लक्ष्मणगढ़ उपखंड मुख्यालय की सब्जी मंडी टैक्स वसूलने के पश्चात भी सुविधाओं के लिए मोहताज
शौचालय खाने पीने बैठने के लिए नहीं है कोई व्यवस्था, बढ़ते कोरोना संक्रमण को देखते हुए सब्जी मंडी अगर कस्बे के बाहर लगे तो मिल सकती है कुछ राहत।
लक्ष्मणगढ़ (अलवर,राजस्थान/ गिर्राज सौलंकी) देश प्रदेश में चारों ओर कोरोना महामारी को लेकर हाहाकार मचा है ,पर लक्ष्मणगढ़ कस्बे में आज भी लोग इस महामारी को हल्के में ले रहे हैं । यहां प्रातः काल 5:00 बजे से ही सब्जी मंडी लगना शुरू हो जाती है। जिसमें बाहर से आने वाली सब्जी और गांव से आने वाले छोटे दुकानदार कस्बे वासी अपनी सब्जी खरीदने के लिए मंडी में प्रातः 5:00 बजे से 8:00 बजे तक जबरदस्त भीड़ भाड़ नजर आती है। हद की बात तो यह है ना तो दुकानदारों ने मास्क लगाया हुआ है। नाही खरीददारों ने मास्क लगाया है ।ना सोशल डिस्टेंसिंग है। सभी एक दूसरे से कसते भिड़ते नजर आ रहे हैं। ऐसे में यह लोग संक्रमण के शिकार हो तो क्यों ना हो। कभी भी इस मंडी के अंदर हाइपोथायरायडिज्म का छिड़काव नहीं ।, फिर क्या संक्रमण से निजात मिल सकती है।तो इन लोगों ने इन व्यापारियों ने खरीददारों के लिए सब्जी लेकर आने वाले किसानों के लिए क्या सुविधा दे रखी है ।सुविधा के नाम पर केवल शोषण गरीब किसान कैसे कैसे अपनी सब्जी खेतों में पैदा करके इन मंडियों तक पहुंचाता है । मंडियों में आने के पश्चातबैगर मास्कके पुलिस के चालान जुर्माना राशि भुगतनी पड़ती है। हो सके तो डंडे भी खाने पड़ सकते हैं। प्रताड़ित भी होना पड़ता है। पर इन मंडी संचालकों को शर्म आनी चाहिए इन मंडी के आढ़तियों को कम से कम इन्हें मास्क तो वितरण करें ।इन आढ़तियों की फर्म पर ना सैनिटाइजर उपलब्ध है, ना मास्क जब व्यक्ति मंडी में वर्षों से जुड़ा हुआ है ,इन फर्म के मालिकों को वर्षों से लाभ देते आ रहे हैं।तो इन्हें भी तो कम से कम यह सोचना चाहिए कि इनके लिए निशुल्क मास्क की व्यवस्था करें ।सैनिटाइजर की व्यवस्था करें, जबकि एक मास की कीमत मात्र ₹3 की है और इन लोगों की वजह से यह फर्म के मालिक कितना पैसा कमाते हैं। तो इनके लिए कम से कम मास्क की व्यवस्था करें।इन बेचारे गरीब मजदूर किसान रेहड़ी पटरी दुकानदार सब्जी बेचने वालों के मांस्क के नाम ₹100 ₹500 की जुर्माना राशि वसूल की जा रही है । पुलिस के द्वारा प्रताड़ित भी होना पड़ रहा है। जब यह फर्म के मालिक ही इनके बारे में नहीं सोचते हैं तो फिर कौन सोचेगा मंडी के नियम कायदे के अनुसार क्रेता और विक्रेता दोनों से मंडी टैक्स के नाम पर इनकी जेब कतरी जा रही है। पर सुविधा के नाम पर कुछ भी नहीं सुविधा की बात करें तो यहां इन्हें पीने के लिए पानी तक की व्यवस्था नहीं बैठने के लिए जगह नहीं सरकार के नियमानुसार मंडी में अपनी फसल बेचने वाले किसान को खाने तक की व्यवस्था की गई है पर आज तक यहां किसी किसान को खाने की व्यवस्था नहीं की गई है यहां केवल मंडी के नाम जेब कतरी होती है।परबेचने वालो के लिए शौचालय तक करने तक की व्यवस्था नहीं फिर कैसा मंडी टैक्स, दुकानदारों को रेहड़ी पटरी पर सब्जी बेचने वालों को पक्के बिल पर माल नहीं दिया जाता कच्चे बिल कच्ची पर्ची पर धड़ल्ले से चल रहा है वर्षों से यह व्यापार सब कुछ इनका लीपापोती का खेल बराबर चल रहा था । पर कोरोना समय में तो इनके लिए चंद पैसे के मास्क की व्यवस्था तक नहीं कर सकते इस पतली गली में इस कॉलोनी में गंदगी के आलम में कैसे इस मंडी की स्वीकृति दी गई ।मंडी परिसर में एक भी सीसी कैमरा नहीं लगा हुआ है। अगर ऐसे में कॉलोनी के बीच पतली गली में इस मंडी में भीड़भाड़ वाले इलाके में अगर कोई किसी की जेब का कर ले तो पुलिस के लिए सिरदर्द बन जाती है अगर सीसीटीवी कैमरे हो तो कुछ सोहलियत तो बन सकती है।उपखंड क्षेत्र की बड़ी मंडी और सुविधाओं के लिए मोहताज अब देखना यह है फर्म के मालिक मंडी सचिव इन किसानों व दुकानदारों कि समस्याओं पर गौर फरमाया जाता है या नहीं उपखंड अधिकारी के मुख्यालय पर ही जब मंडियों में यह हालात हैं बाकी तो क्या हो सकता है यह आप खुद आइडिया लगा सकते हैं।