प्राकृतिक भंडार हो रहे लुप्त: 2050 तक नहीं बचेगा मीठा पानी
बढ़ते मौसम परिवर्तन के चलते वर्तमान में पीने के मीठे पानी की कमी दिखाई देने लगी वहीं आने वाले 2050 तक सम्पूर्ण मीठे पानी के भण्डार खत्म होने की संभावना सी बन गई, वर्तमान समय में विश्व में 60 प्रतिशत आबादी को शुद्ध मीठा पानी पीने के लिए नसीब नहीं हो रहा।
जल के प्राकृतिक भण्डार खत्म होने के साथ लुप्त होते जा रहे वहीं प्राकृतिक आपदाएं बढ़ने लगी, पिछले वर्षों की स्थिति को देखते हुए पाया कि चीन, युरोप में रिकार्ड तोड़ वर्ष हुई तो ब्राजील में अमेजीन नदी का जल स्तर गिर गया तथा भारत में 7 फरवरी, 2021 को उत्तराखंड में ग्लेशियर फटने से धोली गंगा में बाढ़ आने से जो तबाही मची उसे भुला नहीं जा सकता।
प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण को लेकर कार्य कर रहे एल पी एस विकास संस्थान के प्रकृति प्रेमी राम भरोस मीणा ने बताया कि हम प्राकृतिक संसाधनों से विश्व के सबसे धनी देश रहें लेकिन इनके अंधाधुंध दोहन, संरक्षण के नाम पर उपेक्षा के चलते आज सभी खत्म होने के कगार पर पहुंच गए।
वनों की अंधाधुंध कटाई, बढ़ता खनन, औधौगिक ईकाईयों द्वारा फैलते कार्बनिक पदार्थों के साथ जल श्रोतों के अति दोहन से एक तरफ़ मौसम चक्र बिगड़ा वही पानी की समस्या बढ़ती दिखाई देने के साथ सभी जीवं संकट में दिखाई देने लगे।
वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए यदि जन जन में जागरूकता पैदा नहीं हुईं व पानी के संरक्षण को लेकर कार्य नहीं हुआं तो 2050 तक विश्व में मीठे पानी के भण्डार समाप्त होने की पुर्ण सम्भावना पैदा हो गई अतः हमें जल श्रोतों के संरक्षण के साथ साथ पानी को लेकर कार्य करना होगा