गोपाष्टमी के अवसर पर श्रद्धालुओं ने गौशाला में गौ माता की पूजा अर्चना कर प्राप्त किया आशीर्वाद
दौसा,राजस्थान
महुआ (22 नवंबर) रविवार को गोपष्टमी के पावन अवसर पर महुआ उपखंड मुख्यालय सहित क्षेत्र में श्रद्धालुओं द्वारा गौ माता की पूजा अर्चना कर गाय को गुड़,हरा चारा,गौशालाओं को आवश्यकता की वस्तुओं का दान पुण्य किया। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के जीव जंतु कल्याण बोर्ड प्रतिनिधि गोपुत्र अवधेश अवस्थी ने बताया कि महुआ उपखंड मुख्यालय स्थित श्री कृष्ण गोपाल गौशाला में रविवार को पशु पक्षियों के साथ गौ माता के संवर्धन और संरक्षण के साथ गौशालाओं के विकास कार्यों के लिए कार्यरत श्री बलराम पशु पक्षी सेवा समिति दौसा शाखा महुआ के सूरज भान खंडेलवाल हर्ष राजीव खेमचंद शुभम मनन अनिल आकाश सहित अनेक कार्यकर्ताओं द्वारा गौ माताओं को हरा चारा,गुड खिलाकर गौ माताओं का आशीर्वाद प्राप्त किया।
बलराम पशु पक्षी सेवा समिति दोसा के अध्यक्ष राधेश्याम खंडेलवाल ने कि वर्तमानमेंकोविड-19 संकट की वजह से पशु पक्षियों के साथ कार्यरत संस्थाओं व गौशाला में दानदाता से दान बहुत कम मिल रहा है।सरकारीअनुदान भी गौशालाओं को अभी तक नहीं मिला है। उन्होंने लोगों से आह्वान करते हुए कहा कि अपने आसपास की निकटतम गोशाला में जाकर गौ माताओं को चारा गुड हरा चारा सहित अन्यआवश्यकताओं की वस्तुओं का सहयोग प्रदान करें।
दौसा जिला पशु क्रूरता निवारण समिति सदस्य गो पुत्र अवधेश अवस्थी ने गोपाष्टमी पर्व के महत्व एवं कथा पर प्रकाश डालते हुए बताया कि भगवान श्रीकृष्ण ने जब पौगंण्ड-अवस्था अर्थात छठे वर्ष में प्रवेश किया।उस दिन भगवान कृष्ण मैया यशोदा से बोले मैया...अब हम बड़े हो गये है।मैया ने कहा- अच्छा लाला तुम बड़े हो गये तो बताओक्या करें।भगवान श्री कृष्ण बोले - मैया अब हम बछड़े नहीं चराएँगे, अब हम गाये चराएँगे।मैया ने कहा - ठीक है , आप अपने नंद बाबा से पूछ लेना।झट से भगवान श्री कृष्ण नंद बाबा से पूछने गये।बाबा ने कहा – लाला , तुम अभी बहुत छोटे हो , अभी बछड़े ही चराओ ।भगवान बोले- बाबा मैं तो गाये ही चराऊँगा।
जब लाला नहीं माने तो बाबा ने कहा - ठीक है लाला,जाओ
पंडित जी को बुला लाओ, वे गौ-चारण का मुहूर्त देखकर
बता देंगे ।भगवान श्रीकृष्ण झट से पंडितजी के पास गए और बोले - पंडितजी,बाबा ने बुलाया है,गौचारण का मुहूर्त देखना है आप आज ही का मुहूर्त निकाल दीजियेगा।यदि आप ऐसा करोगे तो मै आप को बहुत सारा माखन दूँगा
पंडितजी घर आ गए पंचाग खोलकर बार-बार अंगुलियों पर गिनते बाबा ने पूछा - पंडित जी क्या बात है ? आप बार-बार क्या गिन रहे हैं ?पंडित जी ने कहा– क्या बताये , नंदबाबाजी , केवल आज ही का मुहूर्त निकल रहा है इसके बाद तो एक वर्ष तक कोई मुहूर्त है ही नहीं।बाबा ने गौ चारण की स्वीकृति दे दी ।भगवान जिस समय, जो काम करे, वही मुहूर्त बन जाता है उसी दिन भगवान ने गौचारण शुरू किया वह शुभ दिन कार्तिक-माह का “गोप-अष्टमी” का दिन था।माता यशोदा जी ने लाला का श्रृंगार कर दिया और जैसे ही पैरों में जूतियाँ पहनाने लगी तो भगवान बाल कृष्ण ने मना कर
दिया और कहने लगे मैया ! यदि मेरी गौ माताएं जुते नहीं पहनती तो मै कैसे पहन सकता हूँ !यदि पहना सकती हो तो सारी गैयों को जूतियाँ पहना दो , फिर मैं भी पहन लूंगा ।और भगवान जब तक वृंदावन में रहे कभी पैरों में जूतियाँ नहीं पहनी ।अब भगवान अपने सखाओं के साथ गौए चराते हुए वृन्दावन में जाते और अपने चरणों से वृन्दावन को अत्यंत पावन करते।
यह वन गौओ के लिए हरी-हरी घास से युक्त एवं रंग- बिरंगे पुष्पों की खान हो रहा था , आगे-आगे गौएँ उनके पीछे-पीछे बाँसुरी बजाते हुए श्यामसुन्दर तदन्तर बलराम और फिर श्रीकृष्ण के यश का गान करते हुए ग्वालबाल ।इस प्रकार विहार करने के लिए उन्होंने उस वन में प्रवेश किया। और तब से गौ चारण लीला करने लगे।भगवान श्रीकृष्ण का "गोविन्द" नाम भी गायों की रक्षा करने के कारण पड़ा था क्योंकि भगवान कृष्ण ने गायों तथा ग्वालों की रक्षा के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाकर रखा था।आठवें दिन इन्द्र अपना अहं त्याग कर भगवान कृष्ण की शरण में आया था।उसके बाद कामधेनु ने भगवान कृष्ण का अभिषेक किया ।और इंद्र ने भगवान को गोविंद कहकर संबोधित किया।और उसी दिन से इन्हें गोविन्द के नाम से पुकारा जाने लगा। इसी दिन से अष्टमी के दिन गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा ।गौ ही सबकी माता है ,भगवान भी गौ की पूजा करते हैं ,सारे देवी-देवों का वास गौ में होता है ।
जो गौ की सेवा करता है गौ उसकी सारी इच्छाएँ पूरी कर देती है।तीर्थों में स्नान-दान करने से , ब्राह्मणों को भोजन कराने से , व्रत-उपवास और जप-तप और हवन-यज्ञ करने से , जो पुण्य मिलता है , वही पुण्य गौ सेवा के साथ गौ माताओं को चारा या हरी घास खिलाने से प्राप्त हो जाता है।