अनूठी शादी - पलाश के पत्तल-दोने, वृक्षारोपण, बिंदोली की जगह कवि-सम्मेलन, उपहार में पुस्तकें, जूठन नहीं छोड़ने का आग्रह और राजस्थानी में कुमकुम पत्रिका
भीलवाड़ा : राजकुमार गोयल
शहर के उपनगर पुर के एक परिवार ने अपने पुत्र के एक विवाह कार्यक्रम में कई नवाचार किये। पुर निवासी कैलाशचंद्र विश्नोई ने अपने पुत्र रोहित सुकुमार के विवाहोपलक्ष्य पर आयोजित प्रीतिभोज में सिंगल-यूज प्लास्टिक से बढ़ रहे पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए डिस्पोजल की थाली-कटोरी काम में लेने के बजाय प्राकृतिक पलाश के पत्तों से बने पत्तल-दोनों का उपयोग किया। विश्नोई ने मेवाड़ी कहावत 'कण-कम करता ही मण हुव' का प्रयोग करते हुए कहा कि ऐसे छोटे-छोटे प्रयासों से भी हम हम धरती माता की सेवा कर सकते हैं। गायें इन पत्तों को खा जाये तो भी उनको इससे कोई नुकसान नहीं है।
जोधपुर से पधारे अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण प्रेमी खमूराम बिश्नोई और उनकी पर्यावरण सेवक टीम ने वर को वृक्षारोपण हेतु जोधपुर से लाकर आशाफल का पौधा भेंट किया तथा स्नेह भोज में भोजन कर रहे अतिथियों से जूठन नहीं छोड़ने का भी आग्रह किया। खमूराम बिश्नोई विगत पच्चीस वर्षों से पर्यावरण संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं। 'वर्ल्ड एनवायरमेंट कान्फ्रेंस' में भारत की तरफ से दो बार फ्रांस में प्रतिनिधित्व कर चुके बिश्नोई बताते हैं कि प्रकृति के प्रदूषित होने का सबसे बड़ा कारण हमारी डिस्पोजल-प्लास्टिक पर बढ़ती निर्भरता है।
सुकुमार के विवाह समारोह में बिंदोली के स्थान पर कवि-सम्मेलन के आयोजन किया गया जिसमें देश के नामचीन राष्ट्रीय हास्य कवि दीपक पारीक, गीतकार रमेश शर्मा आदि कवियों ने अपनी कविताएँ पढ़ी। कवि-सम्मेलन के अंत में विश्नोई परिवार द्वारा पधारे अतिथियों को पुस्तकें भेंट की गई।
विश्नोई के अनुसार हम विवाह समारोहों में लाखों रुपये ऐसे ही पानी की तरह केवल नाचने-गाने और प्रदर्शन में खर्च कर देते हैं, जबकि इन कार्यक्रमों में इस तरह के नवाचार करके हमारी प्रकृति और संस्कृति के संरक्षण में हम भी अपना योगदान कर सकते हैं।