मंदिरो में भक्त की भाषा कम भिखारी की भाषा ज्यादा सुनाई देती है - आचार्य संयम सागर
भरतपुर,राजस्थान/ पदम चंद जैन
ड़ीग (5 दिसंबर) धर्म और धन दोनों औषधि है लेकिन धर्म अंदर पीने का टॉनिक है जबकि धन एक मल्हम हैं जो शरीर पर बाहर लगाने की दवा है। दोनों का यही प्रयोग जीवन ओर जीव को स्वस्थ बनाता है। परंतु दुर्भाग्य से आज सब कुछ उल्टा पुल्टा हो रहा है धर्म को दिखावे के लिए बाहर लगाया जा रहा है और धन को व्यक्ति पीने में लगा है उसे जिया जा रहा है। यही आज मनुष्य में तनाव का कारण है। यह बात शनिवार को कस्बे के पुरानी ड़ीग स्थित श्री दिगंबर जैन चंद्रप्रभु मंदिर में प्रवचन करते हुए जैन मुनि आचार्य संयम सागर महाराज ने कही।
उन्होंने कहा की आजकल लोग भगवान के समक्ष प्रार्थना कम याचना ज्यादा करते हैं मंदिरों में भक्तों की भाषा कम और भिखारी की भाषा ज्यादा सुनाई देती है। अक्सर हम ईश्वर से कहते हैं कि प्रभु हमारी भक्ति में क्या कमी है जो तुम नहीं पिघल रहे हो। तब ईश्वर कहता है मेरे बच्चे बात ऐसी है की तू वह करता है जो तू चाहता है ।पर होता है वह जो मैं चाहता हूं ।अब तू मेरी एक बात सुन तू वह कर जो मैं चाहता हूं। तो फिर वही होगा जो तू चाहता है । इस मौके पर अध्यक्ष गोपाल जैन ,वीरेन्द्र जैन, धर्मेंद्र जैन कोका राम जैन सुभाष जैन अनिल जैन तारा जैन अनूप जैन भारत जैन सहित बड़ी संख्या में जैन समाज के महिला व पुरुष मौजूद थे।