जैन संत स्वाद के लिए नहीं धर्म साधना के लिए करते हैं आहार :-आचार्य ज्ञान भूषण जी महाराज
लक्ष्मणगढ़ में जैन संत की आहार चर्या हुई संपन्न
लक्ष्मणगढ़ (अलवर, राजस्थान/ गिर्राज प्रसाद सोलंकी) वैसे तो भारत के हर कोने में कई तरह की परंपरा खान पान और नियम की रही हैं। हर धर्म में खानपान की अलग परंपरा के साथ ही दिगंबर जैन संतो की भी अलग परंपरा है। जैन मुनि की आहार चर्या अचंभित करने वाली है, इनके कठोर नियम के चलते कई दिनों तक भूखा रहना पड़ सकता है। दिगंबर जैन संत आचार्य 24 घंटे में एक बार ही भोजन पानी लेते हैं। जैन साधु स्वाद के लिए नहीं साधना के लिए आहार करते हैं। वैसे भी इनकी साधना के साथ आहार चर्या भी अहम हिस्सा है। यह भोजन स्वाद के लिए नहीं धर्म साधना के लिए भोजन करते हैं। जब जैन साधु भोजन के लिए निकलते हैं तो विधि नियम लेकर के निकलते हैं। पडगाहन में श्रद्धालुओं के द्वारा मन वचन काया से शुद्धि का वचन दिया जाता है। श्रद्धालु यानी श्रावक के पास कलश होना चाहिए नारियल होना चाहिए लॉन्ग होनी चाहिए इस तरह के नियम को लिया जाता है। यह वस्तु ना देखने पर यह आहार बगैर श्रावक के घर के दरवाजे से वापस चले जाते हैं। और फिर दूसरे दिन वही नियम संकल्प के साथ निकलते हैं नियम नहीं होने पर यह श्रावक के दरवाजे से लौट जाते हैं। उस घर में प्रवेश नहीं करते। फिर कहीं अगले दिन का इंतजार किया जाता है। साधु की आहार चर्या को कौशिग वर्ती कहते हैं। एक स्थान पर खड़े होकर दोनों हाथों को मिलाकर ये अंजलि भरते हैं उसमें भोजन करते हैं।
नीचे एक बाल्टी और बाल्टी पर लगा हुआ जार या कपड़ा ताकि भोजन करते समय भोजन का कण धरती पर ना गिर पाए इस तरह की व्यवस्था रखते हैं श्रावक। साधु के भोजन के दौरान शुद्धता और पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है। भोजन के दौरान चींटी बाल या अपशिष्ट पदार्थ आ जाता है तो भोजन लेना बंद कर देते हैं और वही अंतराय हो जाता है। फिर पानी भी नहीं लेते हैं । उसी वक्त अंतराय कर देते हैं। वही तोड़ते हुए भोजन के प्रति साधु की आस्तविकता दूर हो जाती है। दिन में एक बार भोजन करने के पीछे कई कारण है शरीर से मम्तत्व भाव कम करना धर्म साधना करते व्यक्त आलस्य ना आ जाए, भोजन को शुद्धता के साथ बनाए जाने पर विशेष ध्यान रखना जरूरी है। वही पूज्य आचार्य जी ने बताया कि साधु की साधना जैन दिगंबर साधु की कठिन होती है त्याग तपस्या का जीवन होता है साधु स्वाद के लिए नहीं भोजन करते धर्म साधना के लिए भोजन करते हैं।
साधु के भोजन के समय बड़ा ध्यान रखा जाता है कहीं भोजन में बाल ना आ जाए कहीं कोई अवशिष्ट पदार्थ ना गिर जाए श्रावक को भी यह होता है कि आज मेरे घर भोजन करने मेरे गुरुवर आ रहे हैं तो कहीं अंतराय ना हो जाए इन सब बातों का ध्यान रखा जाता है यही जैन साधना और आहार चर्या है।