युगपुरुष क्रांतिसूर्य महात्मा फुले जयंति पर विशेष
लेखक मंगल चंद सैनी बडागांव
महात्मा ज्योतिराव फुले का जन्म 11 अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र में हुआ था। उस दौर में महाराष्ट्र में धार्मिक तानाशाही व धार्मिक गुलामी इस कदर हावी थी कि दलितों अछूतों व शूद्रों का जीवन नर्क के समान था। इन लोगों को शिक्षा का अधिकार नहीं था छुआछूत इतनी थी कि शुद्र को घर से बाहर जाना होता तो केले के पत्ते पैरों में बांधकर घूमने हेतु गले में हांडी ,घंटी लगाकर जाते थे जिससे उनके अपवित्र पैर धरती पर नए पड़े घंटी से आवाज करते ताकि पता लग जाये कि शूद्र आ रहा है घर के बाहर सुबह शाम के बजाय दोपहर में निकलते ताकि छाया अपने ऊपर ही पड़े। ऐसे समय में महात्मा फुले का जन्म हुआ जिन्होंने हजारों वर्षों से चली आ रही धार्मिक तानाशाही को चुनौती देकर समाज सुधार के कार्य किए। उनकी जीवनी पर न जाकर उनके द्वारा किए गए कार्यों की विवेचना ही प्रस्तुत लेख में कर रहा हूं यथा -
1.स्त्री शिक्षा-पहले तो उन्होंने अपनी अशिक्षित पत्नी को स्वयं पढ़ाकर शिक्षिका बनाया उसके बाद1848 में सर्वप्रथम कन्या पाठशाला खोली जो देश की प्रथम कन्या शाला थी।1851 तक आसपास के क्षेत्रों में 18 स्कूल खोली जिनमें अछूतों के लिए भी शामिल थी। सावित्रीबाई पढ़ाने जाया करती थी ।
2.विधवा विवाह-उस घोर ब्राह्मणवादी समय में विधवा के पुनर्विवाह की कोई सोच भी नहीं सकता था उस वक्त फूले दंपति ने अनेक विधवा विवाह करवाएं।
3.बाल हत्या निषेध गृह -उस वक्त विधवाओं पर अत्याचार होते थे उन्हें अवैध संतान भी हो जाती थी फूले दंपति ने ऐसी अबला विधवा जो गर्भवती हो जाती उनके लिए बाल हत्या निषेध गृह खोला जहां वे निर्भय होकर अपने बच्चे की प्रसूति करवाती तथा उसका पालन पोषण करती। वहीं बाल हत्या निषेध गृह में एक ब्राह्मण विधवा से उत्पन्न बालक को महात्मा फुले ने गोद लेकर चिकित्सक बनाया और अपनी पूरी संपत्ति वसीयत में दे दी। ऐसा उदाहरण कहीं भी मिलना मुश्किल है।
4.कुंआ अछूतों के लिए खोला-अछूतों के पीने के लिए पानी की घोर समस्या थी महात्मा फुले ने अपने घर में स्थित कुआं उनके लिए खोल दिया।
5.केश वपन बंदी-विधवा के सिर के बाल काट कर छोड़ दिया जाता था महात्मा फुले ने महाराष्ट्र में नाइयों का संघ बनाया और इस बात के लिए राजी किया कि वे किसी भी विधवा का केस मुंडन नहीं करेंगे।
6.बालविवाह प्रतिबंध-बाल विवाह की बुराइयों को देखते हुए उन्होंने बाल विवाह रुकवाये। साथ ही सरकार से इस बाबत कानून बनवाया।
7.सती प्रथा निषेध-अपने पति की चिता पर जबरन उसकी पत्नी को जला दिया जाता था महात्मा फुले ने तत्कालीन ब्रिटिश राज्य में इस पर कानून बनवाया जिससे सती प्रथा पर बहुत हद तक रोक लगी।
8.सत्यशोधक समाज-धार्मिक विषमता व शूद्रों पर हो रहे अत्याचारों के उन्मूलन हेतु फूले ने 1873 में सत्यशोधक समाज की स्थापना की हजारों लोग इस मुहिम में शामिल हुए जिन्होंने पूरे महाराष्ट्र में समाज में व्याप्त कुरीतियों में बुराइयों को दूर करने का बीड़ा उठाया।
9.विवाह संस्कार ब्राह्मणों की बपौती नहीं-उन्होंने कहा कि विवाह आदि संस्कार ब्राह्मणों के बिना करवाये जावे जिससे गुस्साए ब्राह्मणों ने जिला न्यायालय में मुकदमा किया जिसका निर्णय ब्राह्मणों के पक्ष में सुनाया गया किंतु महात्मा फुले ने हाई कोर्ट में अपील की जिसमें फुले जी के विचारों का समर्थन किया और कहा कि विवाह आदि संस्कार अन्य लोगों के द्वारा भी कराए जा सकते हैं।
10.-साप्ताहिक अवकाश-मुंबई के मिल मजदूरों की यूनियन बनाई जिसमें उनके साथी नारायण मेघाजी लोखंडे से मिलकर मजदूरों के लिए साप्ताहिक अवकाश स्वीकृत करवाया मजदूरों के लिए काम के घंटे तय करवाएं मिल में काम करते समय अंग भंग या मृत्यु होने पर उसे सुरक्षा देने का कानून बनवाया।
11.किसानों के लिए-महात्मा फुले ने किसानों के लिए खेत में समतलीकरण सिंचाई के लिए नहरें व खाद बीज तारबंदी जैसी सुविधाएं ब्रिटिश सरकार से मंजूर करवाई।
ज्योतिराव व्यक्ति नहीं शक्ति थे वे कहते थे मनुष्य जन्म से नहीं कर्म से श्रेष्ठ बनता है। अनेक कष्ट सहकर भी शूद्रों अछूतों की भलाई के कार्यों से पीछे नहीं हटे चाहे उनको अपना घर भी क्यों नहीं छोड़ना पड़ा। एक बार भयंकर अकाल पड़ा तो महात्मा फुले ने अनाज का संग्रहण कर गरीबों को निशुल्क वितरण किया।
" महात्मा की उपाधि "
11मई 1888 का दिन था मुंबई के मांडवी कोलीवाडा में भव्य सभागृह लोगों से खचाखच भरा था बहुत से लोग बाहर मैदान में भी जमा थे। थोड़े ही क्षणों के बाद ज्योति राव का आगमन हुआ उनके दर्शन होते ही लोगों की आंखों से अश्रु धारा बह चली फिर राव बहादुर विट्ठल राव वनडेकर ने अपने हाथों में पुष्पमाला लेकर ज्योति राव के गले में पहनाई सभी उपस्थित भीड़ में प्रसन्नता से ऊंची आवाज में जोतीराव की जय जय कार की और उन्हें महात्मा की उपाधि प्रदान की।