पानी-पेड़ के अंतर-सम्बन्धों को समझना बहुत जरूरी
देश दुनिया में पिछले कुछ सालों से पानी व पेड़ को लेकर विश्व स्तर पर चर्चाएं हों रही वहीं यह भी सोचा जा रहा कि "तीसरा विश्व युद्ध" पानी को लेकर लड़ा जाएगा। पानी के लिए युद्ध की यह सम्भावना पीने के पानी को लेकर उपजे गृह क्लेशो को देख कर अनुमान लगाना सत्य भी है, क्योंकि दिनों दिन भूगर्भीय जल स्तर गिरता जा रहा जो इस बात के साफ़ संकेत देता है। धरती पर विद्यमान सम्पूर्ण जल का तीन प्रतिशत जल पीने योग्य शुद्ध जल हैं या यूं कहें " जल की एक हजार बुंदों में पीने योग्य अमृत जल की मात्र दो बुंदे" होती है जो मानव के साथ सभी जीव जन्तु को जिवंत रखने में मददगार होती, इससे यह साफ होता है कि पानी का कुप्रबंधन रोक कर सही प्रबंधन होना चाहिए। पानी के सू- प्रबंधन के लिए वन, वनस्पति के साथ ग्रामीण वानिकी विकास के कार्य होने तय हों "जहां पेड़ वहां पानी " "जहां पानी वहां पेड़ " सही है। इस लिए पानी तथा पेड़ के अंतर संबंधों को समझने के साथ उनके संरक्षण, संवर्धन के लिए कार्य होना बहुत आवश्यक है। मानव के आर्थिक, औधोगिक विकास में जल जंगल दोनों का योगदान बराबर रहा, हम वर्तमान में देखें या किसी भी हजारों साल पुरानी सभ्यता, शहरीकरण जो आज अवशेष के साथ अपने विकास की गाथा सुनाते वो नदियों के किनारे जंगल में पनपे जहां पानी व लकड़ी आसानी से प्राप्त हो, मोहनजोदड़ो, हड़प्पा सभ्यताओं का जन्म बहते पानी के स्रोत के पास हुआ। भगवान श्री कृष्ण ने जल जंगल प्रबंधन को श्रेष्ठ पुन्य का काम बताया वहीं पीपल के पेड़ में स्वयं को विराज मान अर्थात "में ही पीपल हूं" कहां। हजारों वर्षों से ग्रामीण भारत में बरगद, पीपल, तुलसी की पुजा के साथ साथ चली आईं धराडी प्रथा मौजूद दिखाई देती जो प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की एक अनूठी पहल रहीं। इस तरह की अनेकों परमपराएं, रिती रिवाज जो लुप्त होते नज़र आ रहे उन्हें पुनः संरक्षण देना जरूरी हो गया, जिससे धरा पर उपजे विनाशकारी परिस्थितियों व प्राकृतिक संतुलन, स्वच्छता, सुंदरता बनाएं रखीं जा सके। प्राकृतिक संसाधनों में इन दोनों का श्रेष्ठ स्थान होने के साथ सभी के लिए उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण है, लेकिन दोनों की स्थिति का आंकलन किया जाए तो आने वाले कुछ दशकों में ना स्वच्छता रहेंगी ना सुन्दरता।
बढ़ते औधोगीकरण, शहरीकरण, बाजारीकरण के साथ मानव के भौतिकवादी दृष्टिकोण से पीने योग्य जल सार्वजनिक होते हुए निजी कम्पनियों के हाथों चला जा रहा जो आम आदमी की पहुंच से बहार होने लगा। शहरों के बढ़ते विकास, गांवों से कृषि भूमि पर फैलते शहरों व औधोगिक इकाइयां से जंगल 15 प्रतिशत के स्थान पर 7.5 प्रतिशत बच्चे वहीं पानी के अत्यधिक दोहन से देश के अधिकत्म क्षेत्र डार्क जोन में सामिल हो गये जो आगामी समय के लिए ख़तरे का संकेत है। वनों की अंधाधुंध कटाई, जल दोहन से आज स्वच्छता सुंदरता के साथ प्राणवायु पुर्ण रूप से प्राप्त नहीं होने पर लोगों के दम घुटते दिखाई देने लगे साथ ही शुद्ध पेयजल आपूर्ति नहीं होने से विविध प्रकार की शारीरिक मानसिक बिमारियां होने के साथ आम जन परेशान दिखने लगा जो आगामी पिंडियों के लिए बड़ा खतरा होंगा, पेड़ों के अभाव में पर्यावरण प्रदुषण जो बढ़ा उससे सुर्य का प्रकाशन मानव के अनुकूल नहीं रहा, आकाशगंगाओं को निहारना मुश्किल हो गया, पारिस्थितिकी तंत्र गड़बड़ा गया, वायु की गुणवत्ता खत्म हो गई, इन सभी के चलते सैकड़ों प्रजातियों के वन्य जीव व वनस्पतियां नष्ट हो गई जिनका सीधा असर पर्यावरण पर दिखाई दे रहा वहीं चारों ओर बढ़ते प्रदुषण, घुटते दम, गिरते जल स्तर से प्रत्येक जागरुक नागरिक, पर्यावरणविद्, सामाजिक कार्यकर्ता, प्रकृति प्रेमी चिंतित दिखाई थे रहें हैं।
पानी पेड़ के महत्व, उपयोगिता, संरक्षण की आवश्यकता को समझाने, समझने, कार्य करने का यह वह समय है जो एक बड़े विनाश से सम्पूर्ण सृष्टि को बचाने में सार्थक सिद्ध होगा। पुनः संजोकर रखने की जरूरत है, ओर इसके लिए दोनों को समझना आवश्यक होंगा। पेड़ पोंधे, वनस्पतियां वातावरण में आर्द्रता बनाएं रखने के साथ बादलों को अपनी ओर आकर्षित करतें हुए अधिक वर्षा कराने में सहयोग करने के साथ वर्षा के पानी को भूगर्भ तक अत्यधिक मात्रा में पहुंचाने, संग्रह करने का काम तेजगति के साथ करते वहीं पानी की पर्याप्तता से वनस्पतियों का विकास जोरों से होता है, पेड़ पोंधे अपना विकास जल्दी कर पाते जिससे पर्यावरण की शुद्धता, स्वच्छता, सुंदरता के साथ मानव व सभी जीव जगत के अनुकूल वातावरण तैयार होता जो आवश्यक व उपयोगी है, पारिस्थितिकी अनुकूलता के लिए वनों का पुनः15 प्रतिशत से अधिक होने के साथ बढ़ते शहरीकरण औधोगीकरण के दबाव को कम किया जाए वही पानी के प्राकृतिक स्रोतों, नदियों, नालों को स्वतंत्र बहनें दिया जाए जिससे प्राकृतिक संतुलन बन सकें। साथ ही हमें पेड़ तथा पानी दोनों के अन्तर सम्बन्धों को समझने के साथ आगामी पिंडियों के उज्जवल भविष्य के लिए इन्हें संरक्षण देने की आवश्यकता है। लेखक के अपने निजी विचार है