क्या यही व्यवस्था है ? यह आत्महत्या नहीं वरन हत्या ही है
गहलोत की इसी व्यवस्था से प्रताड़ित होकर तीन स्टार के ईमानदार पुलिस अफसर का व्यवस्था से हार मानकर आत्महत्या कर इस दुनिया को अलविदा कह देना जहा बेहद चिन्ताजनक है
अलवर
सूबे के मुखिया अशोक गहलोत अपनी सरकार को पारदर्शी -जबावदेही सरकार बताकर लगातार ढिंढोरा पीट कर जनता को प्रभावित करने का प्रयास करते रहे है।गहलोत की इसी व्यवस्था से प्रताड़ित होकर तीन स्टार के ईमानदार पुलिस अफसर का व्यवस्था से हार मानकर आत्महत्या कर इस दुनिया को अलविदा कह देना जहा बेहद चिन्ताजनक है वही व्यवस्था पर भी कई सवालिया निशान खड़े कर दिए है।यह हत्या उस अकेले पुलिस अफसर की नहीं बल्कि अब हमें भी व्यवस्था में अपने स्थान की भी कल्पना कर ही लेनी ही चाहिए।यह भी सही है हम हमेशा की तरह इंस्पेक्टर की हत्या को भी कुछ दिनों के बाद अपने दिल दिमाग से ओझल कर देंगे।सत्तारूढ़ पार्टी किस प्रकार सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करती है यह किसी से छिपा नहीं है। हम इसी से अंदाजा लगा सकते है कि रविवार को छुट्टी के दिन हम अपने काम तय करते है उसी रविवार को छुट्टी के दिन भी नेताओं के काम सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग कर होते है।*
*बताया जा रहा है कि राजगढ़,चुरू थाना प्रभारी विष्णु दत्त विश्नोई ईमानदार पुलिस अफसर थे।हाल ही में उन्हें एसपी गौतम ने भी ऑल राउंड बेस्ट कार्य के लिए बेस्ट ट्रॉफी से भी सम्मानित किया था।उनकी ईमानदारी का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन पर मिथ्या आरोप लगाकर उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित कर आत्महत्या के लिए मजबूर कर दिया।असल में ईमानदार व्यक्ति या फिर किसी अफसर पर उस व्यवस्था की ओर से ही उसकी ईमानदारी को ही कटघरे में खड़ा कर दिया जाए जिस व्यवस्था पर उसे यकीन हो तो वह अफसर वाकई मानसिक रूप से अवश्य टूट जाएगा।ऐसा माना जाता है और यह सही भी है कि व्यवस्था के साथ चलने वाले अफसर कभी आत्महत्या का कदम उठा ही नहीं सकते है।जनता के दिल मे दिवंगत इंस्पेक्टर विश्नोई को लेकर काफी सम्मान दिखना भी इस बात का प्रमाण है कि वे साफ छवि के मिलनसार पुलिस अफसर रहे है लेकिन ईमानदार पुलिस अफसर विष्णु भ्रष्ट व्यवस्था से मेल नहीं बैठा कर व्यवस्था के साथ नहीं चल सकें और भ्रष्ट व्यवस्था से समझौता करने की बजाए कठोर लेकिन दुःखद निर्णय ले लिया।बहरहाल प्रदेश की जनता ईमानदार दिवंगत इंस्पेक्टर विष्णु के आत्महत्या को लेकर दुःखी है और निष्पक्ष जांच कर आत्महत्या की वास्तविक वजह जानने की इच्छुक है लेकिन जब व्यवस्था ही भ्रष्ट हो ऐसे में जनता के सामने इंस्पेक्टर की आत्महत्या की असिलियत कभी सामने आ पाएगी यह सम्भव नहीं लग रहा है।असल मे इंस्पेक्टर ने आत्महत्या कतई नहीं की है बल्कि वे भ्रष्ट व्यवस्था के बलि चढ़ गए।
राजीव श्रीवास्तव की कलम से