बुनियादी सुविधाओं से वंचित है भील आदिवासी
बुनियादी सुविधाओं से वंचित है भील आदिवासी ,आदिवासी दिवस मनाना महज औपचारिकता
डीग भरतपुर
डीग - 9 अगस्त सन् 1942 में आज ही के दिन भारतवासियों द्वारा भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई थी जिसमें आदिवासियों का भी बड़ा योगदान रहा । यूँ तो 1855 में ही स्वतंत्रता संग्राम से पूर्व ही आदिवासियों ने करो या मरो , अंग्रेजों माटी छोड़ो का नारा बुलंद कर अंग्रेजों के शासन कि नहीं नींव हिला दी थी । स्वतंत्रता के बाद से लेकर आज तक इस दिन को हम औपचारिकता निभाते हुए आदिवासी दिवस के रूप में भले ही मनाते चले आ रहे है लेकिन स्वतंत्र भारत में आदिवासी लोगों के लिए विकास के नाम पर सिर्फ दिखावे के अलावा कुछ नहीं कर पाए है । आज भी इन आदिवासी लोगो के लिए सरकारी सुविधाऐं केवल कागजों में ही सिमटकर रह गयी हैं । ऐसा ही एक उदाहरण डीग उपखंड की ग्राम पंचायत अऊ के अंतर्गत 10 परिवारों के समूह में रहने वाले भीलों के डेरा के हालात को देखकर साफ नजर आता है । जहां आदिवासी भील आज भी बिजली , पानी , आवास तथा रास्ते जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं । पीने के लिए डेढ़ किलोमीटर से पानी लाना इनके लिए रोज का शगल है। वहीं बरसात के दिनों में इनकी बस्ती में गन्दा पानी इकठ्ठा होने से लोगों का डेरा से बाहर निकलना दूभर हो जाता है , वहीं बच्चे भी बरसात के मौसम में स्कूल जाने से वंचित रह जाते हैं । यदि अगर कोई बीमार हो जाये तो उसे कन्धों पर बैठाकर अस्पताल पहुंचाया जाता है । जहाँ एक तरफ शासन और प्रशासन की ओर से इन्हें कोई राहत नहीं मिली है वहीं ग्राम पंचायत प्रशासन भी आबादी की भूमि नहीं होना बताकर अभी तक पल्ला झाड़ता चला रहा है । अभी तक इन लोगों की मूलभूत सुविधाओं को प्रशासनिक अधिकारीयों और जन प्रतिनिधियों ने भी नजरअंदाज किया है। फिर चाहे मामला वोट का हो या सरकारी सुविधाओं का यह लोग आज भी दोयम दर्जे की जिंदगी बिताने को मजबूर हैं। वहीं इन आदिवासी भीलों का कहना है कि सरपंच से लेकर एमपी , एमएलए तक बड़े - बड़े वादे कर वोट माँगने आते हैं लेकिन आज तक कोई सुविधा उनको नहीं मिली है। इनका दर्द है कि ग्राम पंचायत से लेकर उपखंड अधिकारी व जिला कलेक्टर तक समस्याओं से अवगत कराने के बाद भी उनकी समस्याओं की ओर किसी ने भी अभी तक ध्यान नहीं दिया है ।
डीग से पदम जैन की रिपोर्ट