जल झूलनी एकादशी पर निकाले गये ठाकुरजी के भव्य एवं आकर्षक डोले
बहरोड़ (अलवर, राजस्थान/ सुभाष यादव) बहरोड़ कस्बे सहित आस-पास के क्षेत्र में श्रद्धालुओं की ओर से जल झूलनी ग्यारस का पर्व बड़े ही उत्साह एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। इस मौके पर कस्बे में विभिन्न स्थानों से ठाकुरजी के भव्य एवं आकर्षक डोले निकाले गये। शहर में जगह- जगह लोगों ने ठाकुर जी के डोले पर पुष्प बरसाए। ठाकुर जी के डोले मुख्य रास्तों से होते हुए श्री गोगा मन्दिर पहूॅचे। इस दौरान कथावाचक ने लोगों को भगवान विष्णु की कथा सुनाई। इस अवसर पर काफी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे। जानकारी के अनुसार भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तनी एकादशी भी कहते हैं। इसके अलावा इसे जलझूलनी यानी डोल ग्यारस भी कहते हैं।
- डोल ग्यारस का महत्व
बताते है कि इस दिन भगवान विष्णु करवट बदलते हैं। इसीलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी कहते हैं। परिवर्तिनी एकादशी के व्रत से सभी दुख दूर होकर मुक्ति मिलती है। इस दिन को व्रत करने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। इस दिन भगवान कृष्ण के बाल रूप का जलवा पूजन किया गया था। इसीलिए इसे डोल ग्यारस कहा जाता है। इसी दिन राजा बलि से भगवान विष्णु ने वामन रूप में उनका सर्वस्व दान में मांग लिया था एवं उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर अपनी एक प्रतिमा को राजा बलि को सौंप दी थी । इसी वजह से इसे वामन ग्यारस भी कहा जाता है।
क्यों कहते हैं डोल ग्यारस :- इस दिन भगवान कृष्ण के बालरूप बालमुकुंद को एक डोल में विराजमान करके उनकी शोभा यात्रा निकाली जाती है। इसीलिए इसे डोल ग्यारस भी कहा जाने लगा।