राजस्थान में आखिर खत्म हुआ RTH बिल का विरोध: सरकार और निजी डॉक्टर्स के बीच 8 मांगों पर बनी सहमति
जयपुर JMA हॉल में डॉक्टर्स की बैठक:::: आपस में भिड़े डॉक्टर, कुछ डॉक्टरों ने समझौते को मानने से किया इनकार, कहा सरकार के दबाव में हमारे नेताओं ने किया समझौते...
RTH पर डॉक्टर्स के आंदोलन में फिर से दो फाड़ ! पीपीपी मोड पर संचालित अस्पतालों ने किया समझौते का विरोध,
सरकार से रियायती दर पर जमीन लेने वाले अस्पतालों ने भी जताई नाराजगी, कहा-'उनसे पूछे बिना समझौते पर हस्ताक्षर क्यों किए गए ?, मेट्रो मास समेत कुछ अन्य अस्पताल संचालकों ने जताई नाराजगी'
निजी डॉक्टर्स की हड़ताल ख़त्म, सीएस के साथ वार्ता में बनी सहमति, सरकारी सहायता नहीं लेने वाले निजी अस्पताल RTH से बाहर....
प्राइवेट मेडिकल कॉलेज पर RTH होगा लागू... पीपीपी मोड पर बने अस्पतालों पर लागू होगा RTH, ट्रस्ट वाले निजी अस्पतालों पर भी RTH लागू होगा
राजस्थान में सरकारी, प्राइवेट मिलाकर 55 हजार से ज्यादा डॉक्टर्स हैं। सैकड़ों सरकारी अस्पतालों के अलावा 2400 से ज्यादा प्राइवेट अस्पताल हैं। इनमें जयपुर में ही कम से कम 500 से 600 अस्पताल हैं।
डॉक्टर्स और सरकार में हुआ समझौता ,ऐसे अस्पताल जिन्होंने सब्सिडी दर पर नहीं ली जमीन उन्हें RTH से रखा जाएगा बाहर, PPP मॉडल पर जारी अस्पतालों और अन्य अस्पतालों में RTH होगा लागू,
राजस्थान में 16 दिन से चल रही डॉक्टर्स की हड़ताल आज खत्म हो गई। जयपुर में राइट टू हेल्थ (आरटीएच) बिल पर मंगलवार को डॉक्टर्स और सरकार के बीच 8 मांगों पर समझौता हो गया है। मुख्य सचिव उषा शर्मा से मीटिंग के बाद इस पर फैसला लिया गया।
सेक्रेटरी प्राइवेट हॉस्पिटल्स एंड नर्सिंग होम्स सोसाइटी डॉ विजय कपूर ने बताया कि सुबह 10.30 बजे डॉक्टरों का एक प्रतिनिधि मंडल मुख्य सचिव से वार्ता के लिए उनके निवास पर पहुंचा था। सरकार ने हमारी मांगें मान ली है। हम सरकार के ड्रॉफ्ट से संतुष्ट है। बुधवार सुबह 8 बजे से सभी प्राइवेट हॉस्पिटल में मरीजों का इलाज शुरू हो जाएगा।
समझौते के पहले डॉक्टर्स ने महारैली निकाली। पिछले 10 दिन में डॉक्टर्स का ये दूसरा शक्ति प्रदर्शन था। इस रैली के बाद डॉक्टर्स का डेलिगेशन मुख्य सचिव से मिला और अपना आंदोलन खत्म करने का ऐलान किया। इससे पहले 27 मार्च को भी बड़ी रैली जयपुर में निकाली गई थी
स्वास्थ्य मंत्री ने कही ये बात- डॉक्टरों से समझौते के बाद मंत्री परसादी लाल मीणा ने कहा कि हम पहले भी डॉक्टरों की मांग मान रहे थे और आज डॉक्टरों ने खुद सरकार के राइट टू हेल्थ बिल के समर्थन में अपना आंदोलन वापस ले लिया है और राजस्थान देश का पहला राज्य बन गया है, जहां स्वास्थ्य का अधिकार कानून लागू होगा.
मुख्यमंत्री ने दी जानकारी- वहीं डॉक्टरों की हड़ताल खत्म होने को लेकर सीएम अशोक गहलोत ने कहा कि मुझे प्रसन्नता है कि राइट टू हेल्थ पर सरकार व डॉक्टर्स के बीच अंततः सहमति बनी और राजस्थान राइट टू हेल्थ लागू करने वाला देश का पहला राज्य बना है. मुझे आशा है कि आगे भी डॉक्टर-पेशेंट रिलेशनशिप पूर्ववत यथावत रहेगी.
इन आठ बिंदुओं पर बनी सहमति
- 50 बिस्तरों से कम वाले निजी मल्टी स्पेशियलिटी अस्पतालों को आरटीएच से बाहर कर दिया है।
- सभी निजी अस्पतालों की स्थापना सरकार से बिना किसी सुविधा के हुई है और रियायती दर पर बिल्डिंग को भी आरटीएच अधिनियम से बाहर रखा जाएगा।
- ये अस्पताल आरटीएच के दायरे में आएंगे-
- - निजी मेडिकल कॉलेज अस्पताल
- - पीपीपी मोड पर बने अस्पताल
- - सरकार से मुफ्त या रियायती दरों पर जमीन लेने के बाद स्थापित अस्पताल (प्रति उनके अनुबंध की शर्तें)
- - अस्पताल ट्रस्टों द्वारा चलाए जाते हैं (भूमि और बिल्डिंग के रूप में सरकार द्वारा वित्तपोषित)
- राजस्थान के विभिन्न स्थानों पर बने अस्पतालों को कोटा में नियमित करने पर विचार किया जायेगा नमूना
- आंदोलन के दौरान दर्ज किए गए पुलिस केस और अन्य मामले वापस लिए जाएंगे
- अस्पतालों के लिए लाइसेंस और अन्य स्वीकृतियों के लिए सिंगल विंडो सिस्टम होगा
- फायर एनओसी नवीनीकरण हर 5 साल में करवाया जाएगा
- नियमों में कोई और परिवर्तन, यदि कोई हो, आईएमए के दो प्रतिनिधियों के परामर्श के बाद किया जाएगा
जानिए- राइट टू हेल्थ बिल का मकसद : पैसों की वजह से किसी का इलाज न रुके
बिल को हेल्थ सेक्टर में क्रांतिकारी कदम बताया जा रहा है। सरकार की मानें तो बिल का मकसद प्रदेश के हर व्यक्ति को हेल्थ का अधिकार मुहैया कराना है। यानी कोई भी व्यक्ति पैसे की वजह से इलाज के लिए परेशान न हो। मोटे तौर पर यह बिल इमरजेंसी के दौरान हर व्यक्ति को बिना फीस और पुलिस की रिपोर्ट का इंतजार किए बगैर इलाज किए जाने की बात करता है। इस पर होने वाले खर्च का पैसा अगर व्यक्ति नहीं दे सकता है तो सरकार भरेगी। इसके अलावा बिल मरीजों को कई तरह की हेल्थ सुविधाएं देता है।
किस स्टेज पर है बिल ?- फिलहाल यह बिल विधानसभा से पारित हुआ है। विधानसभा से पारित होने के बाद यह बिल अब राज्यपाल के पास है। बिल राज्यपाल से मंजूरी के बाद एक्ट बन जाएगा और उसके बाद इसके सभी नियम डिफाइन किए जाएंगे। उसके बाद यह प्रदेश में लागू हो जाएगा।
जाने किन मुद्दो को लेकर डॉक्टर्स जता रहे विरोध
- हर बीमारी के फ्री इलाज का माहौल बनाना : डॉक्टर्स का कहना है कि अभी तो बिल ने कानून की शक्ल भी नहीं ली है। अभी से सरकार के नेता, कार्यकर्ताओं ने यह भ्रामक प्रचार करना शुरू कर दिया है कि इस बिल के आने से जनता को सब कुछ शानदार तरीके से मिलने वाला है। कोई भी परेशानी या इमरजेंसी होती है तो आपका अधिकार है कि आप नजदीकी प्राइवेट अस्पताल में जाएं और वहां से ट्रीटमेंट कराकर आप निकल जाएं, बाकी सरकार देखेगी। हर बीमारी के फ्री इलाज का माहौल बनाया जा रहा है। यह भी कहा जा रहा है वहां अगर अस्पताल या डॉक्टर को लेकर कोई भी शिकायत है तो प्राधिकरण में जाइए, आपकी सुनवाई होगी। पहले 10 हजार फिर 25 हजार की पेनल्टी लगाई जाएगी।
- इमरजेंसी को डिफाइन कौन करेगा : बिल का मोटे तौर पर विरोध प्राइवेट डॉक्टर्स कर रहे हैं। हालांकि कई मुद्दों को लेकर सरकारी डॉक्टर्स भी यह मानते हैं कि इससे उन्हें दिक्कतें आएंगी। बिल को लेकर सबसे बड़ा गतिरोध इमरजेंसी सेवाओं के लिए ही है। डॉक्टर्स का कहना है कि इमरजेंसी को डिफाइन कौन करेगा। एक मरीज और डॉक्टर के लिए इमरजेंसी का मतलब अलग हो सकता है। डॉक्टर्स का कहना है इमरजेंसी में तीन कैटेगरी बनाई गई है। इनमें स्नैक बाइट, पॉइजनिंग और रोड एक्सीडेंट हैं। डॉक्टर्स का कहना है कि स्नैक बाइट टोटल इमरजेंसी का एक प्रतिशत भी नहीं होता। वहीं जो होते हैं उनमें 95 प्रतिशत हार्मलेस होते हैं। जिनमें ट्रीटमेंट की जरूरत नहीं पड़ती। वहीं रोड एक्सीडेंट को लेकर डॉक्टर्स का यह मानना है कि बिल के अनुसार, इमरजेंसी में कोई भी पेशेंट आएगा तो उस समय स्पेशलाइज्ड डॉक्टर वहां हो या न हो पेशेंट का इलाज करना है, स्टेबलाइज करना है। अगर सुविधा नहीं है तो अपनी एंबुलेंस में पेशेंट को रेफर करना पड़ेगा।
- इन्फॉर्म कंसेंट कोई अनजान कैसे देगा : डॉक्टर्स बोलते हैं कि इस बिल में कहा गया है कि अगर आप क्वालिफाइड हैं तो पेशेंट का ट्रीटमेंट स्टार्ट करने से पहले इन्फॉर्मड कन्सेंट लेना पड़ेगा। अगर कोई रोड एक्सीडेंट हुआ और उस व्यक्ति को कोई अननॉन व्यक्ति सड़क से उठाकर लाता है तो कंसेंट कौन देगा। अनजान व्यक्ति वहां पर इन्फॉर्मेड कन्सेंट कैसे देगा। इस सूरत में इलाज नहीं हो पाएगा, देरी होगी। नतीजा पेशेंट को भुगतना पड़ेगा।
- पेशेंट का गोल्डन हावर निकल जाएगा : डॉक्टर्स कहते हैं कि बिल के तहत लोगों को इमरजेंसी में यह सुविधा उन सरकारी अस्पताल या डेजिगनेटेड हेल्थ सेंटर में मिलेगी जिसे सरकार चुनेगी। ऐसे में किसी को चेस्ट पेन हुआ या हार्ट अटैक हुआ तो वह नजदीकी सेंटर पर अप्रोच करेगा। वह प्राइवेट अस्पताल अगर इस श्रेणी में नहीं आता है तो बवाल होंगे, झगड़े होंगे। अस्पताल और पेशेंट में बहस होगी, इससे इलाज का गोल्डन हावर निकल जाएगा। शुरुआती 2 से 4 घंटे में पेशेंट को सही इलाज नहीं मिलता है तो हानिकारक हो सकता है, जान भी जा सकती है। इसके अलावा जरूरी नहीं कि जिस डेजिगनेटेड अस्पताल में पहुंचे वहां वो स्पेशलिस्ट डॉक्टर हो।
- स्पेशलिस्ट नहीं तो स्टेबलाइजेशन खतरा: डॉक्टर्स कहते हैं कि यह बिल बोलता है कि आपके पास सुविधा नहीं है, स्पेशलाइज्ड डॉक्टर नहीं है तो भी इमरजेंसी में उस पेशेंट को अटेंड करना पड़ेगा, उसको स्टेबेलाइज करना पड़ेगा। उसके बाद सही सलामत वह पेशेंट हायर सेंटर जहां सुविधा उपलब्ध हो वहां पहुंच जाए। स्पेशलिस्ट डाॅक्टर नहीं होने के बाद यह भी देखना है कि पेशेंट की डेथ न हो और वो सही सलामत ट्रांसफर करे। अगर कोई प्रेग्नेंसी केस हुआ तो नॉन-गायकॉनालॉजिस्ट कैसे ट्रीट कर सकता है। इस दौरान अगर पेशेंट को कोई भी दिक्कत होती है तो उसकी जिम्मेदारी डॉक्टर और हॉस्पिटल पर आएगी।
- हर पेशेंट को आधा घंटा तो कितने पेशेंट देख पाएगा डॉक्टर : डॉक्टर्स का यह भी कहना है कि बिल में पेशेंट के अधिकार बताए गए हैं। इसमें कहा गया है कि पेशेंट को डॉक्टर एक-एक चीज समझाएगा। अगर डॉक्टर ने एक पेशेंट को समझाने में आधा घंटा लगाया तो दिनभर में कितने पेशेंट देख सकेगा। हमारे यहां डॉक्टर्स पर वैसे ही पेशेंट का भार होता है। अगर ऐसा नहीं किया तो बिल के तहत आप कानूनन मुजरिम हो जाओगे। सरकारी अस्पतालों में दिक्कतें ज्यादा होंगी।
- बार-बार धोखे में रखा, कैसे मान लें बातें मानी जाएंगी : डॉ. चुग कहते हैं कि सरकार की नियत साफ होती तो मिनट्स के मीटिंग देने में क्या तकलीफ होती। स्वास्थ्य मंत्री का व्यवहार भी ठीक नहीं है। सीएम ने अच्छे से बात की मगर जब हमें बार-बार धोखा मिला हो तो हम कैसे मान लें कि सरकार रूल्स में हमारे अनुसार बदलाव कर देगी।
- आम आदमी बिल पढ़कर नहीं आएगा: डॉक्टर्स का कहना है कि वैसे ही राजस्थान में पेशेंट-डॉक्टर रिलेशन बेहतर नहीं है। इस बिल से झगड़े बढ़ेंगे, डॉक्टर्स और पेशेंट के बीच दूरियां बढ़ेंगी। माहौल बनाया जा रहा है कि हर बीमारी का इलाज फ्री में होगा। इससे रोज झगड़े होंगे। पेशेंट कहेगा कि फ्री में इलाज दो। बेबुनियादी शिकायतें होंगी, गैर जरूरी ब्यूरोक्रेसी का इंटरफेरेंस होगा, इससे भ्रष्टाचार को और बढ़ावा मिलेगा। खास तौर से हिंसा की घटनाएं बढ़ने लगेंगी।
- 3-4 साल पुराना पैसा भी अब तक नहीं मिला : प्राइवेट डॉक्टर्स का कहना है कि सरकार कहती है कि वो इमरजेंसी सेवाओं का पैसा उन्हें देगी। मगर सरकार की ओर से पैसा समय पर कभी नहीं आता। तीन-चार साल तक पैसा सरकार से नहीं मिलता, आधा पैसा रिजेक्ट कर देते हैं। पहले फ्री में इलाज करवा लेते हैं, उसके बाद बिल में आपत्तियां लगाकर आधा रिजेक्ट कर दिया जाता है। जबकि आधा पैसा आने में सालों लग जाते हैं।
- गैर-क्लीनिकल व्यक्ति डॉक्टरी प्रक्रिया कैसे समझेगा : आईएमए राजस्थान के प्रेसिडेंट डॉ. सुनील चुग कहते हैं कि शिकायतों और समाधान के लिए अथॉरिटी बनाई गई हैं। ग्रीवनेंस कमेटी में एमएलए-प्रधान को सदस्य बनाया गया था। अगर डॉक्टर के विरूद्ध शिकायत हुई तो कमेटी का कोई भी सदस्य उसके घर, क्लीनिक में घुसकर सर्च एंड सीज कर सकता है। अब डॉक्टर्स को शामिल किया है मगर अब भी ब्यूरोक्रेटस को रखा है।