अपने सुख दुख केवल परमात्मा के सनमुख प्रकट करने चाहिए:- श्री हरि चैतन्य महाप्रभु

Jun 13, 2021 - 11:18
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अपने सुख दुख केवल परमात्मा के सनमुख प्रकट करने चाहिए:- श्री हरि चैतन्य महाप्रभु

कामां  (भरतपुर, राजस्थान) श्री हरि कृपा पीठाधीश्वर व एवं भारत के महान सुप्रसिद्ध युवा संत श्री श्री 1008 स्वामी श्री हरि चैतन्य पुरी जी महाराज ने आज यह श्री हरि कृपा आश्रम में उपस्थित भक्त समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि परमात्मा एक है उनके नाम, उपासना पद्धतियां विभिन्न हो सकते हैं हम सभी उस एक ही सर्व शक्तिमान की संतान है जो जीव मात्र का परम सुह्रदय व हितैषी है। कर्म के साथ साथ उसमें पूर्ण व दृढ़ विश्वास करो। प्रभु की कृपा निश्चय ही समस्त बन्धनों, समस्त विपत्तियों व समस्त कठिनाइयों से उबार लेगी। 
अपने दिव्य व ओजस्वी प्रवचनों में उन्होंने कहा कि कैसा भी पापी यदि प्रभू शरण में आ जाए तो वे उसे साधु या भक्त बना लेते हैं ।उसे सनातन शांति मिल जाती है। उस भक्त का कभी पतन नहीं होता व उनकी कृपा सारे संकटों से अनायास ही उबार लेती है। संकट या विपत्तियों का निवारण करने के लिए बाहरी निर्दोष उपाय करने में कोई बुराई नहीं है परंतु उससे  विपत्ति नाश हो ही जाएगी ये दावे से नहीं कहा जा सकता। क्योंकि उसमें अत्यंत सीमित व शुद्ध शक्ति होती है। यदि प्रयास के साथ साथ ईश्वर की महानता पर भी विश्वास हो तो निश्चय ही हम दुखों से मुक्त हो सकते हैं। अतः प्रतिकूल परिस्थितियों में जब चारों ओर केवल निराशा और घोर अंधकार ही दिखाई दे, अशांति  की भयानक आँधी हो उस समय पूर्ण दृढ़ विश्वास के साथ प्रभु चिंतन करते हुए चिंताओं का परित्याग करके अपना कर्म करो। अपने सुख दुख संसारिक प्राणियों के सामने रोने के बजाय सद्गुरु या परमात्मा के सामने ही रोने चाहिए।
 उन्होंने कहा कि अंतर्दृष्टि (दिव्य नेत्र) खुलने पर परमात्मा या आत्मा का स्वरूप दिखाई देगा। बाह्य चर्म नेत्रों से बाह्य चर्म इत्यादि ही दिखता है। वह दिव्यदृष्टि या तो प्रभु कृपा करके दे दें जैसे अर्जुन द्वारा विराट रूप देखने की इच्छा ज़ाहिर करने पर प्रभु कहते हैं कि इन नेत्रों से तो मेरे उस स्वरूप को ही नहीं देख सकता इनसे तो सभी देख रहे हैं किसने पहचाना ?  “तुझे दिव्य नेत्र प्रदान करता हूँ उनसे तू देख मुझे”। या गुरु कृपा से प्राप्त हो सकते हैं जैसे व्यास जी संजय को प्रदान करते हैं। या ऐसा भक्त या संत दे सकता है जैसे बाह्य नेत्र ना होने के बावजूद धृतराष्ट्र को संजय ने सारा वृतांत बता दिया व दिखा दिया। 
अपने दिव्य व ओजस्वी प्रवचनों में उन्होंने कहा कि जिस व्यक्ति की बुद्धि ज्ञान के अंधकार से ढक जाती है वह व्यक्ति परिणाम ,हानि, हिंसा या अपनी क्षमता का विचार ना करके मनमाने कर्म करता हुआ निकृष्ट गति की ओर जाता है। वह अधर्म को धर्म समझता है हानि में लाभ, पतन में उन्नति, असंतोष में सुख को मान बैठता है। वह कर्तव्य के स्थान पर अधिकार और त्याग के स्थान पर भोग को महत्व देता है। उसके सभी कार्य अनर्गल, अवैध व आसुरी भावना से संपन्न हो जाते हैं।
कोरोना गाइडलाइन का पूरी तरह से पालन करते हुए सीमित संख्या में कार्यक्रम में लोग उपस्थित रहे । देश, विदेश के सैकड़ों स्थानों पर लोगों ने श्रद्धा पूर्वक कार्यक्रम का आयोजन किया ।

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