जिन नौनिहालों के हाथों में किताबें होनी चाहिए वो आज ढो रहे बोझा, आखिर कैसे आगे बढ़ेंगे कचरा ढोने वाले ये बच्चे

कचरे में सिमटती नौनिहालों की जिंदगी

Jul 20, 2021 - 22:15
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जिन नौनिहालों के हाथों में किताबें होनी चाहिए वो आज ढो रहे बोझा, आखिर कैसे आगे बढ़ेंगे कचरा ढोने वाले ये बच्चे

भीलवाड़ा (राजस्थान/ बृजेश शर्मा) कोरोना वैश्विक महामारी के चलते जहा सरकारी व निजी शिक्षण संस्थाएं संचालित नहीं हो रही है वहीं उन विद्यालयों में पढ़ने वाले  गरीब तबके के बच्चे दिनभर बाजारों में भारी भरकम बोझा ढोते नजर आ रहै हैं l स्कूलेनहीं खुलने के कारण बच्चे दिन भर घरों में बोर हो जाते हैं l जो गरीब तबके के नौनिहाल हैं उनकी जिंदगी तो बस कचरे के ढेर में ही सिमटती ही नजर आ रही है l दिन में चिलचिलाती धूप में यह नौनिहाल नंगे पांव कस्बे की गलियों में कचरा बीनते नजर आ ही जाते हैं l वाह रे सरकारी तंत्र  क्या नौनिहालों का यही हाल होता रहेगा या फिर इनके हाथों में पाटि पोथी देकर इनको देश का एक शिक्षित नागरिक भी बनाया जा सकेगा l अगर यह नौनिहाल ऐसे ही कचरे में नंगे पांव बोझा ढोते रहेंगे तो आखिर कैसे हमारा देश आगे बढ़ेगा यह केंद्र व राज्य सरकार को सोचना चाहिए कचरा बीनने वाले नौनिहालों को उनके घर वाले  नंगे  पांव भेज देते हैं दिनभर यह बच्चे गलियों में घूम घूम कर कचरा बीनते रहते हैं l कचरा बीनने वाले नौनिहालों पर न तो इनके घर वालों का ध्यान रहता है न  ही सरकारों का  l

खानाबदोश बच्चों का नहीं कोई ठौर ठिकाना:- : रहने को घर नहीं, सोने को विस्तर नहीं, अपना तो खुदा है रखवाला। यह पंक्तियां नगर में घुमंतू बच्चों पर सटीक बैठती है। दर्जनों की संख्या में खाना बदोश जीवन जीने वाले बच्चे इधर उधर घूमते देखे जा सकते है। वे न दिन में ठीक से भोजन करते है और ना ही रात में पूरी नींद सो पाते है। ऊपर से तरह-तरह नशे की लत से इन बच्चों का भविष्य खराब हो रहा है। घुमंतू बच्चे अपने आप में समस्या बन चुके है। इनका कोई ठौर ठिकाना नहीं है। जहां खाना मिल जाता है वहीं खा लिए और सो जाते है। घुमंतू बच्चे शिक्षा पाने से कोसो दूर है। ये घुमंतू बच्चे नशे की जद में आते है और फिर धीरे-धीरे छोटे मोटे अपराध में शामिल होने लगते है। इन बच्चों की आदत इतनी बिगड़ चुकी है कि वे दिन भर रुमाल के सहारे व्हाइटनर व सुलेशन सूंघते रहते है जो बच्चे यह सब प्रयोग नहीं करते उन्हें भी विवश कर दूसरे बच्चे नशा सेवन कराने लगते है। वैसे तो बहुत सी स्वयं सेवी संस्थाएं इस तरह के बच्चों को पढ़ाने के नाम पर सरकार से लाखों रुपये प्राप्त करती है। लेकिन यह संस्थाएं इन बच्चों के भविष्य को संवारने के लिए कोई भी काम नहीं कर रही है।अब देखना ये है की सरकार इन नोनिहालो की सुध कब लेती हैं।
 

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