गुरु पूर्णिमा का पवन पर्व 24 जुलाई को, जाने गुरु पूजन का सर्वश्रेष्ठ समय
गुरु पूर्णिमा अर्थात् महर्षि वेदव्यास जी की जयंती इस वर्ष 24 जुलाई को है। योग शिक्षक पंडित लोकेश कुमार ने बताया कि आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था। इनका जन्म गंगा के बीच में बने एक द्वीप पर हुआ था। इसलिए इन्हें कृष्ण द्वैपायन भी कहते हैं। महर्षि वेदव्यास असाधारण संत थे। उन्होंने वेदों को ज्ञान, कर्म, भक्ति व उपासना के आधार पर चार भागों में बांटा था। महाभारत महाकाव्य के रचयिता महर्षि वेदव्यास जी ही थे। महर्षि वेदव्यास महाभारत काल के प्रत्यक्षदर्शी रहे थे। इसी कारण गुरुओं में सबसे श्रेष्ठ नाम इन्हीं का आता है और इन्हीं की जन्म जयंती पर गुरु पूर्णिमा का उत्सव मनाया जाता है। यह दिन गुरु पूजन के लिए श्रेष्ठ माना गया है। जिन व्यक्तियों ने गुरुओं को माना हुआ है। उस दिन गुरु दर्शन करके उन्हें गुरु दक्षिणा देते हैं। इसके बाद भोजन करते हैं। ऐसा माना जाता है कि गुरु के बिना मुक्ति नहीं होती। लेकिन गुरू निष्काम एवं निष्पक्ष होना चाहिए।
इस वर्ष गुरु पूर्णिमा 24 जुलाई को प्रातः 8:07 तक ही है। अर्थात उदय काल में पूर्णिमा विराजमान है। इसलिए गुरु पूर्णिमा का पर्व सारे दिन मनाया जाएगा। गुरु पूर्णिमा शनिवार को है। शनिवार को उत्तराषाढ़ा नक्षत्र दोपहर 12:39 तक है जो राक्षस योग का निर्माण करता है। ऐसे में गुरु पूजन करना श्रेष्ठ नहीं होता है। गुरु पूजन का शुभ मुहूर्त 12:40 से 16:39 तक उत्तम रहेगा। गुरुओं से आशीर्वाद लेना, उनका पूजन करना, सम्मान करना, उपहार देना यह सब गुरु पूजन के अंतर्गत आते हैं और गुरु के बताए हुए नियमों पर चलना ही मानव का कर्तव्य है। इस दिन पूर्णिमा प्रातः 8:07 बजे तक ही है इसलिए इस दिन पूर्णिमा स्नान का महत्व है। पूर्णिमा का व्रत एवं दान आदि एक दिन पूर्व अर्थात 23 जुलाई को करेंगे। बहुत से हिंदू परिवारों में इस दिन व्रत रखा जाता है और सत्यनारायण भगवान की पूजा की जाती है। यह एक दिन पूर्व 23 तारीख को संपन्न होगी। व्रत समापन (परायण) के समय शाम को पूर्णिमा होनी चाहिए तभी चंद्रमा को अर्घ्य दे कर व्रत खोल लेना चाहिए ।