाबा के दरबार में सभी धर्मों के मानसिक व बीमार व्यक्ति तथा निसंतान जोड़े रोते हुए अपनी पीड़ा लेकर आते हैं। मान्यता है कि बाबा के दरबार की मिट्टी शरीर पर लगाने व दरगाह का जल पीने तथा बाबा की हरी डोरी बांधने से असाध्य रोग भी दूर हो जाते हैं और जायरीन बाबा के दरबार में ठीक होकर हंसी खुशी से अपने घर जाते हैं। बाबा के दरबार में मन्नत मांगने के लिए हरी डोरी बांधी जाती है। उन्होंने बताया कि तकरीबन 750 वर्ष पूर्व बनी इस दरगाह में 75 फीट ऊंचा और 48 फीट चौड़ा बुलंद दरवाजा बना हुआ है। बाबा की मजार का गुंबद चिकनी मिट्टी से बना हुआ है जिसमें पत्थर नहीं लगाया गया है। बताते हैं कि पुराने जमाने में इस गुंबद से शक्कर बरसती थी। इसलिए बाबा को शक्कर बार पीर बाबा के नाम से जाना जाता है। शक्कबार सरकार अजमेर के सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के समकालीन थे तथा उन्ही की तरह सिद्ध पुरुष भी थे। शक्कर बार पीर बाबा ने ख्वाजा साहब के 57 वर्ष बाद देह का त्याग किया था। राजस्थान, पंजाब, हरियाणा में शक्कर बार पीर बाबा को लोक देवता के रूप में पूजा जाता है। शादी, विवाह, जन्म, मरण कोई भी कार्य हो बाबा को अवश्य याद किया जाता है। नरहड़ गांव कभी राजपूत राजाओं की राजधानी हुआ करता था। उस समय यहां 52 बाजार थे। मजार तक पहुंचने वाले प्रत्येक जायरीन को यहां तीन दरवाजों से गुजरना पड़ता है। पहला दरवाजा बुलंद दरवाजा है। दूसरा बसंत दरवाजा और तीसरा बगली दरवाजा है। इसके बाद मजार शरीफ और मस्जिद है। नरहड़ के जोहड़ में दूसरी तरफ पीर बाबा के साथियों की मजार है जिन्हें घरसों वालों की मजार के नाम से जाना जाता है। हमारे ब्यूरो संवाददाता जगदीश प्रसाद महरानियां को फतेहाबाद के राम सिंह लोहार ने बताया कि बाबा के आशीर्वाद से हम 1999 से लगातार बाबा के दरबार में हर 40 दिन बाद प्रत्येक बुधवार को पीड़ित जायरीनों के लिए खाने पीने की व्यवस्था फ्री में करते हैं। उन्होंने बताया कि हम बहुत ज्यादा बीमार रहते थे और बाबा के दरबार में आने के बाद हमारी कई लाइलाज बीमारियां बिना किसी दवा के ठीक हो गई। बाबा ने हमें नई जिंदगी है। उन्होंने बताया कि जो भी जायरीन सच्चे मन से सरकार के दरबार में हाजरी लगाते हैं बाबा उनकी हर मुराद पूरी करते हैं।