हरे पेड़ों पर कटाई के लिए चल रहा आरा, जिम्मेदार बेखबर
बहरोड़ (अलवर, राजस्थान/ मयंक जोशीला) कोरोना के वजह से ऑक्सीजन के लिए मारामारी है। समय से ऑक्सीजन नहीं मिलने सये कई लोग दम तोड़ चुके थे। लेकिन मानव को मुफ्त में सांस देने वाले पेड़ों की कोई कद्र ही नहीं है। बहरोड़ उपखण्ड के नीमराना थाना क्षेत्र में बेरोकटोक पेडों पर आरी चलाई जा रही है। पेड़ों की कटाई धड़ल्ले से की जा रही है। सड़क किनारे गड्ों में लगाए गए वृक्ष की धड़ल्ले से कटाई की जा रही है। बहरोड़ उपखण्ड के आस-पास दर्जनभर लकड़ी माफिया गिरोह सड़क किनारे गड्डों व सार्वजनिक स्थानों से हरे पेड़ों की कटाई का धंधा जोरों पर चल रहा है। हरे पेड़ों की कटाई कर लकड़ी तस्कर इन पेड़ों को काटकर आरा मशीनों पर बेचकर मोटा मुनाफा काम रहे है। लकड़ी तस्करों के मुनाफाखोरी के धंधे के चलते हरियाली को बिगाड़ा जा रहा है। वहीं हरियाली को उजाड़कर पर्यावरण संतुलन भी बिगाड़ा जा रहा है। उपखंड प्रशासन सहित पटवारी और ग्राम पंचायतों ने आंखें बंद कर रखी है। किसी की भी कोई रोक टोक नहीं होने से हरे पेड़ों की अवैध कटाई करने वालों के हौसले दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे है। बहरोड़ व नीमराना उपखण्ड एनसीआर क्षेत्र अंतर्गत आता है और एनसीआर क्षेत्र में प्रदूषण खतरनाक स्तर पर है। लोगों का सांस लेना दुस्वार हो रहा है। प्रदूषण को कम करने के लिए एक तरफ एनसीआर में उद्योगों को बन्द करवाया जाता है। वहीं दूसरी तरफ पर्यावरण संरक्षण में अहम योगदान देने वाले पेड़ पौधों का जो जीवनदायिनी आक्सीजन देते हैं। खाद्य, जल एवं आहार श्रृंखला को आगे बढ़ाने में पक्षियों का भी बड़ा योगदान होता है। उन पेड़ पौधों को जिम्मेदार अधिकारियों की अनदेखी के चलते धड़ल्ले से काटा जा रहा है। जानकारों का कहना है कि यही हाल रहा तो पेड़ पौधे की कमी से आक्सीजन की कमी होती चली जाएगी। जिससे जीना दूभर हो जाएगा। ऐसे में पेड़ पौधे जीवन को बचाने में ही नहीं अपितु पर्यावरण को सुरक्षित रखने में भी अहम रोल अदा कर रहे हैं। अगर पेड़ पौधे कम हो जाएंगे तो पक्षियों का आश्रय स्थल कम होता चला जाएगा। यही कारण है कि पेड़ों की कटाई के चलते जीव-जंतु कम होते चले जाएंगे। आहार श्रृंखला में भी पेड़ पौधों की भूमिका कम नहीं है। शाकाहारी जीव जंतु पेड़ पौधों को परोक्ष एवं प्रत्यक्ष रूप से खाते हैं। यदि पेड़ पौधे नहीं होंगे तो शाकाहारी जीव कम हो जाएंगे। जिसके चलते मांसाहारी जीवों पर कुप्रभाव पड़ेगा और आहार श्रृंखला कमजोर होती चली जाएगी।