बेटियां पहुंची ससुराल, सरकार भूली कन्यादान, प्रदेश में सरकारी दावे झूठे हुए साबित
श्रमिकों की बेटियों के लिए 'कन्यादान' व सरकारी दावे प्रदेश में झूठे साबित हो रहे हैं- ब्रह्मदत्त मीणा गुड़ा
उदयपुरवाटी (झुंझुनू,राजस्थान/ सुमेरसिंह राव) अखिल भारतीय मीणा संघ राजस्थान के प्रदेश महासचिव ब्रह्मदत मीणा गुङा ने मुख्यमंत्री को भेजा ज्ञापन ब्रह्मदत्त मीणा ने बताया कि श्रमिकों की बेटियों के लिए 'कन्यादान' के सरकारी दावे प्रदेश में झूठे साबित हो रहे हैं। सरकार ने शुभ शक्ति योजना के तहत श्रमिक परिवारों की बेटियों के लिए 55 हजार रुपए की सहायता का प्रावधान कर रखा है,
लेकिन कोरोनाकाल में भी जिम्मेदारों ने सरकारी सहायता को लापरवाही से उलझा दिया है। प्रदेश के लाखों से अधिक श्रमिक परिवारों को बेटियों के कन्यादान की राशि का इंतजार है। इनमें से सैकड़ों बेटियां शादी होकर ससुराल भी पहुंच चुकी हैं। जिम्मेदारों का कहना है कि कोरोनाकाल की वजह से आवेदनों का सत्यापन नहीं हो सका है। प्रदेश में हजारों श्रमिक परिवार ऐसे हैं जिन्होंने बेटी की सगाई तय होते ही योजना में आवेदन कर दिया, लेकिन शादी तक राशि नहीं मिली तो मजबूरी में साहुकारों या बैंक से कर्जा लेकर बेटी की शादी की। अब कोरोनाकाल में पैसा नहीं चुका पा रहे हैं।
तीन साल बाद भी नहीं मिली सहायता
अकेले झुंझुनूं जिले में हजारों से अधिक आवेदन आए। लेकिन जांच के नाम पर हजारों श्रमिक परिवारों को बाहर का रास्ता दिखाया गया। सरकार ने सहायता देने का वादा किया। लेकिन अभी तक कुछ ही परिवारों को ही राशि मिली है। सरकारी कन्यादान का इंतजार करने वाली श्रमिक परिवारों की कई बेटियों की शादी को दो से तीन साल हो गए।
55 हजार की सहायता का प्रावधान
श्रम विभाग में पंजीकृत श्रमिकों की बेटियों की शादी पर शुभ शक्ति योजना के अन्तर्गत 55 हजार रुपए की आर्थिक सहायता दी जाती है। इसके लिए बेटी का आठवीं पास व आयु 18 वर्ष से अधिक होना आवश्यक है। श्रम विभाग की ओर से श्रमिक का सत्यापन किया जाता है। इसके बाद विभाग की ओर से सहायता राशि ऑनलाइन दी जाती है।
अब पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर निस्तारण
विभाग का दावा है कि कोरोना की वजह से लंबित आवेदनों की संख्या बढ़ी है। ऐसे में ऑनलाइन आधार पर आवेदनों का सत्यापन करवाया जा रहा है। सभी श्रम आयुक्तों को पहले आओ पहले पाओ की तर्ज पर आवेदनों का ऑनलाइन निस्तारण करने के निर्देश दिए हैं।
श्रमिकों के साथ मजाक
सरकार श्रमिक परिवारों के साथ मजाक करने पर तुली हुई है। वर्ष 2017 के हजारों फार्म लंबित चल रहे हैं। एक तरफ सरकार कोरोनाकाल में श्रमिकों की मदद का दावा कर रही है, दूसरी तरफ प्रदेश के लाखों से अधिक आवेदनों का अब तक सत्यापन नहीं हुआ है।