शिष्य होने का अर्थ क्या है : श्याम बाबा
खैरथल (लवर, राजस्थान/हीरालाल भूरानी) कस्बे के विजय गार्डन में कथा का आयोजन किया गया। कथा में बाबा आयाराम दरबार सरदार नगर अहमदाबाद के गद्दी नशीन संत जीवण राम उर्फ श्याम बाबा ने उपस्थित सत्संग प्रेमियों को प्रवचन करते हुए बताया कि मनुष्य को अपने जीवन में गुरु बनाना चाहिए।जिस किसी से भी शिक्षा मिले उसे ग्रहण कर अपना जीवन संवारना चाहिए। इसके संदर्भ में बाबा ने एक दृष्टांत के द्वारा बताया कि एक दिन एक शिष्य ने महंत से सवाल किया, स्वामीजी आपके गुरु कौन हैं...?
आपने किस गुरु से शिक्षा प्राप्त की है....? महंत शिष्य का सवाल सुन कर मुस्कुराए और बोले, ”मेरे हजारों गुरु हैं ! यदि मै उनके नाम गिनवाने बैठ जाऊ तो शायद महीनों लग जाए, लेकिन फिर भी मै अपने तीन गुरुओं के बारे में तुम्हें जरुर बताऊंगा.....!
पहला गुरु-चोर.....- एक था चोर, एक बार मैं रास्ता भटक गया था और जब दूर किसी गाव में पंहुचा तो बहुत देर हो गयी थी। सब दुकाने और घर बंद हो चुके थे, लेकिन अंततः मुझे एक व्यक्ति मिला जो एक दीवार में सेंध लगाने की कोशिश कर रहा था। मैने उससे पूछा कि मैं कहाँ ठहर सकता हूं, तो वह बोला की आधी रात गए इस समय आपको कहीं भी आसरा मिलना बहुत मुश्किल होगा, लेकिन आप चाहे तो मेरे साथ ठहर सकते हैं, मै एक चोर हूँ और अगर एक चोर के साथ रहने में आपको कोई परेशानी नहीं होंगी तो आप मेरे साथ रह सकते हैं.....!
वह इतना प्यारा आदमी था कि मै उसके साथ एक महीने तक रह गया ! वह हर रात मुझे कहता कि मैं अपने काम पर जाता हूं, आप आराम करो, प्रार्थना करो, जब वह काम से आता तो मै उससे पूछता की कुछ मिला तुम्हे? तो वह कहता की आज तो कुछ नहीं मिला पर अगर भगवान ने चाहा तो जल्द ही जरुर कुछ मिलेगा। वह कभी निराश और उदास नहीं होता था, हमेशा मस्त रहता था.....!
जब मुझे ध्यान करते हुए सालों-साल बीत गए थे और कुछ भी हो नहीं रहा था तो कई बार ऐसे क्षण आते थे कि मैं बिलकुल हताश और निराश होकर साधना-वाधना छोड़ लेने की ठान लेता था, और तब अचानक मुझे उस चोर की याद आती जो प्रतिदिन कहता था कि भगवान ने चाहा तो जल्द ही कुछ जरुर मिलेगा......!
दूसरा गुरु-कुत्ता.....- और मेरा दूसरा गुरु एक कुत्ता था, एक बहुत गर्मी वाले दिन मै बहुत प्यासा था और पानी के खोज में घूम रहा था कि एक कुत्ता दौड़ता हुआ आया, वह भी प्यासा था, पास ही एक नदी थी, उस कुत्ते ने आगे जाकर नदी में झांका तो उसे एक और कुत्ता पानी में नजर आया जो की उसकी अपनी परछाई थी। कुत्ता उसे देख बहुत डर गया। वह परछाई को देखकर भौकता और पीछे हट जाता, लेकिन बहुत प्यास लगने के कारण वह वापस पानी के पास लौट आता, अंततः, अपने डर के बावजूद वह नदी में कूद पड़ा और उसके कूदते ही वह परछाई भी गायब हो गई, उस कुत्ते के इस साहस को देख मुझे एक बहुत बड़ी सीख मिल गई, अपने डर के बावजूद व्यक्ति को छलांग लगा लेनी होती है, सफलता उसे ही मिलती है जो व्यक्ति डर का साहस से मुकाबला करता है.....!
तीसरा गुरु -छोटा बच्चा.....- और मेरा तीसरा गुरु एक छोटा बच्चा है, मै एक गांव से गुजर रहा था कि मैंने देखा एक छोटा बच्चा एक जलता हुआ दीपक ले के जा रहा था, वह पास के किसी मंदिर की मुंडेर पर रखने जा रहा था। उपहास में ही मैंने उससे पूछा की क्या यह ये दीपक तुमने जलाया है...? वह बोला, जी मैंने ही जलाया है। तो मैंने उससे कहा की एक क्षण था जब यह दीपक बुझा हुआ था और फिर एक क्षण आया जब यह दीपक जल गया। क्या तुम मुझे वह अग्नि/ज्योतिस्त्रोत दिखा सकते हो जहाँ से वह ज्योति आई....?
वह बच्चा हँसा और दीपक को हाथ हिलाकर हवा से बुझाते हुए बोला, अब आपने ज्योति को जाते हुए देखा है। कहाँ गई वह....? आप ही मुझे बताइए।
मेरा अहंकार चकनाचूर हो गया, मेरा ज्ञान जाता रहा। और उस क्षण मुझे अपनी ही मूढ़ता/मूर्खता का एहसास हुआ। तब से मैंने कोरे ज्ञान से हाथ धो लिए।
शिक्षा -शिष्य होने का अर्थ क्या है...? शिष्य होने का अर्थ है पूरे अस्तित्व के प्रति खुले होना। हर समय हर ओर से सीखने को तैयार रहना।जीवन का हर क्षण, हमें कुछ न कुछ सीखने का मौका देता है, हमें जीवन में हमेशा एक शिष्य बनकर अच्छी बातो को सीखते रहना चाहिए, यह जीवन हमें आये दिन किसी न किसी रूप में किसी गुरु से मिलाता रहता है, यह हम पर निर्भर करता है कि क्या हम उस महंत की तरह एक शिष्य बनकर उस गुरु से मिलने वाली शिक्षा को ग्रहण कर पा रहे हैं की नही।
सत्संग समारोह के उपरांत विश्व सिंधी पकौड़ा डे मनाया गया। इस पकोड़ा डे पर कस्बे के सिन्धी समाज की मातृशक्ति ने विभिन्न प्रकार के पकौड़े बनाए। तथा उपस्थित सत्संग प्रेमियों को प्रसाद के रूप में वितरित किए। कथा आयोजक एवं पकौड़ा डे आर्गेनाइजर हीरालाल भूरानी ने उपस्थित महिलाओं एवं पुरुषों, बच्चों का आभार व्यक्त किया।