जनजन की आस्था का केंद्र मेहरू कलाँ तेजाजी का थानक, जहां सर्प दंश से आज तक कोई नही बना काल का ग्रास

Sep 16, 2021 - 13:20
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जनजन की आस्था का केंद्र मेहरू कलाँ तेजाजी का थानक, जहां सर्प दंश से आज तक कोई नही बना काल का ग्रास

अजमेर (राजस्थान/ बृजेश शर्मा) अजमेर जिले के मेहरु कलाँ गांव में तेजादशमी का पर्व श्रद्धा, आस्था एवं विश्वास के प्रतीकस्वरूप मनाया जाता है। नृसिंह मन्दिर के पास एक लगभग  300 वर्ष पूर्व स्थापित विशाल वट वृक्ष के नीचे वीर तेजाजी का स्थान है ,जन जन की आस्था के इस धाम पर क्षेत्र के ही नही जिले व राजस्थान के दूर दराज के  श्रद्धालुओं का क्रमशः आना जाना लगा रहता है। यहाँ दिन भर ढोलक व अलगोजे की थाप पर तेजाजी के भजनों की प्रस्तुतियां दीं जाती है, तेज थानक पर यहां की बेटी धापू बाई धोबी ने आजीवन साफ सफाई का जिम्मा उठाते हुए तेजा स्थान को सुंदर बनाए रखा, धोबी अब इस दुनियां में नही है। लेकिन लोग उसे आज भी याद करते हैं, इस स्थान पर एक घोड़े पर सवार तेजाजी की मूर्ति भी लगी हुई हैं व श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए एक धर्म शाला भी बनी हुई है।आपको बता दे की यहाँगु रुवार को तेजा दशमी हर्षोल्लास एव धूमधाम के साथ मनाई जाएगी। भाद्रपद शुक्ल दशमी को तेजादशमी पर्व मनाया जाता है। नवमी की पूरी रात रातीजगा करने के बाद दूसरे दिन दशमी को वीर तेजाजी के मंदिर हैं, मेला लगता है। हजारों की संख्या में श्रद्धालु नारियल चढ़ाने एवं बाबा की प्रसादी ग्रहण करने तेजाजी थानक में जाते हैं। भाद्रपद शुक्ल दशमी के दिन  राजस्थान के कई इलाकों में तेजा दशमी पर्व मनाने की परंपरा है। 
तेजाजी स्थानक पर वर्षभर से पीड़ित, सर्पदंश सहित अन्य जहरीले कीड़ों की तांती (धागा) छोड़ा जाता है। माना जाता है कि सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति, पशु यह धागा सांप के काटने पर बाबा के नाम से पीड़ित स्थान पर बांध लेते हैं। इससे पीड़ित पर सांप के जहर का असर नहीं होता है और वह पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाता है।
किदवंती यह है की मेहरू कलाँ तेजाजी थानक का इतिहास यह रहा है की  यदि किसी भी व्यक्ति को कितना ही जहरीला सांप या अन्य जंतु काट लेता है और वह तेजा थानक पर बने विशाल वट वृक्ष की छाया में आकर बैठ गया वह कभी काल का ग्रास नही बना, इतना ही नही 3 दशक  पूर्व केकड़ी तेजा स्थान पर विशाल मेले के आयोजन में मेहरु कलाँ से भी तेजाजी की बिन्दोली गई, वहाँ जब घोड़ले को भाव आया तो किसी मनचले ने छीटाकशी करते आरोप लगाया की घोड़ले को तेजाजी का भाव नही आ रहा है , सिर्फ दिखावटी नाटक कर रहा है, उसी समय घोड़ले ने अपने हाथ मे जो मोरपंखी थी वह उस व्यक्ति के पैरों में फेंक दी जितनी मोरपंखी उसमे से निकली व सब सांप बन गई, ,इस चमत्कार को देख उस व्यक्ति ने तेजा जी से क्षमा याचना की व मेलार्थियों में मेहरू कलाँ तेजाजी के प्रति और प्रगाढ़  आस्था बढ़ गई, जो घोड़ला गंगाराम गुर्जर आज भी थानक पर घोड़ला है

  • कैसे हुई तेजादशमी के पर्व की शुरुआत-  लोकदेवता वीर तेजाजी का जन्म नागौर जिले में खड़नाल गांव में ताहरजी (थिरराज) और रामकुंवरी के घर माघ शुक्ल, चौदस संवत 1130 यथा 29 जनवरी 1074 को जाट परिवार में हुआ था। उनके पिता गांव के मुखिया थे। वे बचपन से ही वीर, साहसी एवं अवतारी पुरुष थे। बचपन में ही उनके साहसिक कारनामों से लोग आश्चर्यचकित रह जाते थे। बड़े होने पर राजकुमार तेजा की शादी सुंदर गौरी से हुई।

एक बार अपने साथी के साथ तेजा अपनी बहन पेमल को लेने उनकी ससुराल जाते हैं। बहन पेमल की ससुराल जाने पर वीर तेजा को पता चलता है कि मेणा नामक डाकू अपने साथियों के साथ पेमल की ससुराल की सारी गायों को लूट ले गया। वीर तेजा अपने साथी के साथ जंगल में मेणा डाकू से गायों को छुड़ाने के लिए जाते हैं। रास्ते में एक बांबी के पास भाषक नामक नाग (सर्प) घोड़े के सामने आ जाता है एवं तेजा को डसना चाहता है।
वीर तेजा उसे रास्ते से हटने के लिए कहते हैं, परंतु भाषक नाग रास्ता नहीं छोड़ता। तब तेजा उसे वचन देते हैं- 'हे भाषक नाग, मैं मेणा डाकू से अपनी बहन की गायें छुड़ा लाने के बाद वापस यहीं आऊंगा, तब मुझे डस लेना, यह तेजा का वचन है।' तेजा के वचन पर विश्वास कर भाषक नाग रास्ता छोड़ देता है।
जंगल में डाकू मेणा एवं उसके साथियों के साथ वीर तेजा भयंकर युद्ध कर उन सभी को मार देते हैं। उनका पूरा शरीर घायल हो जाता है। ऐसी अवस्था में अपने साथी के हाथ गायें बहन पेमल के घर भेजकर वचन में बंधे तेजा भाषक नाग की बांबी की ओर जाते हैं।
घोड़े पर सवार पूरा शरीर घायल अवस्था में होने पर भी तेजा को आया देखकर भाषक नाग आश्चर्यचकित रह जाता है। वह तेजा से कहता है- 'तुम्हारा तो पूरा शरीर कटा-पिटा है, मैं दंश कहां मारूं?' तब वीर तेजा उसे अपनी जीभ बताकर कहते हैं- 'हे भाषक नाग, मेरी जीभ सुरक्षित है, उस पर डस लो।'

वीर तेजा की वचनबद्धता देखकर भाषक नाग उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहता है- 'आज के दिन (भाद्रपद शुक्ल दशमी) से पृथ्वी पर कोई भी प्राणी, जो सर्पदंश से पीड़ित होगा, उसे तुम्हारे नाम की तांती बांधने पर जहर का कोई असर नहीं होगा।' उसके बाद भाषक नाग घोड़े के पैरों पर से ऊपर चढ़कर तेजा की जीभ पर दंश मारता है। उस दिन से तेजादशमी पर्व मनाने की परंपरा जारी है। मत-मतांतर से यह पर्व राजस्थान के हर छोटे बड़े कस्बे,व शहरों में नवमी व दशमी पर मेला लगता हैं। राजस्थान के अलावा मध्यप्रदेश में भी मालवा- निमाड़ के तलून, साततलाई, सुंद्रेल, जेतपुरा, कोठड़ा, टलवाई खुर्द आदि गांवों में नवमी एवं दशमी को तेजाजी की थानक पर मेला लगता है।

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